कोरोना जैसे ही खतरनाक हैं महामारी के इस दौर में कालाबाजारी करने वाले
देश में कोरोना महामारी महासंकट बन असंख्य लोगों की जान ले रहा है, तब दवाइयों और इंजेक्शनों के तमाम जमाखोर सक्रिय हो गये हैं। इस जमाखोरी एवं कालाबाजारी पर रोक लगाने की कोशिशें सफल होती नजर नहीं आ रही हैं।
हिंदुस्तान में आज लाखों लोगों को कोरोना नहीं मार रहा, इंसान इंसान को मार रहा है, इंसान का लोभ एवं लालच इंसान को मार रहा है। ऐसे स्वार्थी लोगों को राक्षस, असुर या दैत्य कहा गया है जो समाज एवं राष्ट्र में तरह-तरह से कोरोना महामारी को फैलाने में जुटे हैं। असल में इस तरह की दानवी सोच वाले लोग सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं। ऐसे लोग धन-संपत्ति आदि के जरिए सिर्फ अपना ही उत्थान करना चाहते हैं, भले ही इस कारण दूसरे लोग और पूरे समाज ही मौत के मुंह में जा रहे हो, यह मानवीय संवेदनाओं के छीजने की चरम पराकाष्ठा है। विभिन्न राजनीतिक दल एवं लोग प्रधानमंत्री एवं सरकारों को गाली दे रहे हैं, लेकिन, जो 700-800 का ऑक्सीमीटर 3000 में बेच रहे हैं, जो ऑक्सीजन की कालाबाजारी कर रहे हैं, जो रेमडेसीविर को 20000 प्लस में बेच रहे हैं, जो श्मशान की लकड़ियों में बेईमानी कर रहे हैं, नारियल पानी हो या फल, सब्जी, अंडा, चिकन, दाल में लूट करने से लेकर अस्पतालों में बेड दिलाने तक का झांसा देने वाले लोगों ने ही कोरोना को फैलाया है। यह कैसी विडम्बना एवं विसंगतिपूर्ण दौर है जिसमें जिसको जहां मौका मिला वह लूटने में लग गया, यहाँ कोई भी व्यक्ति सिर्फ तब तक ही ईमानदार है जब तक उसको चोरी करने का या लूटने का मौका नहीं मिलता।
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देश में कोरोना महामारी महासंकट बन असंख्य लोगों की जान ले रहा है, तब दवाइयों और इंजेक्शनों के तमाम जमाखोर सक्रिय हो गये हैं। इस जमाखोरी एवं कालाबाजारी पर रोक लगाने की कोशिशें सफल होती नजर नहीं आ रही हैं। संकट में पड़े अपनों का जीवन बचाने के लिये लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। इसी आतुरता का फायदा उठाने के लिये आपदा में अवसर ढूंढ़ने वाले मनमाने दाम वसूल रहे हैं। हद तो तब हो गई जब कई जगह जीवनरक्षक इंजेक्शनों की जगह नकली इंजेक्शन तैयार करने की खबरें आ रही हैं। इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं। कालाबाजारी के इन गोरखधंधों में कुछ दवा निर्माताओं और डॉक्टरों तक की गिरफ्तारी हुई हैं। लेकिन इस कालाबाजारी पर पूरी तरह रोक लगाने की कोशिशें सफल होती नजर नहीं आतीं। ऐसा नहीं हो सकता कि ऐसी कालाबाजारी पर नियंत्रण करने वाले विभागों व पुलिस को इंसानियत के ऐसे दुश्मनों की कारगुजारियों की भनक न हो। मगर, समय रहते ठोस कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही, क्योंकि इन दरिन्दों एवं कालाबाजारियों की शक्ति एवं संगठन ज्यादा ताकतवर है, यही इस देश की बड़ी त्रासदी एवं विडम्बना है।
दुर्भाग्य देखिये कि दिल्ली में ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने गये एक मरीज को कुछ लोगों ने अग्निशमन में काम आने वाले सिलेंडर बेच दिए। महिला की शिकायत के बाद दो युवकों की गिरफ्तारी हुई। कुछ इंसान चंद रुपयों के लालच में किस हद तक गिर जाते हैं कि संकट में फंसे लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने पर उतारू हो जाते हैं। जाहिर-सी बात है कि महामारी का जो विकराल एवं वीभत्स रूप हमारे सामने है, उसमें ऑक्सीजन और दवाओं की किल्लत स्वाभाविक है। लेकिन यह किल्लत इसलिये सामने आयी कि स्वार्थी एवं लालची लोगों ने इसका संग्रह करना एवं मनमाने दामों में बेचना शुरू कर दिया। यह पहली बार है कि मरीजों को जीवनदायिनी मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत इतनी बड़ी मात्रा पर हुई हो। दरअसल, मांग व आपूर्ति के संतुलन से चीजों की उपलब्धता होती है। बताया जा रहा है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग सितंबर के बाद जनवरी तक न के बराबर हो गई थी, इसलिए कंपनियों ने इसका उत्पादन बंद कर दिया था। अब अचानक महामारी के फैलने के बाद मांग बढ़ने से इसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है, जिससे इसकी कालाबाजारी लगातार बढ़ती जा रही है।
हम कितनें लालची एवं अमानवीय हो गये हैं, हमारी संवेदनाओं का स्रोत सूख गया है, तभी तो लॉकडाउन की खबर सुनते ही गुटके की कीमत 5 से 7 कर देते हैं, तभी शराब की दुकानों पर लम्बी कतारें लग जाती हैं, तभी डॉक्टरों द्वारा विटामिन सी अधिक लेने की बात कहने पर 50 रुपये प्रति किलो का नींबू 150 रुपये प्रति किलो बेचने लगते हैं, तभी 40-50 रुपए का बिकने वाला नारियल पानी 100 का बेचने लगते हैं, तभी ऑक्सीजन एवं रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करनी शुरू कर देते हैं, तभी अपना ईमान बेच कर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं, डेड बॉडी लाने के नाम पर पानीपत से फरीदाबाद तक के 36000 मांगने लगते हैं, तभी मरीज को दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ, नोएडा स्थित किसी हॉस्पिटल में पहुंचाने की बात करते हैं तो एंबुलेंस का किराया 10 से 15 हजार मांगने लगते हैं, क्या वास्तव में हम बहुत मानवीय हैं या लाशों का मांस नोचने वाले गिद्ध? गिद्ध तो मरने के बाद अपना पेट भरने के लिए लाशों को नोचता है पर हम तो अपनी तिजोरियां भरने के लिए जिंदा इंसानों को ही नोच रहे हैं, कहाँ लेकर जाएंगे ऐसी दौलत या फिर किसके लिए यह सब कर रहे हैं? यह कैसी मानवीयता है?
