बात सिर्फ सिनेमाघर खुलने की नहीं है, पूरे कश्मीर की किस्मत खुल चुकी है

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ANI

अब सिनेमाघरों को ही लीजिये। तीन दशक बाद सिनेमाघर खुले तो मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं के बयान आने लग गये। लेकिन ऐसे नेता शायद जानते नहीं हैं कि उनकी इस प्रकार की बातों में अब जम्मू-कश्मीर के लोग आने वाले नहीं हैं।

2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यहां लगातार सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं। कश्मीर में लगभग 30 वर्ष बाद खुले सिनेमाघर इसी दिशा में उठाये गये नए कदम हैं। दरअसल कश्मीर में जिस प्रकार विकास की परियोजनाएं आ रही हैं, खेल और मनोरंजन सुविधाओं का विस्तार हो रहा है उसके चलते घाटी का माहौल पूरी तरह बदल चुका है। यहां अब बंद, हड़ताल, पत्थरबाजी, मस्जिदों से मौलानाओं की भड़काने वाली बातें गुजरे जमाने की बात हो चुकी हैं अब यहां स्टार्टअप्स खुल रहे हैं, सरकारी विभागों में पूरी पारदर्शिता के साथ नौकरी मिल रही है, नौकरी उन लोगों को भी मिल रही है जिनके पास 370 हटने से पहले आवेदन करने तक का अधिकार भी नहीं था। कश्मीर में सड़कों का जाल बिछ रहा है, संचार सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, पुल और पुलिया बन रहे हैं। इसके अलावा आज कश्मीर घाटी में फैशन शो हो रहे हैं, म्यूजिकल नाइटें हो रही हैं, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं हो रही हैं। साथ ही अब कश्मीर में केंद्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सब तक पहुँच रहा है। यही नहीं ग्रामीण इलाकों में बिजली, पानी जैसी बरसों पुरानी समस्या का निराकरण हो चुका है। इसके अलावा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में युवाओं का कौशल निखार कर उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराई जा रही है, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को किसी भी संकट से बचाने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मदद दी जा रही है। इन सब प्रयासों से एक नया कश्मीर बना है लेकिन कश्मीर का यह बदला माहौल कई लोगों को रास नहीं आ रहा है इसलिए वह अनर्गल बयानबाजी करते रहते हैं।

अब सिनेमाघरों को ही लीजिये। तीन दशक बाद सिनेमाघर खुले तो मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले नेताओं के बयान आने लग गये। लेकिन ऐसे नेता शायद जानते नहीं हैं कि उनकी इस प्रकार की बातों में अब जम्मू-कश्मीर के लोग आने वाले नहीं हैं। ऐसे नेता शायद जानते नहीं हैं कि अब कश्मीर जिस राह पर बढ़ चला है वहां हर कश्मीरी अपनी किस्मत बदलने को आतुर दिख रहा है और कोई अब उनको धर्म या जाति या अन्य कारणों से बहला-फुसला नहीं सकता। यह सब दावे हम सिर्फ हवा में नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी बात को वजन देने के लिए आपको कुछ उदाहरण बताते हैं।

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-हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का दम कश्मीर में पूरी तरह निकल चुका है लेकिन पाकिस्तान इसको पुनर्जीवित करने की कोशिश में है। लेकिन पाकिस्तान की इस कोशिश को विफल करने का प्रयास सुरक्षा बलों के साथ ही स्थानीय लोग भी कर रहे हैं। पाकिस्तान ने हुर्रियत का जो नया गुट बनाया है उसने 15 अगस्त को कश्मीर बंद करने का ऐलान किया था। लेकिन उस दिन कुछ बंद नहीं रहा बल्कि हर घर पर तिरंगा लहराता रहा और लोग सामूहिक रूप से राष्ट्रगान गाते रहे।

-अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में जिस तरह आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों का प्रहार चला है उसकी वजह से अब आतंकवाद अपने अंतिम चरण में है। चाहे आतंकवादी हों, उनके मददगार हों या आतंकी वित्त पोषण का नेटवर्क हो...सभी के खिलाफ जबरदस्त एक्शन हुआ है। यही नहीं, शांति भंग करने के लिए सीमा पार से जो लगातार साजिशें रची जा रही हैं उन्हें भी नियमित रूप से असफल किया जा रहा है। सुरक्षाबल सर्दियों से पहले आतंकवादियों की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने के लिए पूरी तरह से सतर्क हैं। सुरक्षा बलों के प्रयासों में अब स्थानीय लोग भी पूरी तरह भागीदारी कर रहे हैं। अब कहीं मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में स्थानीय लोगों द्वारा बाधा नहीं खड़ी की जाती बल्कि उनकी मदद की जाती है। यही नहीं, हाल ही में एक गांव में कश्मीरियों ने खुद आतंकवादियों को पकड़ कर सुरक्षा बलों के हवाले किया था। सीमावर्ती गांवों में भी संदिग्ध गतिविधियां देख कर गांव वालों की ओर से सुरक्षा बलों को सूचित किया जाता है जिससे उनको काफी मदद मिलती है।

