माइक बंद करने का आरोप लगाने वाले विपक्षी नेता दूसरों के बोलने का अवसर क्यों छीनना चाहते हैं?

mamata banerjee
ANI

जो मुख्यमंत्री अपने राज्य के साथ भेदभाव करने का केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं यदि वह यूपीए और एनडीए शासन के दौरान अपने राज्य को मिली केंद्रीय मदद पर एक श्वेतपत्र ले आयें तो हकीकत उन्हें भी पता चल जायेगी और सारी स्थिति जनता के समक्ष भी आ जायेगी।

नीति आयोग की बैठक का विपक्ष शासित राज्यों के तमाम मुख्यमंत्रियों ने बहिष्कार किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक का बहिष्कार तो नहीं किया लेकिन इसमें शामिल होने से पहले ही उन्होंने यह ऐलान कर दिया था कि वह विरोध जताकर आयेंगी। ऐसा उन्होंने किया भी। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान उनका माइक बंद कर दिया गया। देखा जाये तो विपक्ष के नेता आजकल माइक बंद करने का आरोप धड़ल्ले से लगा रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना होगा कि संसद की कार्यवाही हो या अन्य कोई सरकारी बैठक, उसमें भाग लेने वालों के लिए कुछ नियम हैं। सबके लिए समय आवंटित करने और कौन कितना समय बोलेगा इसका निर्धारण करने के लिए भी पहले से नियम बने हुए हैं। यदि कोई निर्धारित अवधि से ज्यादा समय बोलेगा तो जाहिर है कि यह दूसरों के अधिकारों का हनन होगा।

देखा जाये तो नीति आयोग की बैठक को लेकर ममता बनर्जी भले कुछ भी आरोप लगायें, मगर सच यह है कि उनके आग्रह पर उन्हें उनके निर्धारित समय से पहले ही बोलने का अवसर दिया गया। उनके भाषण का समय खत्म होने का इशारा घड़ी ने किया और भाषण खत्म करने का संकेत देने वाली बेल भी उनके लिए नहीं बजायी गयी।

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इसके अलावा, जो मुख्यमंत्री अपने राज्य के साथ भेदभाव करने का केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं यदि वह यूपीए और एनडीए शासन के दौरान अपने राज्य को मिली केंद्रीय मदद पर एक श्वेतपत्र ले आयें तो हकीकत उन्हें भी पता चल जायेगी और सारी स्थिति जनता के समक्ष भी आ जायेगी। केंद्र पर अपने राज्य से भेदभाव का आरोप लगाने वाले मुख्यमंत्रियों को यह भी बताना चाहिए कि उनकी किन मांगों को अनसुना कर दिया गया? इन मुख्यमंत्रियों को यह भी बताना चाहिए कि अपने राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने क्या-क्या कदम उठाये और उनका क्या परिणाम रहा?

वैसे, ममता बनर्जी ने बैठक से बीच में ही बाहर आकर जो आरोप लगाये हैं उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि यह सब इंडिया गठबंधन के नेताओं की सोची समझी रणनीति के तहत उठाया गया कदम था। दरअसल विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जब नीति आयोग की बैठक के बहिष्कार का निर्णय किया था तब उन राज्यों में विपक्ष और जनता ने सवाल उठाया था कि जब प्रधानमंत्री के समक्ष अपने राज्य की मांगों को सीधा रखने का अवसर मिला है तो उसका लाभ क्यों नहीं उठाया जा रहा? ऐसे में इंडिया गठबंधन में शामिल मुख्यमंत्रियों ने अपने प्रदेश की जनता की नजरों में नीति आयोग की बैठक के बहिष्कार के निर्णय को सही ठहराने के लिए ममता बनर्जी को भेजा। ममता बनर्जी से गलती सिर्फ इतनी हो गयी कि उन्होंने पहले ही कह दिया था कि वह बैठक में विरोध जताएंगी। इसलिए जब वह बाहर आकर केंद्र सरकार पर आरोपों की बौछार कर रहीं हैं तो किसी को यकीन नहीं हो रहा। वैसे रणनीति के मुताबिक, विपक्ष ने पहले ही तैयारी कर रखी थी कि ममता बनर्जी के अपमान का आरोप लगाकर हंगामा खड़ा किया जायेगा। इसलिए संसद के वर्तमान सत्र के दौरान विपक्ष का और उग्र रूप देखने को मिल सकता है।

बहरहाल, यह साफ प्रदर्शित हो रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनावों में जनता ने विपक्ष को जो ताकत दी है उसका वह सदुपयोग नहीं कर पा रहा है। सिर्फ हंगामे की राजनीति और सरकार को अपनी ताकत दिखाने का खेल चल रहा है। हो सकता है कि कुछ लोग इस सबको पसंद कर रहे हों लेकिन इस तरह की राजनीति ज्यादा दिन नहीं चला करती। सरकार को काम करने से रोकना और सरकार के फैसलों के बारे में भ्रम का माहौल बनाना स्वस्थ राजनीति नहीं है। साथ ही अपनी कमियों तथा नाकामियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना राजनीतिज्ञों को भले राजनीतिक रूप से तात्कालिक लाभ दे जाये मगर यह उनके राज्य के हित में कतई नहीं है।

-नीरज कुमार दुबे

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