सीरिया संकट कहीं तृतीय विश्व युद्ध का कारण तो नहीं बनेगा?
ट्रंप जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो उनकी मित्रता पुतिन के साथ अद्वितीय थी, लेकिन सीरिया संकट ने न केवल ट्रंप एवं पुतिन के दोस्ती को तोड़ा अपितु महाशक्तियों को बिल्कुल आमने-सामने तनावपूर्ण हालत में खड़ा भी कर दिया।
सीरिया संकट में रूस और अमेरिका के तनाव में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है, जिससे संपूर्ण विश्व में विश्व युद्ध की आहट को देख जा सकता है। सवाल खड़ा होता है कि क्या सीरिया तृतीय विश्व युद्ध का कारण बन रहा है? इस सवाल का जवाब ढूंढना इसलिए भी आवश्यक है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को लग रहा है कि दुनिया तृतीय विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है। हाल के दिनों में रूस और अमेरिका में जिस प्रकार तनाव में जबरदस्त वृद्धि हुई है, उससे संपूर्ण विश्व समुदाय चिंतित है।
अमेरिका के एक लड़ाकू विमान ने सीरिया में एक ड्रोन को मार गिराया है, जिस पर रूस ने सख्त नाराजगी प्रकट की है। अमेरिका ने पिछले रविवार को ही सीरिया के एक लड़ाकू सुखोई विमान को मार गिराया था और इस महीने के आरंभ में एक और ड्रोन को गिरा दिया था। रविवार के हमले के बाद रूस ने कहा था कि वो अब गठबंधन सेनाओं के विमानों को निशाने के रूप में देखेगा। सीरियाई संकट में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि अमरीकी गठबंधन ने सीरियाई विमान को नष्ट कर दिया है। रूस ने संकेत दिया है कि वह अमरीकी विमानों को भी गिराने के लिए तैयार है। रूस ने अमेरिका के साथ अपना हॉटलाइन संपर्क भी काट दिया है। इस हॉटलाइन का इस्तेमाल रूस और अमेरिका सीरिया में सीधा भिड़ंत से बचने के लिए करते थे। रूस के अनुसार सीरिया के अंदर सीरियन वायु सेना के विमान को निशाना बनाकर उसे नीचे गिराना दमिश्क की संप्रभुता का हनन है। ज्ञात हो कि रूस 2015 से ही असद सरकार को हवाई सुरक्षा उपलब्ध करा रहा है। अगर कहीं सीरिया के समर्थन में रूस अमेरिकी हमलों का कड़ा जवाब देता है तो स्थिति भयावह हो सकती है, जो विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की ओर अग्रसर कर सकता है।
ताजा घटना गत मंगलवार देर रात रात साढ़े बारह बजे की है, जब अमेरिका ने एफ-15 विमान से पूर्वोत्तर सीरिया के तन्फ शहर के पास एक ड्रोन को मार गिराया। इस घटनाक्रम से अमेरिका और रूस के बीच जो जबरदस्त तनाव उभर रहा है, उसे देखते हुए सीरिया में मौजूद आस्ट्रेलिया वायुसेना ने एहतियात के तौर पर अपने अभियान को रोक दिया है। नवीनतम हमलों को ईरान मामले से भी जोड़कर देखा जा सकता है। 7 जून को ईरान पर इस्लामिक स्टेट ने दोहरा हमला किया था, जिसमें 17 लोग मारे गए थे। इन हमलों का बदला लेने के लिए ईरान ने रविवार को सीरिया के डेर-अल-जोर में आतंकवादियों के गढ़ों पर मिसाइलें दागीं। इस हमले में बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए और भारी मात्रा में गोला-बारूद नष्ट हो गया। सीरिया के इन विद्रोही आतंकवादियों को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, जिसके साथ मिलकर अमेरिका सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए प्रयत्नशील है। इस कारण अमेरिका ने ईरान के हमलों के जवाब में सीरिया पर नवीनतम कार्यवाही की है।
सीरिया संकट की गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो उनकी मित्रता पुतिन के साथ अद्वितीय थी, लेकिन सीरिया संकट ने न केवल ट्रंप एवं पुतिन के दोस्ती को तोड़ा अपितु महाशक्तियों को बिल्कुल आमने-सामने तनावपूर्ण हालत में खड़ा भी कर दिया। अब हम लोग जटिल सीरिया संकट को समझने का प्रयत्न करते हैं कि आखिर सीरिया संकट क्या है?
