आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर विभिन्न खेमों में बंटी दुनिया से आखिर कैसे तालमेल बिठायेगा भारत?

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कमलेश पांडे । Feb 14 2025 4:00PM

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया को एआई यानी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के पूर्वाग्रहों से सावधान रहने की नसीहत भी दी है। इस तकनीक से नौकरियां जाने की आशंकाओं को खारिज करते हुए मोदी ने साफ कहा है कि इतिहास गवाह है कि तकनीक नौकरियां नहीं लेती।

जब मौजूदा दशक में अस्तित्व में आए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से उतपन्न व्यवहारिक चुनौतियों से निपटने के लिए समकालीन विश्व अमेरिका, यूरोप और चीन जैसे तीन मजबूत खेमों में बंट चुका है, तब भारत जैसे निर्गुट खिलाड़ी की भूमिका भी बढ़ जाती है और कुछ नई संभावनाएं भी पैदा होती हैं। इसलिए सवाल उठता है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर लगभग तीन खेमों में बंटी समकालीन दुनिया से आखिर कैसे तालमेल बिठायेगा भारत? 

जानकार बताते हैं कि अमेरिका और यूरोप के बीच एक भरोसेमंद पुल बनकर भारत अपनी भावी भूमिका निभा सकता है और इसकी वैश्विक जरूरत भी महसूस की जा रही है। चूंकि यूरोपीय संघ का अगुवा देश फ्रांस भारत का प्रगाढ़ मित्र है, इसलिए यह संभव भी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस अवसर को समझ चुके हैं और उसी के अनुकूल वर्तमान परिस्थितियों को तैयार भी कर रहे हैं। 

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जानकार बताते हैं कि साल 2023 में अस्तित्व में आई एआई को लेकर पहला शिखर सम्मेलन उसी वर्ष इंग्लैंड में, हुआ था, जबकि दूसरा शिखर सम्मेलन 2024 में दक्षिण अफ्रीका में, तीसरा शिखर सम्मेलन 2025 में फ्रांस में हुआ। वहीं, चौथा शिखर सम्मेलन 2026 में भारत में होगा, जिसकी मेजबानी के लिए भारत सरकार तैयार है। साथ ही मित्र देश फ्रांस ने भी इसका समर्थन किया है। 

वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया को एआई यानी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के पूर्वाग्रहों से सावधान रहने की नसीहत भी दी है। इस तकनीक से नौकरियां जाने की आशंकाओं को खारिज करते हुए मोदी ने साफ कहा है कि इतिहास गवाह है कि तकनीक नौकरियां नहीं लेती। सिर्फ इसकी प्रकृति बदल जाती है और नई तरह की नौकरियां पैदा होती है। उन्होंने बताया कि इंसानों की रोजमर्रा की जिंदगी में एआई कितनी अहम भूमिका निभा रहा है। इसलिए उन्होंने इस तकनीक के फायदों को सभी से साझा करने की वकालत भी की है। 

बता दें कि पेरिस में आयोजित ग्लोबल एआई समिट में बोलते हुए उन्होंने एआई के जिम्मेदार डिवेलपमेंट पर जोर दिया और इसके खतरों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की बात की। पीएम ने दो टूक कहा कि एआई को ओपन सोर्स सिस्टम के माध्यम से डिवेलप किया जाना चाहिए, जिससे इसकी पारदर्शिता बढ़े और सभी देशों को इसका समान लाभ मिले। चूंकि एआई से रोजगार के कई नए क्षेत्र विकसित होंगे, इसलिए हमें लोगों को स्किलिंग और री-स्किलिंग पर ध्यान देना होगा। हम इस दिशा में बड़े स्तर पर निवेश कर रहे है। 

