सामाजिक विषमता का कारक है आरक्षण, खासकर सवर्ण आरक्षण तो बहुत बड़ा धोखा है

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आज़ादी के बाद से राजनैतिक पार्टियां चुनाव से पहले आरक्षण को मुद्दा बनाती रही हैं। सभी सरकारें आरक्षण को लागू करती रहीं हैं क्योंकि आरक्षण राजनैतिक पार्टियों के लिए वोट पाने का आधार बन चुका था। देश को आज़ाद हुए 75 साल हो गए।

आरक्षण दो शब्दों से मिलकर बना है आ + रक्षण। आरक्षण शब्द में ‘आ’ उपसर्ग है और रक्षण अर्थात सुरक्षित करना। किसी वस्तु या व्यक्ति के लिए कोई स्थान पहले से बचा कर रखना आरक्षण कहलाता है। वर्ष 1947 में भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर को भारतीय संविधान के लिए मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएँ रखी गयीं। 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए। स्वतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 को आरक्षण लागू हुआ था। पिछड़ी जातियों को डॉ. भीम राव अम्बेडकर द्वारा दिया गया संरक्षण या आरक्षण उचित था। उस समय देश गुलामी की जंजीरों से उबारा ही था। आज़ादी के बाद देश में सामजिक समता लाने के लिए क्रांति की जरूरत थी। डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने इसी क्रांति के तहत आरक्षण ला कर लोगों को सामाजिक समता का पाठ पढ़ाया। 10 वर्षों के लिए लागू किया गया आरक्षण सामाजिक समता का अच्छा उदाहरण था। इन 10 वर्षों में पिछड़ी जातियों के लोगों की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति ठीक हो चुकी थी। ये पिछड़ी जाति के लोग समाज में अच्छी स्थिति में पहुँच चुके थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यह आरक्षण केवल 10 साल के लिए होना चाहिए। हर 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिनको आरक्षण दिया जा रहा है, क्या उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है कि नहीं? उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को इस व्यवस्था का लाभ नहीं देना चाहिए, क्योंकि आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे सारी जिंदगी जी जाए। यह तो विकसित होने का एक आधार मात्र है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।

आज़ादी के बाद से राजनैतिक पार्टियां चुनाव से पहले आरक्षण को मुद्दा बनाती रही हैं। सभी सरकारें आरक्षण को लागू करती रहीं हैं क्योंकि आरक्षण राजनैतिक पार्टियों के लिए वोट पाने का आधार बन चुका था। देश को आज़ाद हुए 75 साल हो गए। अब स्थिति यह है कि सवर्ण निम्न स्थिति में पहुँच चुके हैं। विलुप्त होती प्रजातियों को आरक्षित करना आरक्षण का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। आरक्षण समाज में आग की तरह फैला और सामाजिक समता को जला कर राख कर दिया। आरक्षित कोटे में सामान्य वर्ग का व्यक्ति आवेदन नहीं कर सकता। प्रत्येक सरकारी नियुक्तियों में आरक्षित कोटे का व्यक्ति सामान्य वर्ग के कोटे में भी आवेदन कर सकता है। जिसके तहत सामान्य वर्ग की नौकरियों में भी आरक्षित वर्ग के लोग नौकरी कर रहे हैं। सरकारें आरक्षण को जारी रखकर सवर्णों को कुचलने का काम किया है। ये समता नहीं विषमता है। ये न्याय नहीं अन्याय है। अतएव सामान्य वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरी पाना कठिन हो गया है। आज जब भारत तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, तो उसे फिर से पीछे धकेलने की साजिश क्यों की जा रही है? 

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आरक्षण को अभी भी जारी रखना समाज को एक तरह से दो हिस्सों में बांटने की साजिश करना है। आरक्षण आज देश की जरूरत नहीं है। हम सोचते हैं कि दलित वर्ग इस आरक्षण को हटाने की पहल करेगा, लेकिन यह कतई संभव नहीं। सरकारों द्वारा पिछड़ी जातियों को आरक्षण देकर उन्हें अपंग बना दिया गया है। जिस प्रकार किसी सही सलामत इंसान को बैसाखी की आदत डलवा दी जाए तो पैर रहते हुए भी वह बैसाखी की ही मदद लेगा। कहने का तात्पर्य पिछड़ी जातियां अब पिछड़ी नहीं रहीं और न ही उनको किसी प्रकार की बैसाखी की जरूरत है। जिन लोगों को बैसाखी के सहारे की आदत पड़ गई है, वे कभी अपनी बैसाखी हटाने के लिए नहीं कहेंगे। आरक्षित वर्ग से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन गए हैं, फिर यह वर्ग पीछे कैसे रह गया? कई विभागों में बड़े अधिकारी आरक्षित वर्ग से हैं। कई बड़े नेता आरक्षित वर्ग से हैं। फिर हम यह कैसे मान सकते हैं कि आज भी दलित वर्ग का विकास नहीं हो पाया है? दलित वर्ग का विकास काफी हो गया है, अब यह पिछड़े नहीं हैं और न ही कमजोर हैं। अब यह पूरी तरह सम्पन्न लोग हैं। आजकल आरक्षण की एक श्रेणी ईडब्लूएस चर्चा का विषय बनी हुई है। ईडब्लूएस (इकोनोमिकली वीकर सेक्शन) जिसको हिंदी में आर्थिक कमजोर वर्ग कहते हैं। यह सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के लिए बनाया गया था, जिसके तहत आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है। वर्ष 2019 के जनवरी माह में केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी, स्कूल और कॉलेज में आरक्षण देने के लिए आर्थिक आधार पर 10 फीसदी का आरक्षण लागू किया था। इसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया गया था।

