हजारों निर्दोष मुस्लिमों की जान लेने वाले बराक ओबामा भारत को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की सीख नहीं दें
देखा जाये तो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के इस साक्षात्कार की टाइमिंग को लेकर तो सवाल उठे ही हैं साथ ही इसके जरिये वह टूलकिट भी सामने आ गयी है जिसके जरिये मोदी को अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दे को लेकर निशाने पर लेने का प्रयास किया जाता है।
अमेरिका के राजकीय दौरे पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत में जब राष्ट्रपति जो बाइडन तथा उनका पूरा प्रशासन पलक पांवड़े बिछा रहा था उसी समय पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीएनएन को दिये एक साक्षात्कार के जरिये सनसनी फैला दी। इस साक्षात्कार में उन्होंने भारत के मुसलमानों की स्थिति पर चिंता जताई। साक्षात्कार में ओबामा ने कहा कि अगर मैं प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करता तो मैं उनसे कहता कि अगर वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करेंगे, तो भारत के टूटने की संभावना बनी रहेगी। ओबामा ने राष्ट्रपति जो बाइडन को भी सलाह दी कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान उनसे भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर बात करें।
देखा जाये तो ओबामा के इस साक्षात्कार की टाइमिंग को लेकर तो सवाल उठे ही हैं साथ ही इसके जरिये वह टूलकिट भी सामने आ गयी है जिसके जरिये मोदी को अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दे को लेकर निशाने पर लेने का प्रयास किया जाता है। विदेशी मीडिया का इस संबंध में खूब सहारा लिया जाता है। बीबीसी गुजरात दंगों के 20 साल बाद उस पर डॉक्यूमेंट्री बनाती है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जनरल की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी को भारत में हो रहे विकास या मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में प्रश्न पूछने की बजाय सिर्फ अल्पसंख्यकों की चिंता सताती है। आप जरा सभी घटनाओं को जोड़ कर देखेंगे तो आपको सारी कड़ियां जुड़ी हुई नजर आयेंगी। भारतीय प्रधानमंत्री की घेराबंदी करने के लिए धर्म का धंधा करने वाले टूलकिट से जुड़े लोगों ने मोदी के अमेरिका आगमन से पहले कुछ भारत विरोधी अमेरिकी सांसदों से एक पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखवाया और उनसे मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाने का आग्रह किया। भारत विरोधी कुछ अमेरिकी सांसदों ने मोदी के स्वागत समारोह और अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में मोदी के संबोधन का बहिष्कार भी किया। यह लोग मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्वीट और अन्य सोशल मीडिया मंचों पर पोस्ट भी करते रहे ताकि मोदी विरोधी अभियान को गति मिलती रहे। इसके अलावा, एक ओर उमर खालिद को रिहा करने की मांग संबंधी पोस्टर अमेरिका में लहराये गये तो दूसरी ओर खालिस्तान समर्थकों ने भी भारत विरोधी नारे लगाये। इस बीच, सबके सुर से सुर मिलाते हुए बराक ओबामा ने सीएनएन को साक्षात्कार देकर माहौल गर्माने का प्रयास कर अपना भी योगदान दे दिया।
इसे भी पढ़ें: अमेरिकी इतिहास को देखते हुए भविष्य के लिए भारत उस पर कितना भरोसा कर सकता है?