वहीं, एक खास पहलू की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि एआई इस सदी के लिए मानवता के कोड (व्यवस्था) लिख रहा है। इसलिए इसमें दुनिया बदलने की ताकत है। इस दिशा में भारत भी अपने एक्सपीरियंस और एक्सपर्टीज को जरूरतमंद देशों/लोगों के साथ साझा करने को तैयार है, ताकि सभी के लिए इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करवाई जा सके।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पैरिस में ग्लोबल एआई समिट में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के साथ सह अध्यक्षता की और कहा कि एआई पर अगली ग्लोबल समिट भारत में होगी। वहीं, फ्रांस ने भी ऐलान किया कि एआई पर अगली ग्लोबल समिट भारत में ही होगी। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्र ने कहा कि एआई के डिवेलपमेंट को खुला और निष्पक्ष बनाने के लिए अमेरिकी उपराष्ट्रपति मोदी से सहमत दिखे। 

वहीं, ग्लोबल समिट में अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस बात से सहमति जताई कि एआई को वैचारिक पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए और यह कभी इंसानों की जगह नहीं ले सकेगा। साथ ही उन्होंने वैश्विक नेताओं को आगाह किया कि एआई में बहुत ज्यादा नियम-कानून इस इंडस्ट्री की तेजी से बढ़ती संभावनाएं बाधित हो सकती हैं। वहीं, कुछ अन्य नेताओं ने इस बात की जोरदार वकालत की कि एआई पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियमों की जरूरत है। साथ ही इसकी ग्लोबल रेस में यूरोप को तीसरा रास्ता अपनाने की दरकार है ताकि दुनिया को अमेरिका और चीन की कंपनियों पर निर्भरता से बचाया जा सके। 

उल्लेखनीय है कि पेरिस में हुए दो दिवसीय एआई एक्शन समिट ने जहां आने वाले दौर के लिए एआई की अहमियत को रेखांकित किया है, वहीं आगे के रोड मैप को दुरूस्त करने के लिए यह भी साफ कर दिया है कि इस मामले में होड़ के बावजूद सभी देशों का आपसी तालमेल बनाए रखते हुए सावधानी से आगे बढ़ना जरूरी है। इस नजरिए से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के साथ इस शिखर बैठक की सह-अध्यक्षता करते हुए अगली शिखर बैठक की मेजबानी करने की पेशकश करते हुए यह जता दिया कि भारत इस पहल को कितनी गंभीरता से लेता है।

जहां तक इस बैठक की टाइमिंग का सवाल है तो यहां पर  यह स्पष्ट करना जरूरी है कि पेरिस एआई एक्शन समिट ऐसे समय में हो रही है, जब चीनी कंपनी 'डीपसीक' पूरी दुनिया के एआई निवेशकर्ताओं को एक जबर्दस्त झटका दे चुकी है। क्योंकि बहुत ही कम समय और न्यूनतम लागत में इसने चैटजीपीटी से बेहतर एआई टूल पेश करके दुनिया को बताया कि इस फील्ड में आउट ऑफ बॉक्स सोच बड़ी चीज है। पेरिस एक्शन समिट इसी पहलू को रेखांकित करती है

वहीं, इस बैठक से यह भी साफ हो चुका है कि एआई इंडस्ट्रीज की सफलता के लिए सतर्कता बेहद जरूरी है, क्योंकि इसमें अग्रणी देश इसे अपने-अपने साम्राज्यवादी हितों के अनुरूप ढाल सकते हैं। अमेरिका और चीन ऐसा कर भी चुके हैं। जबकि यूरोप भी इसी दिशा में आगे बढ़ चुका है। इसलिए भारत को भी अपना कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा। भारत ऐसा ही कर भी रहा है। हालांकि, इसमें दो राय नहीं कि डीपसीक ने वाकई कमाल किया है। लेकिन निरंतर बदलती, विकसित होती तकनीक वाली इस फील्ड में हर इनोवेशन की अपनी सीमाएं भी होती हैं, जिनका ध्यान रखने की जरूरत होती है। खासकर सुरक्षा से जुडे पहलू को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस बिंदु पर इस चीनी इनोवेशन को भी कई तरह के सवालों का सामना करना पड़ रहा है।

