भारत ने तालिबान से सीधी बातचीत कर पाकिस्तान की पूरी चाल को ही उलट दिया

taliban

पाकिस्तान भारत और तालिबान की बैठक की खबरों से इतना घबराया कि उसके तो जैसे होश ही उड़ गये। इस बैठक के अगले दिन ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री और आईएसआई के प्रमुख भागे-भागे तालिबान के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से वार्ता करने के लिए काबुल पहुंच गये।

तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा तो कर लिया लेकिन देश का खाली खजाना देख उसके होश उड़ गये हैं। अपनी क्रूरता के लिए मशहूर तालिबान के नेता आजकल देश-देश घूम कर समर्थन मांग रहे हैं, अन्न मांग रहे हैं, कंबल मांग रहे हैं, दवाई मांग रहे हैं, पैसा मांग रहे हैं। तालिबान को यह भी चिंता है कि कब तक भूखे पेट उसके लड़ाके मैदान में डटे रहेंगे? तालिबान के सामने एक ओर आईएस के बढ़ते आतंकी हमलों को रोकने की चुनौती है तो दूसरी ओर भूख और सर्दी से बेहाल जनता की मदद कैसे की जाये यह उसके समझ नहीं आ रहा है। अमेरिका ने भले अफगानिस्तान को अधर में छोड़ दिया हो लेकिन संयुक्त राष्ट्र समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान की जनता की बेहाली को देखते हुए उसकी मदद के लिए आगे आ रहा है। वाकई यह मदद जल्द नहीं की गयी तो अफगानिस्तान के हालात और बदतर हो जाएंगे। इसी बीच भारत सरकार ने अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से बातचीत करनी शुरू कर दी है लेकिन इस बातचीत से पाकिस्तान घबरा गया है। पाकिस्तान का घबराना स्वाभाविक भी है क्योंकि उसकी योजना थी तालिबान के जरिये कश्मीर में आतंकवाद फैलाने की लेकिन तालिबान को भी अच्छी तरह समझ आ रहा है कि अफगानिस्तान की मुश्किल समय में मदद भारत ही कर सकता है इसलिए तालिबान सरकार के प्रतिनिधियों ने भारत से वार्ता की है। क्या है अफगानिस्तान के मुद्दे पर ताजा अपडेट आइये जरा एक निगाह डालते हैं।

इसे भी पढ़ें: गजवा-ए-हिंद: भारत के खिलाफ अंतिम और निर्णायक युद्ध, फिर होगा इस्लाम का राज?

भारत-तालिबान ने क्या बात की ?

अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफी के नेतृत्व में तालिबान के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने रूस की राजधानी मास्को में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। बैठक में भारत ने युद्ध से प्रभावित अफगानिस्तान को व्यापक मानवीय सहायता प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की और खुद को इसके लिए पूरी तरह से तैयार भी बताया। रिपोर्टों के मुताबिक विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान प्रकोष्ठ के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की। भारतीय प्रतिनिधिमंडल रूस के निमंत्रण पर बैठक में भाग लेने के लिए वहां गया था। माना जा रहा है कि भारत के पुराने और सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस ने ही नई दिल्ली को तालिबान से वार्ता के लिए मनाया था।

तालिबान के प्रवक्ता जबीहउल्लाह मुजाहिद ने इस बैठक के बाद एक संक्षिप्त बयान में कहा कि दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल के बीच यह बैठक मास्को सम्मेलन से इतर हुई। हम आपको बता दें कि तालिबान के साथ भारत का पहला औपचारिक संपर्क 31 अगस्त को दोहा में हुआ था। हालांकि, इस सप्ताह बुधवार को हुई यह बैठक तालिबान द्वारा पिछले महीने अंतरिम मंत्रिमंडल की घोषणा के बाद दोनों पक्षों के बीच पहला औपचारिक संपर्क था। भारत विगत में भी अफगानिस्तान को बुनियादी ढांचे के साथ-साथ मानवीय सहायता प्रदान करता रहा है और अब खाद्यान्न की मदद कर सकता है। इस बैठक के बारे में तालिबान के प्रवक्ता जबीहउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की चिंताओं को ध्यान में रखने और राजनयिक तथा आर्थिक संबंधों में सुधार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

अब भारत और क्या करेगा ?