-अनुच्छे 370 हटने के बाद से कश्मीर घाटी के हालात पर नजर दौड़ाएं तो एक चीज और साफतौर पर उभर कर आती है कि तबसे कश्मीर घाटी में कट्टरपंथ और अलगाववाद की कोई घटना नहीं हुई ना ही कोई हड़ताल हुई, ना ही हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख रहे सैयद अली शाह गिलानी की मौत या उसकी डेथ एनिवर्सिरी पर कोई दुकान बंद हुई और ना ही कोई पथराव हुआ। जुमे की नमाज के बाद अब कोई नारेबाजी नहीं होती ना ही कोई आईएस का झंडा लहराता है।

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-कश्मीर घाटी में सुरक्षा की बेहतर स्थिति की वजह से ही इस साल रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक आये और हालिया अमरनाथ यात्रा भी सुरक्षा की दृष्टि से पूरी तरह सफल रही। अमरनाथ यात्रियों की संख्या का भी इस साल नया रिकॉर्ड बना। इसके अलावा कश्मीरी पंडितों ने अपने सालाना उत्सव चाहे वह खीर भवानी मेला हो, शंकराचार्य मंदिर में लगने वाला मेला हो, जन्माष्टमी पर निकलने वाली झांकी हो या अन्य आयोजन...सभी में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

-कश्मीर घाटी में बदले माहौल में मस्जिदें अब सियासत नहीं बल्कि वापस इबादत का ही स्थल बन गयी हैं। जो लोग मस्जिदों का इस्तेमाल अपनी सियासत चमकाने और नफरत फैलाने के लिए करते थे उनकी पोल-पट्टी खुल चुकी है और जनता उनके असली चेहरे से वाकिफ हो चुकी है। यही कारण है कि उनको अब किसी प्रकार का जन समर्थन नहीं मिल रहा है जिसकी वजह से मीरवाइज उमर फारुक तीन साल से जामिया मस्जिद नहीं गये हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने एक ऐतिहासिक फैसला करते हुए सभी जियारतगाहों, खानकाहों और मस्जिदों में राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं की दस्तारबंदी यानि पगड़ी पहनाने की परम्परा पर रोक लगा दी है। अब तक देखा जाता था कि राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों के प्रमुख लोग धार्मिक स्थलों पर खुद को पगड़ी बंधवा कर ऐसे स्थलों का राजनीतिक उपयोग किया करते थे।

-कश्मीर के युवाओं की बात करें तो 370 हटने का सर्वाधिक लाभ इन्हें ही हुआ है। आज कश्मीरी युवा केंद्रीय योजनाओं का लाभ उठाते हुए स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, विद्यार्थी नीट, जेईई या अन्य बड़ी परीक्षाओं में कमाल का प्रदर्शन कर रहे हैं, खिलाड़ी चाहे क्रिकेट के हों या अन्य खेलों से...वह राष्ट्रीय टीमों में चुने जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जिस कश्मीर के युवाओं को कभी बहका कर आतंक की राह पर भेज दिया जाता था या ड्रग्स की लत लगा दी जाती थी वह युवा आज अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने भविष्य को बनाने के लिए तेजी से मुख्यधारा से जुड़ रहा है।

बहरहाल, मुख्यधारा से जुड़ रहे युवाओं को वह माहौल और अवसर मिलना ही चाहिए जो देश के अन्य भागों के युवाओं को मिलता है। इस दिशा में मनोरंजन के साधनों को उपलब्ध कराना बड़ी पहल है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ऐलान किया है कि हर जिले में एक सिनेमाघर खुलेगा। दो जिलों में सिनेमाघर खुल भी चुके हैं और अब कश्मीर घाटी को पहला मल्टीप्लेक्स भी मिल गया है। वाकई यह लोगों के सपनों, आत्मविश्वास और आकांक्षाओं की एक नयी सुबह का प्रतिबिंब है।

-नीरज कुमार दुबे

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