देखा जाये तो बराक हुसैन ओबामा के मन में मोदी विरोधी भावना आज से नहीं बल्कि शुरू से ही है। ओबामा को 2014 में यह कतई नहीं भाया था कि आम चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की इतनी प्रचंड विजय हुई कि गुजरात के मुख्यमंत्री पद से सीधे मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गये। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ओबामा प्रशासन इस बात के लिए मजबूर हो गया था कि वह भारत के प्रधानमंत्री को अमेरिका यात्रा का वीजा प्रदान करे। यही नहीं, 2015 में गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में जब ओबामा भारत आये तो अपने एक संबोधन में मोदी सरकार को मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर उपदेश देना नहीं भूले थे। अमेरिका में जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने तो मोदी से उनकी गहरी दोस्ती ओबामा को कतई पसंद नहीं आती थी इसलिए 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ओबामा ने जो बाइडन के लिए जमकर प्रचार भी किया। जो बाइडन को अमेरिका स्थित मुस्लिम संगठनों का पूरा समर्थन दिलाने में भी ओबामा की बड़ी भूमिका रही थी। ओबामा को उम्मीद थी कि बाइडन के कार्यकाल में मोदी विरोधी अभियान आगे बढ़ेगा लेकिन बाइडन तो मोदी से दोस्ती के मामले में ट्रंप से भी आगे बढ़ गये। ओबामा देखते रहे गये कि उनके कार्यकाल में उपराष्ट्रपति रहे बाइडन कैसे मोदी से लगातार मुलाकातें कर रहे हैं और वैश्विक नेता के रूप में मोदी को मान्यता दे रहे हैं। इसलिए जब मोदी को अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा का निमंत्रण मिला तो ओबामा की खीझ स्वाभाविक थी। इसलिए वह भी टूलकिट का हिस्सा बन गये जोकि मोदी विरोधी अभियान चलाता है।
जहां तक ओबामा की ओर से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा बार-बार उठाये जाने और भारत को नसीहत देने की बात है तो इस बारे में कहा जा सकता है कि ओबामा को पहले यह सीख अपने देश को देनी चाहिए। देखा जाये तो बराक हुसैन ओबामा बहुत बड़े ढोंगी हैं। उनके कार्यकाल पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि अपने पूर्ववर्ती जॉर्ज डब्ल्यू बुश के मुकाबले अपने कार्यकाल में ओबामा ने दस गुना ज्यादा एअर स्ट्राइक करवायीं। बुश के कार्यकाल में कुल 57 हवाई हमले हुए थे जबकि ओबामा के कार्यकाल में 563 हवाई हमले हुए। जो हवाई हमले हुए वह सभी मुस्लिम देशों पर हुए जिनमें पाकिस्तान, सोमालिया, यमन, अफगानिस्तान और सीरिया आदि शामिल हैं। ओबामा के आदेश पर हुए हवाई हमलों में सिर्फ आतंकवादी ही नहीं मारे गये बल्कि हजारों की संख्या में आम नागरिक भी हताहत हुए।
इसके अलावा, जिस अमेरिका में सबसे ज्यादा नस्लवाद या रंग के आधार पर भेदभाव की घटनाएं सामने आती हैं वह दूसरों को सीख देने से पहले यदि अपने अंतर्मन में झांके तो बेहतर रहेगा। सीएनएन पर ओबामा का पूरा साक्षात्कार पढ़ेंगे तो यह भी पता चलेगा कि उन्होंने बुझे मन से प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका में अगवानी की थी। अपने साक्षात्कार में ओबामा ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष कई बार यह मजबूरी होती है कि हम जिन्हें पसंद नहीं करते उनका भी स्वागत करना पड़ता है और उनसे बात करनी पड़ती है।
बहरहाल, ओबामा के साक्षात्कार को पढ़ कर लगता है कि उन्हें अब भी यह भ्रम है कि वह अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और विश्व के मामलों में उनकी कोई भूमिका है। देखा जाये तो ओबामा अपने कार्यकाल में दुनिया को तमाम समस्याएं ही देकर गये हैं जिनकी भरपाई अमेरिका सहित अन्य देश कर रहे हैं। मानवाधिकार प्रेमी का मुखौटा लगाये इस शख्स के कार्यकाल में गलत नीतियों की वजह से जितने आम नागरिक मारे गये उसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। इसलिए भारत के भविष्य को लेकर परेशान होने की बजाय यदि ओबामा अपने किये पर पश्चाताप करने में समय बिताएं तो उनके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा।
-नीरज कुमार दुबे
अन्य न्यूज़