अब भारत सरकार ने नवंबर में अफगानिस्तान के मुद्दे पर एक बैठक करने की घोषणा की है। इसके लिए उसने पाकिस्तान, ईरान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन और रूस के सुरक्षा सलाहकारों को आमंत्रित किया है। हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि पाकिस्तान इस निमंत्रण को स्वीकार करता है या नहीं। साथ ही यह भी देखना होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की इस बैठक में क्या कोई बड़ा फैसला हो पाता है? वैसे कोई बड़ा फैसला हो पाये या नहीं, भारत अफगानिस्तान की जनता की पहले की तरह मानवीय आधार पर और एक अच्छा पड़ोसी होने के नाते मदद जारी रख सकता है। तालिबान भी जानता है कि और कोई देश जो एक रुपये की भी मदद दे रहा है उसका कोई ना कोई स्वार्थ है लेकिन भारत तब भी निस्वार्थ भाव से मदद करता रहा है जब अफगानिस्तान में लोकतंत्र था और अब भी अन्न के लिए तरस रही अफगान जनता की मदद के लिए आगे आया है जब तालिबान का शासन है।

इसे भी पढ़ें: किसी न किसी महाशक्ति का दुमछल्ला बनकर रहना पाक की किस्मत में लिखा है

पाकिस्तान के होश क्यों उड़े हुए हैं ?

दूसरी ओर पाकिस्तान भारत और तालिबान की बैठक की खबरों से इतना घबराया कि उसके तो जैसे होश ही उड़ गये। इस बैठक के अगले दिन ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख फैज हमीद भागे-भागे तालिबान के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के साथ वार्ता करने के लिए काबुल पहुंच गये। इस एक दिवसीय यात्रा के दौरान पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी और अन्य तालिबान नेताओं के साथ वार्ता की। पाकिस्तानी नेताओं की इस यात्रा को तेहरान में अगले सप्ताह होने वाली अफगानिस्तान और रूस के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले काफी अहम माना जा रहा है।

रूस ने अब तक क्या किया ?

वहीं रूस ने भी अफगानिस्तान के मुद्दे पर जिस वार्ता की मेजबानी की, उसमें तालिबान और पड़ोसी देशों से वरिष्ठ प्रतिनिधि शामिल हुए। हम आपको बता दें कि रूस ने 2003 में तालिबान को आतंकवादी संगठन घोषित किया था, लेकिन इसके बावजूद वह इस समूह से संपर्क स्थापित करने के लिए वर्षों तक काम करता रहा। वैसे इस तरह के किसी भी समूह से संपर्क करना रूस के कानून के तहत दंडनीय है, लेकिन रूसी विदेश मंत्रालय ने मुद्दे पर विरोधाभास से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि अफगानिस्तान में स्थिरता लाने में मदद के लिए तालिबान से बात करना आवश्यक है। हम आपको यह भी बता दें कि गत अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद अन्य देशों से इतर रूस ने वहां काबुल स्थित अपने दूतावास को खाली नहीं किया और तभी से इसके राजदूत तालिबान के प्रतिनिधियों से लगातार मुलाकात करते रहे हैं। ‘मॉस्को फॉर्मेट’ की बैठक में तालिबान और अफगानिस्तान के अन्य गुटों के प्रतिनिधियों के साथ ही चीन, भारत, पाकिस्तान, ईरान और पूर्ववर्ती सोवियत संघ राष्ट्रों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।

छवि क्यों सुधारने में लगा है तालिबान?

दूसरी ओर यह भी लग रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने की कवायद में जुटे तालिबान ने अपनी छवि बदलने की योजना बनाई है। इस बात के संकेत इससे भी मिलते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि तालिबान ने उन्हें बताया है कि वे ‘‘जल्द’’ ही यह घोषणा करेंगे कि सभी अफगान लड़कियों को माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने की इजाजत होगी। पिछले सप्ताह काबुल की यात्रा पर गए संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के उप कार्यकारी निदेशक उमर आब्दी ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में पत्रकारों को बताया कि अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से पांच प्रांतों- उत्तर पश्चिम में बल्ख, जौजजान और समंगान, उत्तर पूर्व में कुंदुज और दक्षिण पश्चिम में उरोजगान में पहले ही माध्यमिक स्कूलों में लड़कियों को पढ़ने की इजाजत है। उन्होंने कहा कि तालिबान के शिक्षा मंत्री ने उन्हें बताया कि वे सभी लड़कियों को छठी कक्षा से आगे अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखने की अनुमति देने के लिए ‘‘एक रूपरेखा’’ पर काम कर रहे हैं, जिसे ‘‘एक से दो महीने के बीच’’ जारी किया जाएगा। हम आपको याद दिला दें कि अफगानिस्तान में तालिबान के 1996-2001 के शासन के दौरान लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया गया था और उनके काम करने और सार्वजनिक जीवन पर रोक लगा दी गई थी। बहरहाल, अब देखना होगा कि अफगान संकट का पूरी दुनिया क्या हल निकालती है और यह भी देखना होगा कि संकट के समय तालिबान जो अपना बदला रूप दिखा रहा है क्या संकट दूर हो जाने पर कहीं वह अपना पुराना रौद्र रूप तो नहीं अपना लेगा?

- नीरज कुमार दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़