अधिक बच्चे पैदा करने के नायडू के बयान पर भाजपा मौन

Chandrababu Naidu MK Stalin
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दक्षिण भारत के राज्यों की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो जाएगी। बाकी राज्यों की हिस्सेदारी भी 34 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत हो जाएगी। आजादी के बाद जब 1951 में पहली जनगणना हुई, तब देश की आबादी 36 करोड़ के आसपास थी।

आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने अपने राज्य के लोगों से दो अधिक बच्चे पैदा करने की मांग की है। सर्वाधिक आश्चर्य यह है कि इन दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों की इस मांग के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने चुप्पी साध रखी है। मुसलमानों को दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर परोक्ष और प्रत्यक्ष तौर पर कोसने वाली भाजपा इन दो मुख्यमंत्रियों की मांग पर पूरी तरह मौन है। कारण साफ है चन्द्रबाबू नायडु ने केंद्र की भाजपा सरकार को अपनी पार्टी तेलगुदेशम पार्टी के सांसदों का समर्थन दे रखा है। दूसरे शब्दों में कहे तो केंद्र की मोदी सरकार नायडु की बैसाखियों पर टिकी है। इसलिए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने के नायडू के बयान पर भाजपा ने मौन रखना ही बेहतर समझा। इसमें भाजपा को देश के लिए वैसा खतरा नजर नहीं आया, जैसा मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि को लेकर दिखाई देता है।   

नायडू के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने एक कार्यक्रम में कहा था कि लोगों को 16 बच्चे पैदा करने चाहिए। यह बात उन्होंने सरकारी विवाह योजना के तहत 31 जोड़ों के विवाह समारोह में कही। स्टालिन का यह सुझाव नायडू द्वारा यह खुलासा किए जाने के एक दिन बाद आया है कि आंध्रप्रदेश में उनकी सरकार एक ऐसा कानून बनाने की योजना बना रही है, जिसके तहत केवल दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को ही स्थानीय निकाय चुनाव लडऩे की अनुमति होगी। जनसंख्या के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से परिभाषित करने की कवायद 2026 में होने वाली है। इससे लोकसभा सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 753 हो जाएगी। दक्षिण में क्षेत्रीय दलों को डर है कि इससे अधिक आबादी वाले राज्यों में सीटों की संख्या में भारी उछाल आएगा, जबकि दक्षिण में यह वृद्धि मामूली होगी। इन दलों के नेताओं को लगता है कि पिछले कुछ दशकों में परिवार नियोजन के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दक्षिणी राज्यों को दंडित किया जा रहा है क्योंकि जिन राज्यों में जनसंख्या का घनत्व अधिक है, उनका लोकसभा में प्रतिनिधित्व अधिक होगा। वर्ष 2026 में क्षेत्र पुनर्विभाजन हो सकता है, इस अनुमान और उस समय की अनुमानित जनसंख्या के आधार पर कहा जा सकता है कि पुनर्विभाजन में जनसंख्या नियंत्रण के कदम उठाने वाले दक्षिणी राज्यों को भारी नुकसान होगा, जबकि जनसंख्या नियंत्रण नहीं करने वाले हिंदी भाषी राज्य बड़ा फायदा उठाएंगे। उदाहरण के लिए, वर्तमान लोकसभा में हिंदी भाषी राज्यों की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है, जो विस्तारित लोकसभा में 48 प्रतिशत हो जाएगी। 