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अस्पतालों में बेड, दवाइयां और वेंटिलेटर नहीं हैं, क्योंकि इस महासंकट में मनुष्य का एक घिनौना, क्रूर एवं अमानवीय चेहरा इनकी कालाबाजारी कर रहा है। एक तो नई महामारी का कोई कारगर इलाज नहीं है, दूसरा इस बीमारी में काम आने वाली तमाम जरूरी दवाइयां लालची लोगों ने बाजार से गायब कर दी हैं। यह बीमारी इन राक्षसों के कारण ही बेकाबू हुई है। सरकारें इन त्रासद स्थितियों एवं बीमारी पर नियंत्रण पाने में नाकाम साबित हुई हैं। देश के लाखों लोग कातर निगाहों से शासन-प्रशासन की ओर देख रहे हैं कि कोई तो राह निकले। सरकार का व्यवस्था पर नियंत्रण कमजोर होता दिख रहा है। हमारे पास न तो पर्याप्त मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता है और न ही उपलब्ध ऑक्सीजन को अस्पतालों तक पहुंचाने की कारगर व्यवस्था। इस महामारी में किसी हद तक शुरुआती दौर के उपचार में कारगर बताये जा रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन के नाम पर भारी कालाबाजारी की जा रही है। जीवन के संकट से जूझ रहे मरीजों से इनके मुंहमांगे दाम वसूले जा रहे हैं। मरीजों से पचास हजार से लेकर एक लाख तक की कीमत वसूले जाने की शिकायतें मिल रही हैं। बड़े निजी अस्पताल भी अवसर की गंभीरता को देखते हुए नोट छापने की मशीन बने हैं। सरकारी अस्पतालों पर वीवीआईपी का कब्जा है। आम आदमी जाए तो कहां जाये?
विश्व को श्रेष्ठ, नैतिक एवं मानवीय बनने का उपदेश देने वाला देश आज कहां खड़ा है? आज इन मूल्यों एवं संवेदनाओं की दृष्टि से देश कितना खोखला एवं जर्जर हो गया है, कोरोना महामारी ने इसे जाहिर किया है। कोरोना महामारी ऐसी ही दूषित सोच एवं अपवित्र जीवन की निष्पत्ति है। कोरोना महामारी से मुक्ति की सुबह तभी होगी जब मानव की कुटिल चालों एवं दूषित आर्थिक सोच से मानवता की रक्षा की जाएगी। ऐसा करने की आवश्यकता कोरोना महामारी ने भलीभांति समझायी है। आज भौतिक एवं स्वार्थी मूल्य अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा चुके हैं कि उन्हें निर्मूल करना आसान नहीं है। मनुष्य का संपूर्ण कर्म प्रदूषित हो गया है। सारे छोटे-बड़े धंधों में अनीति प्रवेश कर गई है। यदि धर्म, प्रकृति एवं जीवन मूल्यों को उसके अपने स्थान पर सुरक्षित रखा गया होता तो कोरोना महाव्याधि की इतनी तबाही कदापि न मचती। संकट इतना बड़ा न होता।
समाज की बुनियादी इकाई मनुष्य है। मनुष्यों के जुड़ने से समाज और समाजों के जुड़ने से राष्ट्र बनता है। यदि मनुष्य अपने को सुधार ले तो समाज और राष्ट्र अपने आप सुधर जायेंगे। इसलिए परोपकार, परमार्थ की महिमा बताई गई है, निज पर शासन फिर अनुशासन का घोष दिया गया है। मनुष्यों के जीवन और कृत्य के परिष्कार के लिए उससे बढ़कर रास्ता हो नहीं सकता। अगर मनुष्य का आचरण सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, त्याग एवं संयम आदि पर आधारित होगा तो वह अपने धंधे में किसी प्रकार की बुराई नहीं करेगा और न जीवन में विसंगतियों की धुसपैठ होने देगा। जीवन एवं कर्म की शुद्धता ही कोरोना जैसी महामारी पर नियंत्रण की आधार-शिला है।
भारत में तेजी से कोरोना महामारी का दायरा बढ़ता जा रहा है, दवाओं व ऑक्सीजन की कालाबाजारी एक कलंक बनकर उभरा है। निस्संदेह यह संकट जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। ऐसे में सरकारों को दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी। कालाबाजारी करने वाले तत्वों पर सख्ती की भी जरूरत है। साथ ही संकट को देखते हुए तमाम चिकित्सा संसाधन जुटाने की जरूरत है।
-ललित गर्ग
(लेखक, पत्रकार, स्तंभकार)
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