अमित शाह के आश्वासन को भाजपा ने क्यों किया दरकिनार? क्यों घाटी की 28 सीटों पर नहीं उतारे उम्मीदवार?
जहां तक कश्मीर में भाजपा कार्यकर्ताओं की निराशा की बात है तो इस संबंध में हम आपको बता दें कि इनमें से कई लोगों ने मीडिया से बातचीत में खुलकर यह कहा है कि यदि पार्टी चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं उतार रही है तो फिर उन्हें लगता है कि इस पार्टी में उनका कोई भविष्य नहीं है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर और अपने दम पर सरकार बनाने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरी भाजपा इस केंद्र शासित प्रदेश में बिल्कुल नई रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। भाजपा जम्मू-कश्मीर की 90 सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत तो चाह रही है मगर उसने 28 सीटों पर अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे हैं इसलिए सवाल उठ रहा है कि जब सभी सीटों पर वह लड़ ही नहीं रही है तो सरकार कैसे बना लेगी? हम आपको बता दें कि भाजपा घाटी की सिर्फ 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। देखा जाये तो कश्मीर घाटी में 28 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने का भाजपा का फैसला हैरानी भरा है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि पार्टी जम्मू-कश्मीर की सभी 90 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। गत सप्ताह भाजपा का संकल्प पत्र जारी करने केंद्र शासित प्रदेश के दौरे पर आये अमित शाह ने दावा किया था कि भाजपा ही केंद्र शासित प्रदेश में सरकार बनाएगी। इसलिए सवाल उठता है कि भाजपा सरकार बनाने लायक नंबर कहां से लायेगी?
हम आपको बता दें कि कश्मीर घाटी में भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में कड़ी मेहनत कर अपना पार्टी संगठन खड़ा किया था और विभिन्न क्षेत्रों में उसके पास समर्थकों की अच्छी खासी तादाद भी है लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने 28 सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे जिससे पार्टी के तमाम कार्यकर्ता नाराज बताये जा रहे हैं। हालांकि भाजपा इस नाराजगी को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही और उसका कहना है कि कश्मीरी जनता हमें उन 19 सीटों पर भारी बहुमत देगी जहां हमने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। मगर कश्मीर घाटी में भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं उतार रही है तो फिर उन्हें लगता है कि इस पार्टी में उनका कोई भविष्य नहीं है। श्रीनगर में एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि हमने वर्षों से विपरीत माहौल में पार्टी को खड़ा करने के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन जब हमें पुरस्कृत करने का समय आया, तो पार्टी ने हम पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने या तो सीटें छोड़ दीं या ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जो पार्टी में नए हैं।
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कश्मीर घाटी के भाजपा नेता और कार्यकर्ता अमित शाह के वादे पर भी सवाल उठा रहे हैं। हम आपको याद दिला दें कि इसी साल मई में घाटी की अपनी यात्रा के दौरान, भाजपा नेताओं के साथ बातचीत करते हुए अमित शाह ने लोकसभा चुनाव के दौरान कश्मीर घाटी की सभी तीन सीटों को छोड़ने के फैसले पर खेद व्यक्त किया था। हम आपको याद दिला दें कि लोकसभा चुनावों में जम्मू में आने वाली दो सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी और उसने कश्मीर की तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। अमित शाह ने उस समय पार्टी कार्यकर्ताओं से जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए तैयार रहने का आग्रह करते हुए कहा था कि भाजपा इस बार सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
इसलिए सवाल उठ रहा है नेताओं और कार्यकर्ताओं को दिये गये आश्वासन के बावजूद भाजपा ने अपना मन क्यों बदला? हम आपको बता दें कि कश्मीर में पार्टी के 19 उम्मीदवारों में दक्षिण कश्मीर की 16 विधानसभा सीटों में से आठ, मध्य कश्मीर की 15 में से छह और उत्तरी कश्मीर की 16 विधानसभा सीटों में से पांच शामिल हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि वह घाटी में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं कर रहे हैं और केवल 19 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का निर्णय एक सोचा समझा फैसला है ताकि कुछ स्वतंत्र उम्मीदवारों को जीत हासिल करने में मदद मिल सके। भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनावों में भी कश्मीर घाटी की तीनों लोकसभा सीटें इसलिए छोड़ी गयीं थीं कि अन्य ताकतवर उम्मीदवार उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को हरा सकें और पार्टी की वह रणनीति कामयाब रही थी। भाजपा सूत्रों का कहना है कि कश्मीर घाटी में इस बार कई स्वतंत्र उम्मीदवार जीतने की हैसियत रखते हैं इसलिए उनकी राह में बाधा बनना सही नहीं है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि यह स्वतंत्र उम्मीदवार जीत हासिल करते हैं तो सरकार बनने की स्थिति में पार्टी की मदद कर सकते हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि 28 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला इसलिए भी लिया गया है ताकि वंशवादी राजनीति करने वाले नेताओं को हराने में अन्य प्रबल उम्मीदवारों की मदद की जा सके।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व जानता है कि श्रीनगर की एक सीट पर ही उसकी जीत की पूरी संभावना है। इसलिए छोड़ी गयी सीटों पर सीधे पार्टी के उम्मीदवार नहीं उतार कर डमी उम्मीदवार उतारे गये हैं जो समय आने पर भाजपा के लिए मददगार साबित होंगे। हालांकि भाजपा की इस रणनीति को कश्मीरी नेता बखूभी समझ रहे हैं। हम आपको बता दें कि नेशनल कांफ्रेंस का अब्दुल्ला परिवार और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती खुलेआम कह रहे हैं कि भाजपा ने निर्दलीयों और नये दलों की फौज उतार दी है ताकि कश्मीर में दशकों से राजनीति कर रहे दलों के समीकरण बिगड़ जायें। यही नहीं, दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से भाजपा उम्मीदवार रफीक वानी ने भी खुले तौर पर दावा कर दिया है कि नए क्षेत्रीय दल और निर्दलीय हमारे ही हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि इंजीनियर राशिद हमारे हैं, सज्जाद लोन भी हमारे हैं, अल्ताफ बुखारी भी हमारे हैं और गुलाम नबी आज़ाद भी हमारे ही हैं, निर्दलीय उम्मीदवार भी हमारे ही हैं।
हम आपको बता दें कि भाजपा का प्रयास है कि उसे जम्मू में 35 और कश्मीर से सभी 19 सीटें मिल जाएं ताकि 90 सदस्यीय विधानसभा में वह स्पष्ट बहुमत हासिल कर सके। भाजपा को यह भी लगता है कि कश्मीर में पांच पार्टियां समय आने पर उसका समर्थन कर सकती हैं। घाटी में चर्चाएं तो यहां तक हैं कि अभी कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही नेशनल कांफ्रेंस भी जरूरत पड़ने पर सरकार गठन के लिए भाजपा के साथ जा सकती है। हम आपको याद दिला दें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में नेशनल कांफ्रेंस एनडीए का हिस्सा रह चुकी है। उस समय उमर अब्दुल्ला वाजपेयी सरकार में विदेश राज्य मंत्री थे।
बहरहाल, घाटी की 28 सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारने के फैसले के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रचार की शुरुआत कश्मीर घाटी से ही करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ रहे भाजपा उम्मीदवारों के प्रचार के लिए 19 सितंबर को श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर पार्क में एक चुनावी रैली को संबोधित करेंगे। बताया जा रहा है कि इस रैली में करीब 30,000 पार्टी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की संभावना है। देखना होगा कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति का ऊँट किस करवट बैठता है?
-नीरज कुमार दुबे
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