जहां तक एआई को लेकर दुनियावी पारदर्शिता और तालमेल का सवाल है तो कहना न होगा कि इस नजरिए से भी यह तीसरी एआई एक्शन समिट सफल हुई है, क्योंकि इसमें 90 देश और बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस शिखर बैठक में भी कहा, एआई हमारे भविष्य का अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन किसी भी वजह से इसकी ग्रोथ को बेकाबू होने दिया गया तो उसके परिणाम खतरनाक साबित हो सकते हैं।

वहीं, जहां तक एआई तकनीक के बुनियादी विकास में भारत की भूमिका का सवाल है तो यह तीसरी बैठक भारत की भूमिका को भी खास बनाता है। क्योंकि इसका असाधारण टैलंट पूल, इसके वे इंजिनियर और वैज्ञानिक जो नाम मात्र की लागत पर बड़े-बड़े अंतरिक्ष अभियान को अंजाम देते रहे हैं, निकट भविष्य में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं। हालांकि अनुभव बताता है कि अभी तक इस मामले में भारत की पहल बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। इसलिए बेहतर यही होगा कि केंद्र सरकार एक मंत्रालय बनाकर इस तकनीक को लेकर अपनी प्राथमिकता तय करे। क्योंकि एआई इनोवेशन में भारत खुद के पीछे छूटने का जोखिम अब नहीं उठा सकता है।

खासबात यह है कि पेरिस के एआई समिट के जरिए एआई पर अमेरिका, यूरोप और चीन की आपसी वर्चस्व की लड़ाई खुलकर सामने आती दिखी है। क्योंकि एक ओर अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने जहां सीधे तौर पर यूरोप और चीन को चेतावनी दी है, तो वहीं दूसरी ओर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोप और फ्रांस को एआई की एक बड़ी ताकत बताने की कोशिश की है। हालांकि, खुशी की बात यह है कि दोनों ने ही भारत के दूरदर्शिता भरे रुख की तारीफ की है। इससे इस बात की उम्मीद बलवती हुई है कि यूरोप बनाम अमेरिका के बीच भारत एक ब्रिज की तरह काम कर सकता है। इस ग्लोबल समिट में भी भारत कुछ ऐसा ही नजर आया, जहां दोनों पक्ष एक थे।

काबिलेगौर है कि अमेरिका और ब्रिटेन ने पेरिस एआई समिट के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि इसमें एआई को सभी के हित में अंतरराष्ट्रीय ढांचे में रखने की वकालत की गई है, जो समावेशी, पारदर्शी, किफायती, सुरक्षित और भरोसेमंद हो। हालांकि, अमेरिका ने हस्ताक्षर नहीं करने का कारण नहीं बताया है, जबकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री गीर स्टारमर के प्रवक्ता ने कहा कि वह सोच-समझकर और केवल ईयू की पहल पर ही हस्ताक्षर करेंगे। 

वहीं, इस ग्लोबल समिट के दौरान फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने निशाना साधते हुए कहा कि यूरोप को तेल और गैस के लिए ड्रिल करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह पहले से हो न्यूक्लियर एनर्जी पर निर्भर है। उन्होंने कहा, मेरे एक अच्छे दोस्त  कहते है- 'Drill, baby, drill' लेकिन यहां ऐसा कहने की जरूरत नहीं है। यहां है- Plug, baby, plug' क्योंकि हमारे यहां पहले से बिजली उपलब्ध है। उन्होंने आगे कहा कि यूरोप जल्द ही एआई को बढ़ावा देने के लिए एक नई रणनीति लॉन्च करेगा, जिसे यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सला बॉन डर लेपन पेश करेंगी। उन्होंने यहां तक कहा कि हमें यूरोप में स्टार्टअप के लिए बड़ा घरेलू बाजार बनना होगा। इसलिए हम नियमों में ढील देने के पक्ष में है लेकिन एआई में लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए कुछ नियंत्रण जरूरी है। इसी नजरिए से यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सला बॉन डेर लयेन में भी कहा कि ईयू ब्यूरोक्रसी कम करेगा और एआई में निवेश बढ़ाएगा।

