ईरानी महिलाओं का भारतीय मुस्लिम महिलाओं को संदेश

Iranian women
ANI

इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष में मध्य-पूर्व में ईरान ही हमास का प्रमुख समर्थक रहा है। पश्चिम विरोधी नीतियों के कारण भी इनकी स्थिति असहज होती रही है। ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने तो सीधे इसराइल पर आक्रमण करके अभूतपूर्व स्थिति निर्मित कर दी थी। इससे दोनों देश आमने-सामने आ गए थे।

ईरान में इन दिनों चाँद चौदहवीं की ओर बढ़ रहा है और साफ़ साफ़ भी दिख रहा है। अन्य दिनों- महीनों की अपेक्षा ईरान में कुछ अधिक ही ख़ुशगवार मौसम छाया हुआ है। ईरान के निर्वाचन में सुधारवादियों की विजय एक बड़ी ऐतिहासिक घटना सिद्ध हो सकती है। विशेषतः मुस्लिम महिला जगत के लिए ईरान के चुनावों में मसूद पेज़ेश्कियान की विजय कुछ नये मार्ग खोलते हुए दिखाई पड़ती है। पेज़ेश्कियान सुधारवादी नेता हैं व हिजाब के ऊपर लगे हुए सख़्त क़ानून के भी बड़े विरोधी हैं। इन मायनों में ईरानी महिलाओं को पेज़ेश्कियान से बहुत बड़ी आशाएँ हैं। माना जाता है कि मुस्लिम स्त्री वर्ग ने हिजाब विरोधी दृष्टिकोण व कट्टरता विरोधी छवि व ऐसे ही चुनावी वादों के कारण पेज़ेश्कियान को बड़ी एकतरफ़ा मतदान किया है। 

भारत में हिजाब को लेकर एक बड़ा झंझावात चल रहा है। भारतीय मुस्लिम पुरुष समुदाय जहां हिजाब के पक्ष में खड़ा है वहीं मुस्लिम महिलाएं हिजाब, बुर्के व नक़ाब आदि को अपनी स्वतंत्रता व शिक्षा में बाधा मानती हैं। अनेक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वस्तुतः भारतीय मुस्लिम स्त्री समुदाय की अशिक्षा का एक बड़ा कारण बुर्का, हिजाब व नक़ाब ही है।

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ईरान में राष्ट्रपति रईसी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के पश्चात चुनाव कठिन लगने लगे थे। किंतु, अब जब चुनाव हो गये हैं तो ईरान एक नये स्वरूप में व नये मार्ग पर दिखाई दे रहा है। जेल में बंद नरगिस मोहम्मदी जैसी संघर्षशील महिला भी इन चुनावों के प्रति उदासीन व निराश थीं व उन्हें लगता था कि इन चुनावों का बहिष्कार ही एक मात्र उपाय है। 

न जाने क्या हुआ कि इस चुनाव में ईरान के सुधारवादियों, विशेषतः पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी को नई आशा की किरण दिखाई दी। खातमी ने निष्क्रियता छोड़ी व मसूद पेज़ेश्कियान के समर्थन में कूद पड़े। 

चुनाव के प्रथम चरण में चुनाव चाहने वालों व बहिष्कार करने वालों के मध्य संघर्ष हुआ फलस्वरूप मतदान का प्रतिशत चालीस से भी नीचे चला गया था। 

दूसरे चरण में कट्टरपंथी जलीली व पेज़ेश्कियान के मध्य सीधे चुनाव में एकेडेमिक छवि वाले ज़रीफ ने पेज़ेश्कियान के लिए सघन अभियान चलाया। ज़रीफ़ व पेज़ेश्कियान ने घोषणा की कि, उनकी विदेश नीति न तो पश्चिम विरोधी है और न ही पूरब विरोधी। इन दोनों ने रईसी की रूस और चीन से लगाव  की नीति की आलोचना की। ईरान के आर्थिक संकट को हाल करने हेतु भी उन्होंने अपना रोडमैप प्रस्तुत किया। परमाणु विषय पर व्यवस्थित बात करने व ईरान पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाने हेतु भी वे संकल्पित दिखाई पड़े।

यद्दपि ईरान की आंतरिक व्यवस्थाओं के कारण निर्णय प्रक्रिया पर पूर्ण अधिकार अब भी सर्वोच्च धार्मिक नेता ख़ामनेई का ही रहेगा। ख़ामनेई के कट्टरपंथी दृष्टिकोण को चुनाव के बाद की कुद्स फ़ोर्स से संबंधित से बातों से समझा जा सकता है जो उन्होंने कही है। ईरान की नीतियों पर कुद्स का प्रभाव सदैव रहता है। कुद्स फोर्स आईआरजीसी की बाहरी इकाई है व राष्ट्रपति के पास इस पर सीधे नियंत्रण का अधिकार नहीं होता है। केवल ईरान के सर्वोच्च नेता ही यह निर्णय करते हैं कि कुद्स को क्या करना चाहिए और क्या नहीं। ख़ामनेई ने समूची चुनावी प्रक्रिया के मध्य इस बात को दोहराते रहें हैं कि कुद्स फोर्स जो कर रही है वो देश की सुरक्षा नीतियों की दृष्टि से अनिवार्य है।

इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष में मध्य-पूर्व में ईरान ही हमास का प्रमुख समर्थक रहा है। पश्चिम विरोधी नीतियों के कारण भी इनकी स्थिति असहज होती रही है। ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने तो सीधे इसराइल पर आक्रमण करके अभूतपूर्व स्थिति निर्मित कर दी थी। इससे दोनों देश आमने-सामने आ गए थे। 

