सामाजिक न्याय के आंदोलन से उपजे नेताओं ने कभी पिछड़े वर्ग का ध्यान नहीं रखा
मधेपुरा शहर की चर्चा तो बहुत होती है लेकिन यह क्षेत्र विकास की बाट अब तक जोह रहा है। मधेपुरा से लगभग 10 किमी दूर, जैसे ही कोई पूर्णिया-सहरसा राजमार्ग से दाहिनी ओर मुड़ता है और रेलवे लाइन पार करता है तो टिन की छत वाले कच्चे घरों की श्रृंखला आपको दिखाई पड़ेगी।
लोकसभा चुनावों में विपक्ष की ओर से संविधान और आरक्षण बचाने की दुहाई दी जा रही है तो सरकार का कहना है कि वह संविधान और आरक्षण की सुरक्षा के लिए चट्टान बन कर खड़ी रही है और आगे भी ऐसा ही करती रहेगी। देखा जाये तो इस बार के आम चुनाव में प्रचार में मुद्दे तो कई उठ रहे हैं लेकिन जनता के असल मुद्दे परिदृश्य से गायब होते जा रहे हैं। गरीबों की बात सभी दल कर रहे हैं। गरीब यह देख कर खुश हैं कि उन्हें बहुत याद किया जा रहा है लेकिन वह यह बात जानते हैं कि मतदान के बाद उनकी सुध लेने कोई नहीं आयेगा। सभी दल सामाजिक न्याय की बात भी कर रहे हैं लेकिन वास्तविक सामाजिक न्याय तभी होगा जब सबका आर्थिक सशक्तिकरण होगा। इसके अलावा शिक्षा को सस्ता कर सबके लिए सुलभ बनाया जायेगा।
सामाजिक न्याय की मांग सबसे पहले बिहार से उठी थी। यह मांग उठायी थी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने। बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के राजनीतिक सफर की बात करें तो आपको बता दें कि बिहार के मधेपुरा संसदीय क्षेत्र के भागलपुर से अलग होने के बाद, मंडल ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर 1967 का लोकसभा चुनाव जीता था। वह 1968 में थोड़े समय के लिए बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे। मंडल यादव समुदाय से थे और उन्हें दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया था। 1978-80 के दौरान वह मंडल आयोग की रिपोर्ट के लेखक बने, जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा की सिफारिश की थी। मंडल आयोग की रिपोर्ट को 1990 में वीपी सिंह सरकार द्वारा लागू किया गया था। इस घटनाक्रम के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश में कई क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ था जोकि आज तक राजनीतिक परिदृश्य में काफी महत्व रखते हैं।
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मधेपुरा शहर की चर्चा तो बहुत होती है लेकिन यह क्षेत्र विकास की बाट अब तक जोह रहा है। मधेपुरा से लगभग 10 किमी दूर, जैसे ही कोई पूर्णिया-सहरसा राजमार्ग से दाहिनी ओर मुड़ता है और रेलवे लाइन पार करता है तो टिन की छत वाले कच्चे घरों की श्रृंखला आपको दिखाई पड़ेगी। यहां पर मुरहो गांव के अंत में पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का स्मारक है। मंडल स्मारक से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर मुसहर टोले के एक कोने में, एक मिट्टी की झोपड़ी है, जहां क्षेत्र के पहले संसद सदस्य किराई मुसहर के पोते रहते हैं। यह बातें हम आपको इसलिए बता रहे हैं कि नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की ओर से जाति जनगणना के मुद्दे पर राजनीति तो बहुत की गयी लेकिन पिछड़ों के लिए कुछ नहीं किया गया। यही नहीं मंडल के विचारों को भी इन दलों की ओर से दरकिनार कर दिया गया है।
देखा जाये तो देश की सामाजिक न्याय की राजनीति के अग्रदूत, मंडल की विचारधारा ने समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सहित कई समाजवादी नेताओं को जन्म दिया। लेकिन इन दलों ने मंडल को भुला दिया। आज मंडल का पैतृक घर और उनके नाम पर स्मारक मुरहो गांव में उपेक्षा के शिकार दिखते हैं। इस गांव के लोगों का कहना है कि लालू और नीतीश ने सामाजिक न्याय आंदोलन को कमजोर कर दिया क्योंकि दोनों ने अपनी-अपनी जातियों को बढ़ावा दिया और दलितों को कुछ नहीं दिया इसीलिए वह अब भी गरीब बने हुए हैं। गांव के लोगों का कहना है कि महादलितों की हालत और इस गांव की हालत देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर राजनीति करने वालों ने देश और समाज को कुछ नहीं दिया।
हम आपको बता दें कि यादवों के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्र मधेपुरा में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान हो रहा है। यहां के लोगों का कहना है कि मुरहो गांव से शुरू हुए सामाजिक न्याय के गौरवशाली आंदोलन से जुड़ी यादें जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं। उल्लेखनीय है कि मुरहो गांव यादव बहुल है और इसके अन्य समुदायों में कुर्मी और पचपनिया जैसे कुछ अन्य ओबीसी समूहों के साथ-साथ महादलित भी शामिल हैं। यहां के लोग इस गांव का भाग्य बदलने की उम्मीद छोड़ चुके हैं।
गांव के युवक कहते हैं कि बीएड की डिग्री ली, आईटीआई का प्रमाणपत्र लिया लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली। अधिकांश युवक स्कूली बच्चों को खुले में ट्यूशन पढ़ा कर अपना काम चलाते हैं। बेरोजगारी की स्थिति को लेकर युवकों की नाराजगी हर दल से है। युवकों का कहना है कि कोई भी वास्तविक मुद्दों के बारे में बात नहीं कर रहा है। असली मुद्दा बेरोजगारी है। युवकों का कहना है कि बड़ी डिग्री लेने के बावजूद चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन किया है लेकिन एक साल से परीक्षा ही आयोजित नहीं की जा रही है। युवकों का कहना है कि परीक्षा आयोजित भी हो तो पेपर लीक हो जाता है जिससे बड़ा नुकसान होता है। गांव वालों की शिकायत है कि यहां की सुध लेने के लिए कोई राजनेता नहीं आता है। लोगों का कहना है कि हर घर जल योजना के तहत आ रहा पानी अच्छी गुणवत्ता का नहीं है। लोगों का कहना है कि नल तो हैं लेकिन गांव में नालियां नहीं हैं जिससे गंदगी का अंबार लगा रहता है।
हम आपको बता दें कि मधेपुरा में 2019 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शरद यादव को 3 लाख से अधिक वोटों से हराया था। इस बार, मौजूदा सांसद दिनेश का मुकाबला राजद के चंद्रदीप यादव से है, जो शिक्षाविद् और पूर्व सांसद रमेंद्र कुमार रवि के बेटे हैं। माना जा रहा है कि इस बार क्षेत्र में कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी।
-नीरज कुमार दुबे
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