अशरफ गनी के बाद राजपक्षे भी अपने देश को मुश्किल दौर में छोड़कर भागे, मगर जेलेंस्की डटे हैं
एक ओर गोटाबाया राजपक्षे और अशरफ गनी जैसे शासक हैं जो संकट के समय सिर्फ अपनी जान और माल की परवाह करते हैं तो दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की हैं जोकि रूस की ओर से महीनों पहले छेड़े गये युद्ध का डटकर सामना कर रहे हैं।
कर्ज के जाल में फंसा श्रीलंका इस समय अराजकता के दौर से गुजर रहा है। वहां संकट के समय राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग गये। इसके साथ ही गोटाबाया राजपक्षे का नाम उन कुछ राष्ट्राध्यक्षों और शासकों की सूची में शुमार हो गया है जो मुश्किल दौर में अपने देश को बेहाली की स्थिति में छोड़कर भागे हैं। अभी पिछले साल ही दुनिया ने देखा था कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद जब तालिबानी लड़ाके काबुल की ओर बढ़ रहे थे तो कैसे रातोंरात राष्ट्रपति अशरफ गनी अफगानिस्तान छोड़कर भाग खड़े हुए थे। ऐसे ही उदाहरण पाकिस्तान में भी अक्सर देखने को मिलते हैं जब वहां सत्ता में बदलाव होने पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री देश छोड़कर चले जाते हैं। देखा जाये तो एक ओर गोटाबाया राजपक्षे और अशरफ गनी जैसे शासक हैं जो संकट के समय सिर्फ अपनी जान और माल की परवाह करते हैं तो दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की हैं जोकि रूस की ओर से महीनों पहले छेड़े गये युद्ध का डटकर सामना कर रहे हैं।
वैसे, सनकी राष्ट्रपतियों की ओर से अपने देश को रसातल में पहुँचा देने के बहुत से उदाहरण इस दुनिया में देखने को मिल जायेंगे। इनमें गोटाबाया राजपक्षे सबसे ताजा उदाहरण हैं। श्रीलंका की जनता ने जिस तरह सड़कों पर उतर कर अपने देश को भ्रष्ट नेताओं से मुक्त कराने का अभियान छेड़ा है वैसा ही कुछ साल 2010 में हुई अरब क्रांति के दौरान देखने को मिला था। उल्लेखनीय है कि अरब क्रांति की शुरुआत ट्यूनीशिया से हुई थी और धीरे-धीरे इसकी लपटें अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन तक पहुँची और देखते ही देखते समूचा अरब लीग व इसके आसपास का क्षेत्र इस क्रांति की लपेट में आ गया था। उस समय इन देशों में जनता के विरोध प्रदर्शनों के चलते कई देशों के शासकों को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। मिस्र, बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, इराक, सूडान, कुवैत, मोरक्को, मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा और फिलस्तीन में हुए विरोध प्रदर्शनों में जो समानता थी वह थी- हड़ताल, धरना, मार्च और रैलियां। इसके अलावा इराक के राष्ट्रपति रहे सद्दाम हुसैन हों या फिर लीबिया के राष्ट्रपति रहे मुअम्मर गद्दाफी या फिर उनके जैसे ही कई अन्य भ्रष्ट, चरित्रहीन और मानवता विरोधी राष्ट्रपति या राजा...सबका हश्र अंत में बुरा ही हुआ है।
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विश्व इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिल जायेंगे जिसमें जनता के हितों की परवाह नहीं करने वाले, लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले और खुद को ही सर्वशक्तिमान समझने वाले नेताओं को जनता ने एक दिन सबक सिखाया है। ऐसे देशों में जब-जब सत्ता में बदलाव हुए हैं तब-तब निरंकुश शासकों को जेल, निर्वासन या मृत्युदंड भोगना पड़ा है। बहरहाल, अब अशरफ गनी या गोटाबाया राजपक्षे चाहे जितना भी धन लेकर भागे हों उससे हो सकता है कि उनका जीवन भर गुजारा हो जाये लेकिन विश्व इतिहास में उनका नाम ऐसे भगोड़े शासकों के रूप में लिखा जायेगा जो अपनी जनता को लूट कर और उनको मुश्किलों में छोड़कर भागे हैं। सवाल यह भी उठता है कि यह नेता दूसरे देश में दोयम दर्जे के नागरिक बनकर जब रहेंगे तो कैसे सिर उठाकर चल पायेंगे?
-नीरज कुमार दुबे
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