Stock Market Crash का कारण क्या है? छोटे निवेशकों को ऐसे हालात में क्या करना चाहिए? क्या मोदी सरकार हालात को संभाल पायेगी?

Stock Market
ANI

आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरावट मुख्य रूप से कनाडा और मेक्सिको से अमेरिकी आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की चिंता से हुई है। इसके साथ ही चीनी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने के ऐलान से भी बाजारों में चिंता है।

जो लोग शेयर बाजारों में आये उछाल को भारतीय अर्थव्यवस्था की तरक्की से जोड़ते हैं उन्हें अब बाजार में गिरावट को लेकर चुप्पी नहीं साधनी चाहिए और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देनी चाहिए। जिस तरह निवेशकों के लाखों करोड़ रुपए स्वाहा हो रहे हैं और सरकार बस सबकुछ देखते रहने को मजबूर है उससे खासतौर पर छोटे निवेशकों में डर का माहौल है। एक दिन पहले यानि शुक्रवार को ही निवेशकों को नौ लाख करोड़ रुपये की चपत लग गयी क्योंकि वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट के बीच घरेलू शेयर बाजार में बीएसई सेंसेक्स 1,414 अंक लुढ़क गया। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से दी जा रही शुल्क दर की नई चेतावनियों से वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ी है। इसके साथ ही विदेशी संस्थागत निवेशकों की सतत पूंजी निकासी ने भी निवेशकों की कारोबारी धारणा को प्रभावित किया है। देखा जाये तो इस भारी गिरावट से बीएसई सेंसेक्स पिछले साल 27 सितंबर को हासिल 85,978.25 के अपने रिकॉर्ड शिखर से अब तक 12,780.15 अंक यानी 14.86 प्रतिशत नीचे आ चुका है। वहीं एनएसई निफ्टी 27 सितंबर, 2024 को 26,277.35 के अपने सर्वकालिक उच्चस्तर से अब तक कुल 4,152.65 अंक यानी 15.80 प्रतिशत टूट चुका है।

शेयर बाजार में गिरावट के कारण क्या हैं?

आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरावट मुख्य रूप से कनाडा और मेक्सिको से अमेरिकी आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की चिंता से हुई है। इसके साथ ही चीनी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाने के ऐलान से भी बाजारों में चिंता है। इसके अलावा अब अमेरिका द्वारा यूरोपीय संघ से आयात पर भी शुल्क लगाए जाने की आशंका ने बाजार की घबराहट को और बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर देखें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शुल्क लगाने के आदेश से वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध छिड़ने की आशंका जोर पकड़ने लगी है। इसके अलावा अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आ रही नरमी भी निवेशकों की चिंताएं बढ़ाने का काम कर रही है। हम आपको यह भी बता दें कि एशिया के अन्य बाजारों में दक्षिण कोरिया का कॉस्पी, जापान का निक्की, चीन का शंघाई कंपोजिट और हांगकांग का हैंगसेंग भारी गिरावट के साथ बंद हुए। यूरोप के अधिकांश बाजार गिरावट के साथ कारोबार कर रहे थे। बृहस्पतिवार को अमेरिकी बाजारों में भी भारी गिरावट दर्ज की गई थी।

इसे भी पढ़ें: वैश्विक रुख, एफपीआई की गतिविधियों से तय होगी शेयर बाजार की दिशा : विश्लेषक

आर्थिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि बाजारों में इस स्तर की गिरावट आमतौर पर कई कारकों के एक साथ आने से होती है। जैसे कई बड़ी कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद से कमतर रहने के चलते भी निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई। इसके अलावा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद आयात शुल्क से जुड़ी धमकियां आने और भारत की धीमी होती आर्थिक वृद्धि ने भी भारतीय शेयर बाजार के लिए माहौल को खराब करने का काम किया। ट्रंप की शुल्क घोषणाओं के साथ ही कमजोर अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों और मुद्रास्फीति जोखिम ने भी बाजार की अनिश्चितताओं को बढ़ाने का काम किया है। इसके साथ ही एफआईआई लगातार भारतीय शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं। अकेले 2025 में ही अब तक विदेशी कोष एक लाख करोड़ रुपये से अधिक निकासी कर चुके हैं। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी, वैश्विक अनिश्चितताओं और महंगे इक्विटी मूल्यांकन से बाजार में अनिश्चितता बढ़ी है। साथ ही विदेशी संस्थागत निवेशक अपना पैसा अधिक आकर्षक मूल्यांकन वाले बाजारों जैसे चीन में लगा रहे हैं। इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारत से बाहर निकलने की रणनीति पर रोक लगने के कोई भी संकेत नहीं दिख रहे हैं। इसकी वजह से भी बाजारों पर भारी दबाव बना हुआ है। दरअसल, अधिक मूल्यांकन के कारण निवेशक यहां अपने इक्विटी निवेश को घटा रहे हैं।

आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल बढ़ने, डॉलर में मजबूती, रुपये में कमजोरी और भारतीय शेयरों के बढ़े हुए मूल्यांकन ने विदेशी निवेशकों के बीच भारतीय शेयरों का आकर्षण घटा दिया है। इसकी वजह से विदेशी निवेशक यहां से निकासी कर रहे हैं। साथ ही उपभोक्ता खंड, वाहन और निर्माण सामग्री सहित प्रमुख भारतीय क्षेत्रों की उम्मीद से खराब तिमाही रिपोर्ट से कंपनियों के मुनाफे पर संदेह पैदा हो रहा है। इसके अलावा, बाजार पर मंडरा रहा एक बड़ा जोखिम वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका है। हम आपको बता दें कि अमेरिका ने हाल ही में इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है जबकि अन्य वस्तुओं पर वह जवाबी शुल्क लगाने पर विचार कर रहा है।

आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कंपनियों का लाभ बढ़ता है, वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर होती है और भारत सरकार लाभकारी नीतियां लागू करती रहती है, तो स्थिति सुधर सकती है। हालांकि, अगर वैश्विक मुद्रास्फीति उच्च बनी रहती है, मंदी आती है या एफपीआई की निकासी जारी रहती है तो बाजार में और गिरावट भी आ सकती है। देखा जाये तो इस समय बाजार में सतर्कता का माहौल बना हुआ है। कंपनियों के नतीजों में उल्लेखनीय सुधार नहीं होने और आसान वैश्विक तरलता एवं स्थिर मुद्रा के साथ अनुकूल माहौल न होने तक निराशावादी धारणा बनी रह सकती है।

अब सवाल यह उठता है कि छोटे निवेशकों को क्या करना चाहिए क्योंकि बाजार में गिरावट से उनकी जमापूंजी स्वाहा हो रही है। छोटे निवेशक जिन्होंने मुख्य रूप से फ्लेक्सीकैप, वैल्यू और बैलेंस्ड (इक्विटी हाइब्रिड) फंडों में निवेश किया है वह बेहद दर्द के दौर से गुजर रहे हैं और कोई नहीं जानता कि यह दर्द कब खत्म होगा। यहां एक बात तो सभी को समझनी होगी कि ट्रंप अभी चार साल राष्ट्रपति रहने वाले हैं और जो टैरिफ युद्ध उन्होंने शुरू किया है उससे अमेरिका सहित कई अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और भारत भी इससे नहीं बचेगा। विश्लेषकों का मानना है कि यह समय जायेगा और अच्छा समय आयेगा लेकिन यह कब होगा इसके बारे में कोई गारंटी से नहीं कह सकता। विश्लेषकों का छोटे निवेशकों के लिए यही सुझाव है कि वह सीधे बाजार में पैसा लगाने की बजाय एसआईपी के जरिये निवेश करें और जिनकी एसआईपी चल रही है वह उसे बंद नहीं करें। साथ ही शेयर बाजार में हो रहे घाटे से परेशान होकर कोई प्रतिकूल कदम नहीं उठायें। हम आपको बता दें कि शेयरों की खरीद-फरोख्त में 16 लाख रुपये गंवाने के बाद नासिक में एक व्यक्ति ने खुद को आग लगा ली, जिससे उसकी मौत हो गई।

राजनीतिक मुद्दा बना शेयर बाजार की गिरावट

दूसरी ओर, अब शेयर बाजारों की गिरावट एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चुकी है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भारत के शेयर बाजारों में आई गिरावट के लिए विदेशी निवेशकों द्वारा पैसा निकालने को जिम्मेदार ठहराया और तर्क दिया कि यह भाजपा नीत सरकार के तहत देश की अर्थव्यवस्था में विश्वास की कमी को दर्शाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘देश के शेयर बाज़ार के लगातार गिरने का कारण यदि विदेशी निवेशकों का भारतीय बाज़ार से पैसा निकालना है, तो ये दर्शाता है कि विदेशी निवेशकों का भारत की वर्तमान अर्थव्यवस्था से भरोसा उठ गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘निवेश को आकर्षित करने के नाम पर करोड़ों रुपये ख़र्च किया जाना निरर्थक अपव्यय है। इसका एक अर्थ ये भी निकलता है कि स्थानीय उद्योग, उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।’’

सपा नेता ने कहा, ‘‘जनता के हाथों में पैसों की बेहद कमी है, जिसके कारण आंतरिक मांग लगातार घट रही है और कंपनियों का मुनाफ़ा भी। कंपनियों के मुनाफ़े में से भाजपा सरकार की चंदा वसूली भी भारतीय बाजार को हतोत्साहित कर रही है, जिसका नकारात्मक असर शेयर बाज़ार पर पड़ रहा है।’’ उन्होंने सत्तारुढ़ दल पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘‘निवेशक कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा।'' 

बहरहाल, सोमवार को जब बाजार खुलेंगे तब देखना होगा कि क्या स्थिति रहती है। यह भी देखना होगा कि इस गिरावट को थामने के लिए सरकार की ओर से क्या पहल की जाती है? यह भी देखना होगा कि क्या छोटे निवेशक बाजार में अपना निवेश बढ़ाते हैं?

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़