दिल्ली विधानसभा चुनावः कांग्रेस और आप के बीच आवागमन शुरू
वैसे इस आवागमन में कुछ अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों एक जैसी पार्टियां हैं। आम आदमी पार्टी बनी तो उसने कांग्रेस की जमीन हथियार कर ही अपना झोंपड़ा बनाया। यह बात और है कि उस झोंपड़ी को धीरे-धीरे शीश महल में बदल दिया।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव पास आ रहे हैं तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में आवागमन शुरू हो गया है। कोई कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में जा रहा है तो कोई आम आदमी पार्टी से कांग्रेस में जा रहा है। आज ही खबर आई है कि कांग्रेस नेता वीर सिंह धींगान ने कांग्रेस का हाथ झटक कर आम आदमी पार्टी का हाथ थाम लिया। उसी के नीचे दूसरी खबर छपी थी कि आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक हाजी इशराक खान कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। वैसे कुछ दिनों से ऐसी खबरें बिला नागा रोज आ रही है, ऊपर कांग्रेस से आम आदमी पार्टी में जाने की खबर और नीचे आम आदमी पार्टी से कांग्रेस में जाने की खबर।
वैसे पिछले नगर निगम चुनाव से पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। हमारे क्षेत्र से कांग्रेस के पुराने चुनाव हारे विधायक सुभाष मल्होत्रा टिकट मिलने के आश्वासन पर आम आदमी पार्टी में आ गए तो आम आदमी पार्टी के ब्लॉक अध्यक्ष ने टिकट न मिलने की संभावना के कारण कांग्रेस का हाथ थाम लिया। दोनों को टिकट मिल गए पर फायदा कुछ नहीं हुआ। चुनाव परिणाम आया तो सीट बीजेपी जीत गई।
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वैसे इस आवागमन में कुछ अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों एक जैसी पार्टियां हैं। आम आदमी पार्टी बनी तो उसने कांग्रेस की जमीन हथियार कर ही अपना झोंपड़ा बनाया। यह बात और है कि उस झोंपड़ी को धीरे-धीरे शीश महल में बदल दिया। जो लोग परंपरा से कांग्रेस को वोट दिया करते थे, झुग्गी वाले, रिक्शा वाले, अवैध कॉलोनी वाले, पैसे लेकर वोट बेचने वाले, वे सब आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गए। इन वर्गों के वोट कांग्रेस से हटकर आम आदमी पार्टी में चले गए तो कांग्रेस का दीवाला निकल गया और आम आदमी पार्टी की दुकान चल गई।
दुकान को और अच्छा चलने के लिए आम आदमी पार्टी ने इन तबके के लोगों को विशेष रूप से लुभाने के लिए बिजली और अपनी कुछ सीमा तक मुफ्त पानी देने का वादा कर दिया तो उनकी दुकान और अच्छे से चल गई। उधर महिला वोटरों को लुभाने के लिए बस यात्रा फ्री कर दी, फिर भले ही सरकार का दीवाना निकलता हो तो निकले। लीपा पोती करके गाड़ी भले ही खिंच रही हो पर दिल्ली वालों को ना तो नई सड़क मिल पाई, ना प्रदूषण काबू हुआ। पानी का तो हाल ही बेहाल है। कभी आया तो कभी नहीं आया, आया भी तो कभी-कभी गंदा भी आता रहा. अब जल बोर्ड का घाटा कौन भरेगा।
दोनों पार्टियों में एक और चीज भी मिलती-जुलती रही वह यह कि दोनों पार्टियों की एक ही नीति रही, जैसे भी हो, सत्ता में आओ और उसके लिए गरीबों व अल्पसंख्यकों को पटाओ और अपना सॉलिड वोट बैंक बनाओ। कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर हल्ला बोलकर आम आदमी पार्टी ने अपना नई दुल्हन का चिकना चुपड़ा चेहरा दिखाया और कांग्रेस के वोटरों को अपना दीवाना बना लिया।
अब काठ की हांडी कितनी देर तक चढ़ती, भ्रष्टाचार का शोर मचाकर सत्ता में आए खुद भ्रष्टाचारी बन बैठे। कांग्रेस को तो फिर भी पुराना अनुभव था, इसलिए सब कुछ कर करके भी पकड़े नहीं जाते थे पर नए लोगों को इतना अनुभव नहीं था, इसलिए जल्दी ही पकड़ में आ गए। अब हालात यह है कि जनता की नजर में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक जैसी पार्टियां हो चुकी हैं। जिसे कांग्रेस में टिकट मिलने की संभावना नजर नहीं आती, वह आम आदमी पार्टी में चला जाता है और जिसे आम आदमी पार्टी में टिकट मिलना मुश्किल लग रहा हो, वह कांग्रेस में आ जाता है।
वैसे आवागमन जीवन का नियम है। कोई आता है तो कोई जाता है। यह आवागमन चलता रहेगा आगामी चुनाव तक। उसके बाद तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे कि किधर पलड़ा अधिक भारी होता है, जिसका पलड़ा भारी हुआ, उस ओर गमन तेज हो जाएगा।
- अशोक गुप्त
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