कोरोना से उद्योग पर दोहरी मार, एक तो कामगारों की तंगी, दूसरी देनी पड़ रही ज्यादा मजदूरी
वर्तमान परिस्थिति में देखे तो एक बात तो स्पष्ट है कि अगर इसी तरीके से मजदूर अपने गृह राज्य की ओर लौटते रहे तो आने वाले दिनों में उद्योगों को अपने निर्माण कार्य को जारी रख पाना मुश्किल हो सकता है।
विश्व के साथ-साथ भारत में भी कोरोना महामारी जारी है। इस महामारी के कारण देश में लॉक टाउन है। भारत में लॉक डाउन का तीसरा चरण चल रहा है। इस लॉक डाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां पूरी तरीके से ठप हो गई थी हालांकि अब सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने की इजाजत दे दी है पर कुछ शर्तों के साथ। लेकिन अब कंपनियों के सामने बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है। दरअसल बड़ी कंपनियों के साथ-साथ देश के सैकड़ों छोटे एवं मध्यम उद्योगों ने अपने ठप पड़े निर्माण कार्य को दोबारा से शुरू करने का फैसला किया है लेकिन इन कंपनियों का सामना अब बढ़ती लेबर कोस्ट से हो रहा है जो कि एक बड़ी चुनौती है।
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दरअसल उद्योगों के सामने श्रमिकों की तंगी बढ़ रही है। कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन के बाद श्रमिक लगातार अपने राज्य लौट रहे हैं। उनके लौटने की व्यवस्था भी स्वयं सरकार की ही तरफ से की गई है। मजदूरों के लौटने के कारण उन्हें रोकने के लिए अब उद्योग मजदूरी बढ़ाने को मजबूर हैं। एक तो पहले से ही निर्माण कार्य ठप होने और बाजार बंद होने के कारण उन्हें करोड़ों का नुकसान हो गया है, अब लेबर कॉस्ट बढ़ने से उनके लिए उद्योग को दोबारा शुरू करना मुश्किल हो रहा है। कंस्ट्रक्शन, कंज्यूमर गुड्स और ई कॉमर्स सेक्टरों में यह समस्या साफ तौर पर अब दिखाई देने लगी है। विशेषज्ञ इस बात की भी आशंका जता रहे हैं कि अगर लॉक डाउन खत्म होता है और बड़ी कंपनियां कामकाज पर लौटती है तो वहां भी इस समस्या का सामना देखने को मिल सकता है।
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एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि ई-कॉमर्स डिलीवरी और वेयरहाउस स्टाफ के मेहनताना को 50 से 100% तक बढ़ा चुके हैं। फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे ई-कॉमर्स कंपनियों को प्रतिदिन वेज में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं ग्रोफर्स ने भी 20 से 25% तक के पेमेंट बढ़ा दिए हैं। हां, ऑनलाइन ग्रॉसरी बेचने वाली कंपनियों का डिमांड लॉक डाउन के दौरान तो बढ़ा है लेकिन अमेजन और फ्लिपकार्ट की दशा जस के तस बनी रही। वही मॉल और शॉपिंग कंपलेक्स की बात करें तो वहां भी वर्कफोर्स शायद ही इस गर्मी में तो नहीं बढ़ाई जाएगी। जिसके बाद उन्हें लेबर कॉस्ट ज्यादा उठाना पड़ सकता है। कंज्यूमर कंपनियों का भी कहना है कि उनकी लागत में 15 से 20% की बढ़ोतरी हुई है। खास करके ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अब ड्राइवरों और लोडरों की कमी हो गई है।
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कंपनियों में कम स्टाफ की भरपाई मौजूदा लोगों से ओवरटाइम कराकर किया जा रहा है। इसके लिए कंपनियों को ज्यादा पेमेंट भी करना पड़ रहा है। पार्ले कंपनी ने दावा किया है कि अधिकतर मजदूरों के अपने राज्यों में वापस जाने की उम्मीद है। अभी स्थिति और भी खराब हो सकती है। हमें अपने कारखाने चलाने और सप्लाई चैन बरकरार रखने के लिए अतिरिक्त लागत उठानी होगी। लेकिन इनसे मार्जिन घट गया है। उधर, स्मार्टफोन और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में इसका असर कम देखने को मिला है। हालांकि शुक्रवार को सैमसंग ने नोएडा में अपने इलेक्ट्रिक प्रोडक्शन को शुरू कर दिया है। इस दौरान सैमसंग के 3000 कर्मचारी उपस्थित रहे।
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वर्तमान परिस्थिति में देखे तो एक बात तो स्पष्ट है कि अगर इसी तरीके से मजदूर अपने गृह राज्य की ओर लौटते रहे तो आने वाले दिनों में उद्योगों को अपने निर्माण कार्य को जारी रख पाना मुश्किल हो सकता है। उन्हें मौजूदा वर्कर्स को अतिरिक्त पेमेंट भी करना पड़ेगा। इसके अलावा उनके सुरक्षा का भी ख्याल रखना पड़ेगा। वर्तमान में कंपनी को 30 से 50% तक के ही अपने लोगों के साथ उद्योग करने की इजाजत दी गई है। ऐसे में प्रोडक्शन भी कम हो सकता है। हालांकि सुरक्षा मानकों को ध्यान रखने के लिए कंपनी पर अतिरिक्त भार भी पड़ रहा है जिसका नुकसान उन्हें झेलना पड़ रहा है।
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