भारतीय इलेक्ट्रॉनिक बाजारों में चीन का दबदबा, 2019 में 1.4 लाख करोड़ रुपए का बेचा सामान
साल 2019 चीन ने भारत को एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए के इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचे हैं। जिसकी वजह से भारतीय कम्पनियां जैसे माइक्रोमैक्स, लावा, इंटेक्स और कार्बन को काफी नुकसान सहना पड़ा है।
चीनी कम्पनियों पर लगाम लगाने का प्रयास
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र की मोदी सरकार ने चीनी कम्पनियों पर लगाम लगाने के लिए टैरिफ लगाने की तैयारी कर रही है। जिन कम्पनियों का सीधे तौर पर या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर चीन की सरकार से लिंक होगा उन पर सरकार प्रतिबंध लगा सकती है। क्योंकि ऐसी कम्पनियां राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधा हो सकती हैं।
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अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 चीन ने भारत को एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए के इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचे हैं। जिसकी वजह से भारतीय कम्पनियां जैसे माइक्रोमैक्स, लावा, इंटेक्स और कार्बन को काफी नुकसान सहना पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी कम्पनियों को भी काफी घाटा हुआ है। दक्षिण कोरिया की सैमसंग और एलजी के साथ-साथ जापान की सोनी को भी नुकसान हुआ है।
भारत में चीन की 81 फीसदी हिस्सेदारी
इतना ही नहीं भारत के स्मार्टफोन बाजार में चीन की हिस्सेदारी लगातार बढ़ती ही जा रही है। साल 2018 में 80 फीसदी थी जो 2019 में बढ़कर 71 फीसदी हो गई। हालांकि 2020 में कोरोना महामारी की वजह से ज्यादातर बाजार बंद रहे लेकिन पहली तिमाही में स्मार्टफोन बाजाप में चीनी कम्पनियों का कब्जा बढ़कर 81 फीसदी हो गया है।
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चीनी कम्पनियों की लगातार हिस्सेदारी बढ़ने के साथ ही भारतीय कम्पनियों का दिवाला निकल रहा है। बाजार से भारतीय कम्पनियों की पूछ लगभग समाप्त होती जा रही है।
अगर हम टॉप पांच कम्पनियों की बात करें तो सैमसंग के अलावा बाकी चारों कम्पनियां चीन की हैं। पहले नंबर पर श्याओमी, दूसरे पर सैमसंग, तीसरे पर वीवो, चौथे पर ओपो और अंत में रीयल मी का नंबर आता है। टॉप पांच की कम्पनियों में कहीं भी भारतीय कम्पनी का नाम नहीं हैं। विशेषज्ञ इसके पीछे सस्ते और अत्याधुनिक स्मार्टफोन को वजह बताते हैं। क्योंकि स्मार्टफोन के मामले में चीन ने धीरे-धीरे पूरा बाजार ही अपने कब्जे में ले लिया है।
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स्मार्टफोन के बाजार में शामिल ज्यादातर लोगों का कहना है कि चीन विरोधी बयानबाजी दीर्घकालिक समाधान नहीं है। हमें चीन का मुकाबला करने के लिए एक रणनीति की जरूरत है और चीनी समानों को बाजार से खत्म करने के लिए दो से तीन साल का समय भी लग सकता है। इसलिए तब तक हमें चीन पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
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