OBC को लेकर मोदी सरकार को घेर रहे राहुल गांधी क्या इस मुद्दे पर कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड जानना चाहेंगे
यहां एक बात और समझने की जरूरत है कि जहां तक केंद्र सरकार के पदों में ओबीसी को आरक्षण की बात है तो यह 1993 में पेश किया गया था और इसके तहत पहली नियुक्ति पाने वाले अधिकारीगण 1995 बैच के थे जोकि अब तक सचिव रैंक तक नहीं पहुँचे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिना किसी तथ्य के मोदी सरकार पर तमाम मुद्दों को लेकर हमले बोलते हैं। इसी कड़ी में आजकल वह जाति जनगणना की मांग करते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि देश को चला रहे अधिकारियों में मात्र तीन केंद्रीय सचिव ही ओबीसी समुदाय से हैं। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि इस मामले में कांग्रेस का अपना खुद का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है? इस समय देखें तो कांग्रेस चार राज्यों- छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में अपने बलबूते सरकार चला रही है। इन चारों ही राज्यों में मुख्य सचिव सामान्य श्रेणी से संबद्ध हैं। इसी प्रकार यदि हम कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों वाले विपक्षी गठबंधन इंडिया पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि वहां भी ओबीसी को ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और केरल के मुख्य सचिव भी अपर कास्ट से संबद्ध हैं जबकि तमिलनाडु एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां मुख्य सचिव शिव दास मीणा एसटी श्रेणी से संबद्ध हैं।
यही नहीं, सरकारी रिकॉर्ड यह भी दर्शाते हैं कि 1985 से 1989 तक जब राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे, तब केंद्र में सचिव पद पर कोई भी अधिकारी आरक्षित वर्ग यानि एससी/एसटी श्रेणी से नहीं था। अगर हम 2023 के हालात को देखें तो केंद्र में सात सचिव एससी श्रेणी और पांच एसटी श्रेणी से हैं। इसी प्रकार यदि हम 2014 के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो उस समय केंद्र में अतिरिक्त सचिव और संयुक्त-सचिव पद पर ओबीसी समुदाय से संबंधित सिर्फ दो ही अधिकारी थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इन पदों पर ओबीसी अधिकारियों की संख्या 2 से बढ़कर 63 हो चुकी है। हम आपको यह भी बता दें कि आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में केंद्र सरकार में प्रधान सचिव और सचिव पद पर काम करने वाले सभी अधिकारी सामान्य श्रेणी से ही थे।
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यहां एक बात और समझने की जरूरत है कि जहां तक केंद्र सरकार के पदों में ओबीसी को आरक्षण की बात है तो यह 1993 में पेश किया गया था और इसके तहत पहली नियुक्ति पाने वाले अधिकारीगण 1995 बैच के थे जोकि अब तक सचिव रैंक तक नहीं पहुँचे हैं। देखा जाये तो किसी भी आईएएस अधिकारी को अपना कॅरियर शुरू करने से लेकर केंद्र में सचिव पद तक पहुँचने तक लगभग ढाई से तीन दशक तक का समय लग जाता है। इसलिए राहुल गांधी ने जब यह कहा कि केंद्र में ओबीसी को पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो एक बार फिर साबित हो गया कि वह बिना जाने समझे कुछ भी कह देते हैं। यही नहीं राहुल गांधी ने महिला आरक्षण विधेयक में भी ओबीसी के लिए आरक्षण की वकालत की जबकि मनमोहन सरकार जब यह विधेयक लायी थी तब कांग्रेस ने भी उसमें ओबीसी आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था। यही नहीं, राहुल गांधी आज जिस जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं उसके बारे में उन्हें यह जवाब भी देना चाहिए कि साल 2011 में जब उनकी पार्टी की सरकार ने देश में जनगणना कराई थी तो उसने जातिगत आंकड़ों को क्यों नहीं जारी किया था?
बहरहाल, विपक्ष का काम सरकार पर सवाल उठाना है इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन सवाल का आधार पुख्ता होना चाहिए। साथ ही सवाल उठाने से पहले अपने गिरेबां में भी झांक कर देखना चाहिए। आज राहुल गांधी जो भी सवाल उठाते हैं उनसे पूर्व की कांग्रेस सरकारों पर भी सवाल उठ जाते हैं। राहुल गांधी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ओबीसी से संबद्ध हैं और गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में राहुल गांधी को जवाब दे ही चुके हैं कि देश को सचिव नहीं बल्कि सरकार चलाती है और मोदी सरकार के सांसदों में ओबीसी की संख्या कांग्रेस के कुल सांसदों से ज्यादा है। अमित शाह ने बताया था कि मोदी सरकार में 29 फीसदी यानि 85 सांसद ओबीसी से हैं और 29 केंद्रीय मंत्री भी ओबीसी से ही संबद्ध हैं।
-नीरज कुमार दुबे
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