वहीं, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा कि एआई पर ज्यादा सरकारी नियंत्रण इस तकनीक को कमजोर कर सकता है। उन्होंने चीन पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि एआई के लिए सरकारों से समझौता करना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन द्वारा सस्ते दामों पर एआई तकनीक देना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने चेताया कि अगर कोई डील बहुत फायदेमंद लगे, तो याद रखें अगर आप किसी चीज के लिए पैसे नहीं दे रहे तो इसका मतलब है कि आप खुद प्रोडक्ट बन गए हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि, अगर आप चीन जैसे देशों से साझेदारी बनाते हैं, तो वे आपके सूचना तंत्र पर कब्जा कर लेंगे। 

वहीं, वेंस ने यूरोप के कड़े कंटेट मॉडरेशन नियमों को भी 'तानाशाही' करार दिया और कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र में शीर्ष पर बना रहेगा और यूरोपीय संघ के सख्त नियमों का यह विरोध करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अपने बड़े एआई डेवलपर्स का समर्थन करेगा, लेकिन साथ ही छोटे और बड़े सभी टेक प्लेयर्स को बराबरी का मौका दिया जाएगा। ट्रंप प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि अमेरिका में विकसित एआई प्रणालियां वैचारिक पूर्याग्रह से मुक्त हो और अमेरिका अपने नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कभी प्रतिबंधित नहीं करेगा।

वहीं, ग्लोबल टेक लीडर्स ने भी माना है कि एआई के क्षेत्र में भारत एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर उभर सकता है। सैम अल्टमैन्, ओपनए‌आई के सीईओ ने कहा कि भारत एआई का बड़ा बाजार है। हमारी कम्पनी के लिए दूसरी सबसे बड़ी मार्केट है। एआई में भारत को एक लीडर के रूप में उभर रहा है। वहीं, सुंदर पिचाई, गूगल के सीईओ ने कहा कि अच्छा टैलंट पूल और एआई टेक्नॉलजी को तेजी से अपनाने के कारण भारत एआई इनोवेशन, विकास में तेजी से आगे बढ़ने को तैयार है। वहीं, सत्य नडेला, माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन और सीईओ ने कहा कि भारत इंडिक भाषाओं के क्षेत्र में और एआई का उपयोग करके अपने उद्योगों में बदलाव ला सकता है। भारत में टैलंट है। वहीं, जेन्सेन हुआंग, एनवीडिया के सीईओ ने कहा कि भारत को अपनी खुद की एआई डिवेलप करनी चाहिए। देश में अगली पीढ़ी एआई डिलिवरी के लिय बैक-ऑफिस होगी। वहीं, अरविंद कृष्णा, आईबीएम के सीईओ ने कहा कि भारत में विशाल जनसख्या और डेटा वेल्थ एआई परिदृश्य में एक अद्वितीय लाभ बनाने में मदद करेगी। 

इन बातों से स्पष्ट है कि एआई के क्षेत्र में भारत भी एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए युवाओं को भी मानसिक रूप से तैयार कर लिया है। फ्रांस भी भारत की इस क्षमता को पहचान चुका है। चूंकि वह यूरोप को इस मामले में अमेरिका या चीन पर निर्भर नहीं होने देना चाहता है, इसलिए भारत के साथ भरोसेमंद रणनीतिक सम्बन्धों को इसी बहाने एक नया आयाम भी दे रहा है। राष्ट्रपति मैक्रों ने ठीक ही कहा है कि उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ वो दूढ़ता से मानते है कि भारत और फ्रांस दोनों महान शक्तियां है और दोनों देशों के बीच एक विशेष संबंध है। इसलिए दोनों देश किसी अन्य तीसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं। इसी में भारत और फ्रांस का दूरगामी हित भी निहित है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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