Vishwakhabram: Ukraine पर डॉलरों की बरसात बंद करेंगे पश्चिमी देश, Elon Musk ने अपने नेताओं से पूछा USA Border से 100 गुणा ज्यादा चिंता Ukraine Border की क्यों है?
ब्रिटेन के एक वरिष्ठ मंत्री ने तो कुछ समय पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति पर टिप्पणी करते हुए कहा भी था कि उन्होंने हमें अमेजन समझ लिया है कि कार्ट में कुछ सामान एड करो और उसकी डिलिवरी करने का ऑर्डर दे दो। देखा जाये तो पश्चिमी देशों की चिंता जायज भी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए 600 दिन पूरे हो गये हैं। शुरू में अनुमान लगाया गया था कि यह युद्ध मात्र 6 दिन में खत्म हो जायेगा लेकिन पश्चिमी देशों के समर्थन से यूक्रेन युद्ध को यहां तक खींचने में सफल रहा। लेकिन यूक्रेन को मदद देते देते पश्चिमी देश अब थक चुके हैं और जिस तरह एक-एक करके विभिन्न देशों का धैर्य जवाब दे रहा है वह यूक्रेन के लिए बहुत बड़े खतरे की आहट है। अमेरिका अब तक यूक्रेन का सबसे बड़ा मददगार रहा लेकिन अब अमेरिका में यूक्रेन को मदद देने के विरोध में स्वर तेज होने लगे हैं। ताजा स्वर टेस्ला के सीईओ और सोशल मीडिया मंच एक्स के मालिक एलन मस्क का है। उन्होंने ट्वीट कर सवाल उठाया है कि आखिर अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता अपने देश की सीमाओं से 100 गुणा ज्यादा चिंता यूक्रेन की सीमाओं की क्यों कर रहे हैं?
इसके अलावा, यदि पिछले सप्ताह की घटनाओं पर ही गौर कर लें तो साफ और स्पष्ट संकेत हैं कि यूक्रेन को समर्थन कमजोर होना शुरू हो गया है। यदि यह स्थिति आगे भी जारी रही तो यूक्रेन अपनी हार को ज्यादा दिन टाल नहीं पायेगा। यदि यूक्रेन हारा तो यह सिर्फ उसकी हार नहीं बल्कि पश्चिमी देशों की भी बड़ी हार होगी क्योंकि रूस के खिलाफ वह ज्यादा समय तक मैदान में टिक नहीं पाये। यूक्रेन की हार से विश्व में यह भी संदेश जायेगा कि पश्चिमी देश किसी युद्ध में ज्यादा समय तक किसी देश की मदद करते नहीं रह सकते।
देखा जाये तो यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण और उसके बाद हुए युद्ध ने रूस और यूक्रेन की सहनशक्ति और दमखम की परीक्षा तो ली ही है साथ ही दोनों देशों के मददगारों की भी परीक्षा ली है। यूक्रेन के मददगारों ने अब तक तो बढ़-चढ़कर मदद की लेकिन युद्ध से उपजी परिस्थितियों से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है ऐसे में पश्चिमी और यूरोपीय देशों की जनता सवाल उठा रही है कि उसके टैक्स के पैसों को कब तक युद्ध में फूंका जाता रहेगा? पश्चिमी देशों का विपक्ष ही नहीं बल्कि सरकार में शामिल लोग भी युद्ध में यूक्रेन की मदद के लिए और फंडिंग देने का विरोध करने लगे हैं। कई देशों ने तो अपना पल्ला झाड़ भी लिया है और साफ कह दिया है कि अब और मदद नहीं दी जा सकती। ब्रिटेन के एक वरिष्ठ मंत्री ने तो कुछ समय पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति पर टिप्प्णी करते हुए कहा भी था कि उन्होंने हमें अमेजन समझ लिया है कि कार्ट में कुछ सामान एड करो और उसकी डिलिवरी करने का ऑर्डर दे दो। देखा जाये तो पश्चिमी देशों की चिंता जायज भी है क्योंकि युद्ध में यूक्रेन की जवाबी कार्रवाई अभी भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है।
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यही नहीं, पिछले सप्ताह यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की के अमेरिका और कनाडा के दौरे पर उन्हें मिले मिश्रित स्वागत से भी स्पष्ट हो गया था कि यूक्रेन के लिए डॉलरों की बरसात अब बंद होने वाली है। ज़ेलेंस्की ने वाशिंगटन में भले 32 करोड़ 50 लाख अमेरिकी डॉलर का एक और सैन्य सहायता पैकेज हासिल किया। लेकिन यह सहायता बड़ी मुश्किल से मिली। हम आपको बता दें कि यूक्रेन को यह सहायता अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा राष्ट्रपति ड्रॉडाउन अधिकार के तहत सीधे आवंटित की गयी है। इसके अलावा यूक्रेन को 24 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता अभी नहीं मिल पाई है क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस ने