आखिर सीरिया संकट क्या है?
सीरिया संकट की शुरूआत वर्ष 2011 के अरब स्प्रिंग से हुई थी। वर्ष 2011 में सीरिया में अरब स्प्रिंग की शुरुआत 26 जनवरी को हसन अली नामक व्यक्ति के असद सरकार के विरोध में आत्मदाह से हुई थी। फरवरी 2011 में सोशल नेटवर्किंग साइटों के द्वारा असद सरकार के विरुद्ध जबरदस्त आक्रोश उत्पन्न हुआ तथा लोकतंत्र का गढ़ कहा जाने वाला दारा शहर सुलग उठा। लोगों में राजनीतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, इत्यादि मुद्दों को लेकर असद सरकार के प्रति असंतोष था। उसके बाद तो दमिश्क, अलहस्का और डेरहामा में सेना और प्रदर्शनकारियों में खूब टकराव हुआ। हालात बदतर होने पर असद सरकार ने अप्रैल 2011 में आपातकाल लागू कर दिया। सीरिया की असद सरकार को असहमति पसंद नहीं आई और आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूरता दिखाई। सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद के खिलाफ 6 साल पहले शुरु हुई शांतिपूर्ण बगावत पूरी तरह से गृहयुद्ध में बदल चुकी है। इसमें कम से कम 3 लाख लोग मारे जा चुके हैं।
समय के साथ आंदोलन तेज होता चला गया, विरोधियों ने हथियार उठा लिए। सैंकड़ों विद्रोही गुटों ने समांतर व्यवस्था स्थापित कर ली ताकि सीरिया पर उनका नियंत्रण कायम हो सके। इस तरह 2012 तक सीरिया बुरी तरह से गृहयुद्ध में प्रवेश कर चुका था। यह लड़ाई असद और उनके विरोधियों से आगे निकल गई। उसके बाद सीरिया के द्वारा मध्यपूर्व में क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करने हेतु क्षेत्रीय शक्तियों और महाशक्तियों की भी सक्रियता प्रारंभ हो गई।
सीरिया सरकार अर्थात् बशर अल असद के कठोर समर्थन के नाम पर रूस ने सीरिया में सैन्य अड्डा बना लिया, वहीं बशर के शिया होने तथा अधिकांश जनता के सुन्नी होने के कारण ईरान भी बशर समर्थकों के रूप में शामिल हो गया। प्रारंभ में ईरान के शिया लड़ाके हिजबुल्लाह, सीरिया-ईरान सीमा पर केवल निगरानी का काम करते थे, परंतु बाद में सीरिया, रूस के संयुक्त ऑपरशेन में भी हिजबुल्लाह की गतिविधियाँ तीव्र हो गईं। इसके अतिरिक्त इस समूह को तुर्की का भी साथ मिला।
वहीं सीरिया मामले में अमेरिका भी वर्चस्व की लड़ाई में शामिल हो गया। शिया बशर को अपदस्थ करने वाले अधिकांश लड़ाके सुन्नी थे, जिसमें आईएस भी सम्मिलित था। अमेरिका ने सीरिया के बशर को ही आतंकवादी करार देकर उनके विरुद्ध संघर्षरत आतंकी समूहों तक को पूर्ण समर्थन प्रदान किया। जैसा मैंने पहले ही बताया था कि सीरिया की अधिकांश जनता सुन्नी है, वहीं बशर शिया। ऐसे में क्षेत्रीय प्रभुत्व और सुन्नी वर्चस्व स्थापित करने हेतु सऊदी अरब भी अमरीकी समूह में शामिल हो गया। सऊदी अरब के साथ संयुक्त अरब अमीरात इत्यादि भी अमरीकी हिस्से का भाग बने। अमरीकी गठबंधन सेना में अमेरिका के अतिरिक्त ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया इत्यादि भी शामिल हैं।
वहीं सीरिया की लड़ाई के दूसरे पक्ष में बशर अल असद के साथ रूसी नेतृत्व में ईरान, तुर्की सहित चीन भी शामिल है। अमेरिका को लगता है कि अगर बशर को अपदस्थ किया तो पूरे मध्य एशिया से रूस के प्रभुत्व को पूर्णत: मिटाया जा सकता है, जबकि रूस को लगता है कि बशर शासन के अस्तित्व से ही मध्यपूर्व में उसकी प्रभुता बनी हुई है। ऐसे में भी अब महाशक्तियों में संघर्ष की तपिश पूरी दुनिया में महसूस की जा रही है।