आर्थिक कमजोर वर्ग के आरक्षण के लिए निम्नलिखित शर्तें हैं जैसे सामान्य वर्ग (जनरल केटेगरी) के किसी व्यक्ति को ईडब्लूएस में नहीं माना जायेगा अगर उसके परिवार के पास 

1. पांच एकड़ या उससे ज़्यादा कृषि भूमि है।

2. एक हज़ार वर्ग फ़ीट या उससे ज़्यादा का आवासीय फ़्लैट है। 

3. अधिसूचित नगर पालिकाओं में 100 वर्ग गज या और उससे ज़्यादा का आवासीय प्लॉट है। 

4. अधिसूचित नगर पालिकाओं के अलावा अन्य क्षेत्रों में 200 वर्ग गज या उससे ज़्यादा के आवासीय प्लॉट हैं। 

5. सरकार ने ये भी स्पष्ट किया कि अगर किसी परिवार की अलग-अलग जगहों या शहरों में ज़मीन या संपत्ति है तो उन सब को जोड़ कर ही ईडब्ल्यूएस होने या न होने का फ़ैसला किया जाएगा। 

ईडब्ल्यूएस का लाभ प्राप्त करने लिए आवेदकों के पास वार्षिक आय 8 लाख रुपये से कम और संपत्ति का सुबूत होना चाहिए। इसके लिए आवेदकों को आय और संपत्ति प्रमाण पत्र बनवाना होता है। शिक्षक भर्ती के लिए यूजीसी की ओर से जारी दिशा निर्देश के अनुसार प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर ईडब्लूएस कोटे का लाभ उसी को मिल सकता है जिसकी वार्षिक आय आठ लाख रूपए से अधिक न हो। एसोसिएट प्रोफेसर के लिए अन्य शैक्षणिक योग्यता के अलावा असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर 8 साल तक पढ़ाने का अनुभव होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्रोफेसर पद के लिए असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर 10 साल तक पढ़ाने का अनुभव आवश्यक है। प्रश्न यह उठता है कि ऐसे में एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पद के लिए ईडब्लूएस कोटे के अभ्यर्थी मिलेंगे कैसे? असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आठ साल पढ़ाने वाले अभ्यर्थियों की वार्षिक आय आठ लाख रूपए से अधिक हो जाती है। यही वजह है कि स्क्रीनिंग प्रक्रिया के दौरान ही अभ्यर्थी अयोग्य हो जा रहे हैं। अतएव विश्वविद्यालयों में ईडब्लूएस कोटे के तहत प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति असंभव हो गई है। ईडब्लूएस कोटे के मानक और इन पदों की अर्हता के कारण अभ्यर्थी ही नहीं मिल रहे हैं। सरकार ईडब्लूएस की आड़ में वोट की राजनीती का खेल रही है। इस आरक्षण का लाभ सवर्णों को नहीं मिल पा रहा है। ईडब्लूएस आरक्षण सवर्णों के साथ धोखा है। ईडब्लूएस कोटा सिर्फ़ आर्थिक आधार पर दिया गया है और जहां पहली नज़र में लगता ज़रूर है कि ये देश के ग़रीब लोगों के लिए एक संजीवनी का काम करेगा पर इसमें कमियां बहुत हैं। सभी राजनैतिक पार्टी की सरकारों ने आरक्षण जैसे शब्द के साथ खिलवाड़ किया है। आरक्षण का दुरुपयोग हुआ है। केंद्र सरकार को सभी सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण बिना किसी शर्त के दे दिया जाना चाहिए तभी सामान्य वर्ग आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग के बराबरी में आ पाएगा अन्यथा आरक्षण का खेल ख़त्म होना चाहिए। आज़ादी के बाद से लगातार दिया जाने वाला आरक्षण, सामाजिक विषमता का कारक है।

-डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं शिक्षाविद

असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स,

नैनी, प्रयागराज (यूपी)

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