स्पेशल पैकेज देने से पहले कुछ नए मापदंड तय किये जाएं जो सर्वस्वीकार्य हों

modi cabinet
ANI
कमलेश पांडे । Jul 2 2024 1:11PM

पिछड़ेपन, ज्यादा आदिवासी आबादी और कम राजस्व का हवाला देकर उपरोक्त राज्य लंबे समय से अपने लिए विशेष दर्जे की मांग करते आये हैं। हालांकि 14वां वित्त आयोग केंद्र सरकार को काफी पहले ही यह सलाह दे चुका है कि इस कैटिगरी में अब किसी राज्य को नहीं जोड़ा जाए।

अपने देश में कई राज्य ऐसे हैं जो स्पेशल स्टेटस या स्पेशल पैकेज की मांग केंद्र सरकार से करते आये हैं, लेकिन यह दर्जा या सुविधा इन्हें कबतक मिलेगी, निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता है। हां, इतना जरूर है कि बिहार, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्य समय-समय पर अपने लिए विशेष दर्जे या विशेष पैकेज की मांग करते रहे हैं, जो स्वाभाविक भी है। 

बताया जाता है कि पिछड़ेपन, ज्यादा आदिवासी आबादी और कम राजस्व का हवाला देकर उपरोक्त राज्य लंबे समय से अपने लिए विशेष दर्जे (स्पेशल स्टेटस) की मांग करते आये हैं। हालांकि 14वां वित्त आयोग केंद्र सरकार को काफी पहले ही यह सलाह दे चुका है कि इस कैटिगरी में अब किसी राज्य को नहीं जोड़ा जाए। यही वजह है कि कुछ राज्यों ने अब अपने सुर बदल लिए हैं और विशेष दर्जे की जगह विशेष पैकेज की मांग करने लगे हैं।

समझा जाता है कि भले ही पिछली कार्यकाल तक बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार 14वें वित्त आयोग का हवाला देकर इस मांग को ठुकरा रही थी, लेकिन अब वह आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ टीडीपी और बिहार में काबिज जेडीयू के समर्थन पर टिकी हुई है, इसलिए अब मोदी सरकार भी अपने पुराने रूख पर कायम रह पाएगी, ऐसा मुझे नहीं लगता। हां, इस मांग में इतना बदलाव जरूर दृष्टिगोचर हो रहा है कि अब बिहार और आंध्रप्रदेश जैसे राज्य विशेष दर्जे की जगह विशेष पैकेज की मांग करने लगे हैं, जिससे इंकार करने की कोई वजह भी किसी नहीं दिखती।

इसे भी पढ़ें: Chai Par Sameeksha: Rahul Gandhi ने संसद के पहले ही सत्र में Modi को इतने सख्त तेवर क्यों दिखाए?

दरअसल, विशेष राज्य का दर्जा देने का किस्सा आजादी के बाद के दूसरे दशक में शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने महसूस किया कि विकास की दौड़ में पिछड़ रहे कुछ राज्यों को सहारा देना होगा। इसके दृष्टिगत योजना आयोग के उपाध्यक्ष डी आर गाडगिल के फार्मूले पर विशेष राज्य का दर्जा यानी स्पेशल कैटिगरी स्टेटस की व्यवस्था की गई। जिसमें पहाड़ी राज्यों, ज्यादा आदिवासी आबादी वाले राज्यों, सीमावर्ती राज्यों, आर्थिक और बुनियादी ढांचे के लिहाज से पिछड़े राज्यों और ऐसे राज्यों पर विचार किया गया, जो अपने लिए पर्याप्त राजस्व की व्यवस्था न कर पाते हों। 

इस दृष्टिकोण से प्रारंभ में जम्मू-कश्मीर, असम और नागालैंड को दर्जा मिला। यद्यपि बाद में इसकी सूची बढ़ती गई और अब उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश सहित 11 राज्य इस सूची में शामिल किए जा चुके हैं। बताया जाता है कि विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने वाले राज्यों को केंद्र सरकार से ज्यादा वित्तीय मदद मिलती है। ऐसे राज्यों को केंद्रीय योजनाओं के लिए 90 प्रतिशत फंड केंद्र सरकार देती है और 10 प्रतिशत फंड की राज्य सरकार को देनी होती है, यानी 90:10 का अनुपात। जबकि दूसरे राज्यों में यह अनुपात 60:40 का होता है। 

वहीं, विशेष दर्जे वाले राज्यों को कुछ योजनाओं में अलग से भी मदद मिलती है। यही वजह है कि 14वें वित्त आयोग (फाइनैंस कमीशन) ने विशेष राज्य का दर्जा वाली सूची में अब और अधिक राज्यों को न जोड़ने की सलाह दी थी। हालांकि अब एनडीए गठबंधन के दबाव के मद्देनजर मोदी सरकार स्पेशल पैकेज के जरिए बीच का रास्ता निकाल सकती है। इसकी वजह ये है कि अब बिहार की जेडीयू ने अपने प्रस्ताव में स्पेशल स्टेटस या स्पेशल पैकेज की बात कर इसका संकेत दे दिया है। वहीं, आंध्रप्रदेश की टीडीपी भी स्पेशल स्टेटस के बजाय स्पेशल पैकेज पर फोकस कर रही है, क्योंकि चुनावी वायदे को पूरे करने के लिए उसे जल्द ही बड़ी रकम की जरूरत है।

इधर, आर्थिक मामले के जानकारों का कहना है कि सामाजिक-आर्थिक विकास के पैमाने पर बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की मांग जायज है। जबकि आंध्र प्रदेश पिछड़ा नहीं है। यह बात दीगर है कि आंध्रप्रदेश को सबसे ज्यादा राजस्व हैदराबाद से मिलता था और वह उसके हाथ से चला गया। इसलिए उसे विशेष राज्य का दर्जा की जरूरत है। उधर, आंध्रप्रदेश के विभाजन से बना तेलंगाना राज्य को मदद की जरूरत ज्यादा है। 

वहीं, बिहार के बारे में दलील दी जा रही है कि पिछले 3 दशकों से वहां का गवर्नेंस ठीक नहीं है। इसलिए जब तक गवर्नेंस ठीक नहीं होगा, विशेष राज्य का दर्जा या विशेष पैकेज देने से बात नहीं बनने वाली है। इसलिए केंद्र सरकार भी पशोपेश में है। वह इस बात को समझ रही है कि यदि इन राज्यों को विशेष पैकेज के नाम पर मदद दे दी जाए तो उस पर अधिक वित्तीय बोझ नहीं आएगा, क्योंकि टैक्स रेवेन्यू रिकॉर्ड तेज रफ्तार से बढ़ रहा है। 

वैसे भी कोई राज्य पिछड़ रहा हो तो उसकी मदद की जिम्मेदारी केंद्र की है, क्योंकि वह सबका अभिभावक है। हां, इतना जरूर है कि 21वीं सदी के अनुरूप इस आशय का वह एक नया मानक बनाये और उसी के तहत जरूरतमंद राज्यों की मदद करे। अन्यथा अन्य राज्यों में भी यह मांग उठेगी, जिससे केंद्र सरकार की परेशानी बढ़ेगी। ऐसा इसलिए कि केंद्र में गठबंधन सरकार का युग वापस लौट चुका है और अब हर राज्य अपने संसदीय संख्याबल के हिसाब से केंद्र की बांहें मरोड़ने की तैयारी करते हुए प्रतीत हो रहे हैं, जिससे सचेत रहने की जरूरत है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़