सीरिया की इस संपूर्ण संकट में सबसे दयनीय स्थिति वहां के भोले-भाले नागरिकों की हुई। लगभग 3 लाख से ज्यादा लोग हमलों में मारे गए, वहीं 50 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी बनने को विवश हुए। काफी लोग तो किसी तरह यूरोप पहुँचने की चाह में समुद्र में डूबकर भी मर गए। वहीं लगभग 1 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हो गए। सीरिया संकट के कारण 50 लाख शरणार्थियों के कारण यूरोप के लिए शरणार्थी संकट गंभीर हो गया।
10 अप्रैल 2012 को जब सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्ववाली सरकार और विद्रोहियों के बीच 13 माह से चल रहे गृहयुद्ध पर संघर्ष विराम की सहमति बनी, तो पूरी दुनिया को लगा कि सीरिया संकट समाप्त हो गया। परंतु 2013 में सीरिया द्वारा रसायनिक हमले से स्थिति फिर से बिगड़ गई। इसमें 1300 लोग मारे गए थे।
2017 में पुतिन एवं ट्रंप की मित्रता से सीरिया संकट के समाधान की उम्मीदें जागी थीं, लेकिन सीरिया संकट तो खत्म नहीं हुआ अपितु सीरिया के कारण ट्रंप एवं पुतिन की मित्रता अवश्य समाप्त हो गई। उत्तरी सीरिया के इदबिल प्रांत के खान शेखहुन में रासायनिक हमलों के बाद सैंकड़ों लोग मारे गए। इसके जवाब में अमेरिका ने सीरिया के एयरबेस पर ताबड़तोड़ 59 टॉम हॉक क्रूज मिसाइलों से प्रहार किया। यहीं से रूस और अमेरिका के बीच अर्थात् पुतिन एवं ट्रंप की दोस्ती, दुश्मनी में बदल गई। इस तरह आतंकवाद के विरुद्ध सीरिया में महाशक्तियों की लड़ाई मूलत: कहीं भी अपने मूल उद्देश्य से संबद्ध नहीं थाी। 2014 से अब तक अमेरिका ने सीरिया में कई हवाई हमले किए हैं। असद के खिलाफ विद्रोहियों को मदद करने में सऊदी अरब की सबसे बड़ी भूमिका रही है। सऊदी अरब असद के विरुद्ध सुन्नी इस्लामिक स्टेट को भी मदद पहुँचा रहा है। अमेरिका भी इराक में तथा कहीं-कहीं सीरिया में इस्लामिक स्टेट को नष्ट कर रहा है, लेकिन बशर विरोधी इस्लामिक स्टेट्स और अल कायदा को सीरिया में हर तरह से समर्थन दे रहा है। ऐसे में महाशक्तियों के आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध के नाम पर वर्चस्व की लड़ाई को समझा जा सकता है। दूसरी ओर रूस ने भी ईरान, लेबनान, इराक, अफगानिस्तान और यमन से हजारों की संख्या में शिया लड़ाकों को पूर्ण समर्थन दिया, जो अपने पवित्र भूमि की रक्षा के लिए पहुँचे थे।
सीरिया संकट मानवता के लिए गंभीर संकट है। यह संकट अभी तक मध्यपूर्व तक को ही प्रभावित कर रहा था, लेकिन जिस तरह से अमेरिका सीरिया के ड्रोन या युद्धक विमानों पर हमला कर रूस को उकसा रहा है, उससे स्थिति अति विस्फोटक हो सकती है। अमेरिका ने पूरे सीरिया संकट के दौरान पहली बार बशर के विमान को गिराया है, वहीं ईरान ने भी सीरिया में पहली बार मिसाइल से हमला किया है। इन सब कारण से सीरिया संकट में रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बिगड़ रहा है। अगर रूस अपने दावे के अनुसार अमेरिकी विमानों पर सीधा हमला करता है, तो उसके बाद के भयावह मंजर की केवल कल्पना ही की जा सकती है। वर्तमान स्थिति में यह आवश्यक है कि चाहे जो भी हो, पर अमेरिका और रूस को चाहिए कि वे विश्वशांति के लिए युद्ध का माहौल निर्मित करने से बचें।
राहुल लाल
(लेखक कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।)
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