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दक्षिण भारत के राज्यों की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो जाएगी। बाकी राज्यों की हिस्सेदारी भी 34 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत हो जाएगी। आजादी के बाद जब 1951 में पहली जनगणना हुई, तब देश की आबादी 36 करोड़ के आसपास थी। 1971 तक आबादी बढ़कर 55 करोड़ पहुंच गई। लिहाजा, सरकार ने 70 के दशक में फैमिली प्लानिंग पर जोर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि दक्षिणी राज्यों ने तो इसे अपनाया और आबादी काबू में की। मगर, उत्तर के राज्यों में ऐसा नहीं हुआ और आबादी तेजी से बढ़ती गई। ऐसे में उस समय भी दक्षिणी राज्यों की ओर से सवाल उठाया गया कि उन्होंने तो फैमिली प्लानिंग लागू करके आबादी कंट्रोल की और उनके यहां ही सीटें कम हो जाएंगी। सीटें कम होने का मतलब संसद में प्रतिनिधित्व कम होना। इसलिए विवाद हुआ। अभी तमिलनाडु की अनुमानित आबादी 7.70 करोड़ है और वहां लोकसभा की 39 सीटें हैं। जबकि, मध्य प्रदेश की आबादी 8.76 करोड़ है और यहां 29 लोकसभा सीटें हैं। परिसीमन होता है तो अभी की आबादी के हिसाब से मध्य प्रदेश में 87 लोकसभा सीटें हो जाएंगी और तमिलनाडु में 77 सीटें होंगी। सीटों की ये संख्या हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद वाले फॉर्मूले के हिसाब से है। इसी तरह केरल की अनुमानित आबादी 3.59 करोड़ है। अभी यहां 20 लोकसभा सीटें हैं, वहीं उत्तर प्रदेश की आबादी 23.80 करोड़ है और यहां 80 सांसद हैं। अगर वही 10 लाख वाला फॉर्मूला लागू किया जाए तो केरल में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 35 या 36 होगी। जबकि, उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों की संख्या 235 या उससे ज्यादा भी हो सकती है। इसी वजह से दक्षिणी राज्यों को आपत्ति है। उनका यही कहना है कि हमने आबादी नियंत्रित की, केंद्र की योजनाओं को लागू किया और उनके ही यहां लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू को हर हाल में आंध्रप्रदेश में अपने वोट बैंक को मजबूत रखना है। मुख्यमंत्री नायडू को इससे फर्क नहीं पड़ता कि भाजपा उनके बारे में क्या सोचती है। नायडू से समर्थन लेने की गरज भाजपा की है, नायडू की नहीं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री नायडू ने आंध्रप्रदेश में जब मुस्लिमों को मिला आरक्षण नहीं हटाए जाने की घोषणा की तब भी भाजपा से बोलते नहीं बन पड़ा। भाजपा को पता है कि नायडू से पंगा लेने का मतलब केंद्र सरकार का गिरना तय है। नायडू की पार्टी के 16 सांसदों का समर्थन केंद्र की भाजपा सरकार को हासिल है। इसलिए नायडू को भाजपा और केंद्र सरकार की परवाह नहीं है।   

नायडू ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान ही राज्य में मुस्लिम समुदाय को चार प्रतिशत आरक्षण देने के अपने रुख को दोहराया दिया था। चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि हम शुरू से ही मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं और यह जारी रहेगा। टीडीपी प्रमुख का यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तेलंगाना के जहीराबाद में एक चुनावी रैली के दौरान दिए गए उस बयान के कुछ दिनों बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह धर्म के आधार पर दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कोटा मुसलमानों को नहीं दिए जाने देंगे। गौरतलब है कि इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक की ओबीसी सूची में मुस्लिम समुदाय को शामिल किए जाने पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सिद्धारमैया सरकार के फैसले की निंदा की थी। मध्य प्रदेश की रैली में पीएम मोदी ने कांग्रेस को ओबीसी समुदाय का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया और कहा, एक बार फिर कांग्रेस ने पिछले दरवाजे से ओबीसी के साथ सभी मुस्लिम जातियों को शामिल करके कर्नाटक में धार्मिक आधार पर आरक्षण दिया है। इस कदम से ओबीसी समुदाय को आरक्षण के एक महत्वपूर्ण हिस्से से वंचित कर दिया गया है। रिकॉर्ड बताते हैं कि कर्नाटक में यह आरक्षण पहली बार 1995 में एचडी देवेगौड़ा की जनता दल द्वारा लागू किया गया था। 

दिलचस्प बात यह है कि चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी की तरह ही देवगौड़ा की जद (एस) अब भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सहयोगी है। भविष्य की राजनीति बचाने के लिए की जा रही नायडू और स्टालिन की कवायद से सवाल भी खड़े होते हैं। इसमें प्रमुख सवाल यही है कि क्या दोनों मुख्यमंत्री दो से ज्यादा बच्चे पैदा होने वाले बच्चे के पालन-पोषण का भार वहन करेंगे। क्या ऐसा करने वाले दंपत्ति को सरकार अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया कराएगी। जब तक सरकार ऐसी जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं होगी, तब तक इनकी सलाह मानने वाले परिवारों को तमाम बोझ उठाना पड़ेगा। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने दो से अधिक बच्चे होने पर जिम्मेदारी उठाने का जिक्र तक नहीं किया। इसी तरह भाजपा ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। तमिलनाडु के मामले में हो सकता है कि भाजपा जरूर कोई बयान देती किन्तु पहल आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री के करने से पासा पलट गया। भाजपा की मजबूरी बन गई, नायडू के मामले में दूर रहना।

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