अभी इसको मंजूरी नहीं दी है। रिपब्लिकन नेता केविन मैक्कार्थी ने कहा है कि वह यह मदद दिये जाने के पक्ष में नहीं हैं। यही नहीं, मैक्कार्थी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति को सदन और सीनेट के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के अवसर से भी वंचित कर दिया, जो बाइडेन प्रशासन द्वारा यूक्रेन को दिए गए समर्थन के प्रति बढ़ते रिपब्लिकन के प्रतिरोध का एक बड़ा संकेत है। इसके अलावा कनाडा जाने पर, ज़ेलेंस्की का गर्मजोशी से स्वागत किया गया और वह 65 करोड़ कनाडाई डॉलर के सैन्य सहायता पैकेज के साथ रवाना हुए।
इस बीच, यूरोप में यूरोपीय संघ के अंदर बवाल होना शुरू हो गया है क्योंकि कीव के तीन पड़ोसियों- हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया ने यूक्रेन से अनाज आयात पर यूरोपीय संघ के व्यापक प्रतिबंध की समाप्ति का विरोध किया है। इसके अलावा, पोलैंड ने आवेश में आकर यूक्रेन को किसी भी हथियार की डिलीवरी पर अस्थायी रोक भी लगा दी है। दरअसल पोलैंड और यूक्रेन के बीच अनाज विवाद पिछले कुछ समय से गरमाया हुआ है। हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया का रुख यह भी संकेत देता है कि यूक्रेन की यूरोपीय संघ की सदस्यता की राह में अब और बाधाएं खड़ी की जाएंगी। देखा जाये तो इस समय दो खेमे स्पष्ट रूप से नजर आते हैं। पहला- कई पश्चिमी नेता यूक्रेन की इस बात के समर्थन में हैं कि पहले देश की क्षेत्रीय अखंडता को बहाल करने की जरूरत है। दूसरे खेमे में वैश्विक दक्षिण के देश बड़ी संख्या में शामिल हैं। यह लोग बातचीत के महत्व और हिंसा की शीघ्र समाप्ति पर जोर देना पसंद करते हैं। लेकिन बातचीत का कोई माहौल बनता नहीं दिख रहा है। हाल में शांति वार्ता के लिए कुछ प्रयास हुए थे लेकिन रूस ने उन्हें तवज्जो नहीं दी। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यह ठान कर लट्ठ गाड़ कर बैठे हैं कि पश्चिमी देशों की साजिश को कतई सफल नहीं होने देना है, भले यह युद्ध और कितना भी लंबा खिंच जाये।
बहरहाल, जहां तक युद्ध की वर्तमान स्थिति की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि यूक्रेन ने प्रगति नहीं की है। हाल के दिनों में, यूक्रेन ने दक्षिण में थोड़ी बढ़त हासिल की है और सप्ताहांत में रूस के कब्जे वाले क्रीमिया में रूसी काला सागर बेड़े के मुख्यालय पर एक बड़ा हमला भी किया है। लेकिन यूक्रेन की हालिया सफलताएँ बहुत ज्यादा मायने नहीं रखतीं क्योंकि छोटे मोटे हमले कर देना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। यूक्रेन रूस द्वारा कब्जाये गये इलाकों में से अब तक 25 प्रतिशत भी वापस हासिल नहीं कर सका है, यह आंकड़ा दर्शाता है कि युद्ध में 600 दिनों के बाद भी रूस बढ़त बनाये हुए है। रूस के रास्ते में अब तक जो भी आया उसे पुतिन ने निबटा दिया है। पश्चिमी देशों ने एक से बढ़कर एक हथियार यूक्रेन को दिये लेकिन वह रूस का बाल भी बांका नहीं कर सके, इसके अलावा जिस वैगनर ग्रुप के मुखिया ने पुतिन को आंखें दिखाई थीं वह भी अब इस दुनिया में नहीं रहा। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र ने रूस के खिलाफ कितने भी प्रस्ताव पारित कर लिये, प्रतिबंध लगा लिये, खरी-खरी सुना दी लेकिन पुतिन की सेहत पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा। कब्जाये इलाकों को वापस करना तो दूर पुतिन तो यूक्रेन के कब्जाये इलाकों में चुनाव कराकर वहां नागरिक प्रशासन की तैनाती कर चुके हैं। इसके अलावा पुतिन यूक्रेन के कुछ और इलाकों में जल्द ही चुनाव कराने की योजना भी बना रहे हैं। पुतिन यह भी साफ कर चुके हैं कि आत्मरक्षा में रूस परमाणु हथियार का उपयोग करने से भी नहीं चूकेगा। देखा जाये तो एक ओर जहां जेलेंस्की युद्ध के पहले दिन से लेकर अब तक दूसरों से मिलने वाली मदद और रसद के बलबूते मैदान में टिके हुए हैं वहीं रूस मूलतः अपने बलबूते और कुछ हद तक अपने सहयोगी देशों के दम पर युद्ध में लगातार निर्णायक बढ़त बनाये हुए है और यह बढ़त अब और बढ़ती जा रही है।
-नीरज कुमार दुबे
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