ईरान में महिलाओं पर मॉरल पोलिसिंग के पक्ष में सुदृढ़ कट्टरपंथी क़ानून बने हुए हैं। पेज़ेश्कियान जो महिलाओं की नैतिक पोलिसिंग का विरोध करते हैं और पश्चिम के साथ टकराव की बजाय जुड़ाव का आग्रह रखते हैं। 

अब आर्थिक संकटों और सामाजिक उलझनों से त्रस्त ईरान स्वयं पेज़ेश्कियान की इस विजय से आश्चर्यचकित है। अब तक ईरान की कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तथाकथित 'प्रिंसिपलिस्टों' (रूढ़िवादियों) के नियंत्रण में थी। ये ईरान में किसी भी प्रकार के सुधारों के विरोधी थे। ईरान में चुनावों के मध्य ईरान सरकार में कभी मंत्री रहे सुधारवादी पेज़ेश्कियान को जब गार्डियन काउंसिल ने चुनाव में प्रत्याशी मान लिया तब ईरान के सुधारवादी गठबंधन ने अपना समर्थन उनके पक्ष में दे दिया। खातमी, उदारवादी मौलवी और 2013-21 तक राष्ट्रपति रहे हसन रूहानी ने उनका समर्थन किया। 5 जुलाई, 2024 के दूसरे चरण के चुनाव में पेज़ेश्कियान ने रूढ़िवादी प्रतिद्वंद्वी सईद जलीली को पराजित करके 53.6% वोट प्राप्त करके विजयश्री वरण किया। अब यह माना जा रहा है कि पचास वर्षों के पश्चात् प्रथम बार ईरान की बागडोर एक सुधारवादी राष्ट्रपति के हाथ में आ गई है। 

यद्दपि ईरान में सुधारवादी वर्ग ने ईरान के लिए जिन स्वप्नों को देखा  है व जिस प्रकार का शासन वे चाहते हैं; उस मापदंड में पेजे़श्कियान भी कोई आदर्श प्रत्याशी नहीं थे, तथापि अंधों में काना मामा के दृष्टिकोण से यह एक उत्तम चयन है। चुनाव अभियान में इन्होंने संकल्पित होकर पेजे़श्कियान के लिए एकतरफ़ा अभियान चलाया। 

ईरान में निरन्तर कट्टरपंथियों के दुष्प्रभाव के कारण नागरिकों को चुनाव में उतनी रुचि नहीं थी किंतु पेजे़श्कियान के पक्ष में सुधारवादियों के प्रबल अभियान ने स्थिति बदल दे थी। ईरानी जनता विशेषतः महिलाओं के मानस में यह भी बैठ चुका था कि पेजे़श्कियान ने हिजाब के विरोध में सुदृढ़ता से अपनी बातें रखीं हैं व उन्हें प्रबल समर्थन भी मिल ही रहा है। इस स्थिति में जनता ने दूसरे चरण में पेजे़श्कियान के पक्ष में भारी मतदान किया। जलीली की रूढ़िवादिता भी उन्हें चुनाव हराने में एक बड़ा तत्त्व सिद्ध हुई। 

ईरान में राष्ट्रपति, सर्वोच्च निर्वाचित अधिकारी, मज़हब के संदर्भ में सीमित शक्तियाँ रखते हैं। कमान सर्वोच्च नेता के पास ही होती है। अब संभव है कि स्वयं को प्राप्त भारी जनादेश के साथ पेजे़श्कियान देश में बदलाव के लिए सुदृढ़ता से अपने शासन में निर्णय लेंगे। ईरान के सर्वोच्च नेता, मज़हबी वर्ग को भी अब इस जनादेश के भीतर छिपे हुए संकेत को समझ लेना चाहिये और सुधारवाद को स्वीकार करना चाहिये। यदि ऐसा होता है तो पश्चिमी जगत द्वारा ईरान की ओर एक नई दृष्टि से देखा जा सकता है।

ईरान में कट्टरपंथ से सुधारवाद का मार्ग अब जब प्रशस्त हो रहा है तब वहाँ इसे ‘होमोजेनाइजेशन’ अर्थात् ‘दो धाराओं का मिलन’ कहा जा रहा है। वर्ष 2021 में ईरान की राजनैतिक स्थितियों में आये परिवर्तनों के बाद ईरान महिलाओं के प्रति अधिक सख़्त व निर्दयी हो गया था। वर्ष 2022 में ईरान में हिरासत में एक युवा महिला महसा अमीनी की मौत ने भी ईरानी सुधारवादियों व महिलाओं को भयग्रस्त व स्तंभित कर दिया था। इसके बाद ही ईरानी जनता ने अपने क्रोध का ऐसा प्रदर्शन किया था जिसे अब तक का सबसे बड़ा विरोध माना जा रहा था। किंतु, इसका हाल भी पूर्व के आंदोलनों जैसा ही हुआ और सत्ताधारी धार्मिक नेताओं ने वर्ष 2009 के विरोध की तुलना में इस विद्रोह को अधिक निर्ममता से कुचला।

अब जबकि ईरान में एक सुधारवादी सरकार का सत्ता सम्भालना तय हो गया है तब ईरानी महिलाएं नये स्वप्न देख सकती हैं व नई उड़ान भर सकती हैं। ईरान में हिजाब के विरोध में हुए भारी प्रदर्शनों की सफलता और उनके निर्मम दमन की कहानियाँ बहुत पुरानी नहीं है। अब भी ईरान की हवाओं में ईरानी महिलाओं के दमन से निकली चीख़ों के दुखी स्वर वातावरण सुने जा सकते हैं। अब लोग उन दिनों को याद करके कट्टरतावाद से स्थायी मुक्ति का स्वप्न देखने लगे हैं।

प्रवीण गुगनानी, 

विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में राजभाषा सलाहकार

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