कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है का संगीत देने वाले खय्याम हाशमी...
कोई गीत कानों में मिसरी सा घुले, दर्द से दुखते दिल पर मरहम सा लगे, रेशम के धागों सा रूह को बांध ले और मन की मिट्टी पर सावन की पहली बूंदों सा पड़े तो समझ लीजिए कि आप मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी की पुरसुकून मौसिकी से वाबस्ता हैं। खय्याम साहब ने अपने हर गीत की आत्मा के अनुसार उसका संगीत बनाया और उसे अमर कर दिया।
नयी दिल्ली। कोई गीत कानों में मिसरी सा घुले, दर्द से दुखते दिल पर मरहम सा लगे, रेशम के धागों सा रूह को बांध ले और मन की मिट्टी पर सावन की पहली बूंदों सा पड़े तो समझ लीजिए कि आप मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी की पुरसुकून मौसिकी से वाबस्ता हैं। खय्याम साहब ने अपने हर गीत की आत्मा के अनुसार उसका संगीत बनाया और उसे अमर कर दिया। यह उनकी धुनों की नफासत और बारीकी ही थी किआंखों की मस्ती का जिक्र हो तो नशा हो जाए, फूलों की बात हो तो फजां में खूश्बू सी बिखर जाए, चांदनी रात में किसी को देखें तो सारा आलम सुरमई लगने लगे, और कुछ देर ठहरने का इसरार हो तो फिर उठकर जाया न जाए।
इसे भी पढ़ें: फिल्म मरजावां का पोस्टर हुआ रिलीज़, फिर से साथ दिखेगी 'एक विलेन' की जोड़ी!
18 फ़रवरी 1927 को पंजाब में जन्मे ख़य्याम के परिवार में कोई इमाम था तो कोई मुअज्जिन, लिहाजा किसी को संगीत और फ़िल्मों की तरफ उनके रूझान की कोई वजह समझ नहीं आई, लेकिन वह के. एल. सहगल की तरह गायक और अभिनेता बनने की जिद ठाने रहे और एक दिन अपने चाचा के पास दिल्ली चले आए और संगीत पंडित हुस्नलाल-भगतरात के यहां संगीत सीखने लगे। संगीत की तालीम अभी चल ही रही थी फिल्मों में किस्मत आजमाने की ललक उन्हें बम्बई खींच ले गई, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ आने लगा कि सुर और ताल पर अभी उनकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं कि सफलता की सीढ़ी चढ़ सकें। उन दिनों संगीतकार गुलाम अहमद चिश्ती का खूब नाम हुआ करता था और फिल्मी घरानों से भी उनके अच्छे ताल्लुकात थे। खय्याम उनसे संगीत सीखने लाहौर पहुंच गए और एक शर्त के साथ उन्हीं के घर में रहने लगे। वहां से फिल्मी दुनिया तक के उनके सफर का वाकया बहुत मजेदार रहा।
इसे भी पढ़ें: सलमान ख़ान ने क्यों किया मोबाइल फ़ोन को दबंग 3 के सेट पर बैन?
पत्र पत्रिकाओं और टेलीविजन पर अपने इंटरव्यू के दौरान खय्याम अक्सर इस बात का जिक्र किया करते थे कि एक बार बीआर चोपड़ा बाबा चिश्ती के यहां आए और उन्हें सब मुलाजमीन को तनख़्वाह बाँटते देखा, लेकिन उन्होंने खय्याम को पैसे नहीं दिए। इस पर बी आर चोपड़ा ने सवाल किया कि आपने सबको वेतन दिया, लेकिन इस नौजवान को कुछ नहीं दिया, जबकि सबसे ज्यादा काम यही कर रहा है तो बाबा चिश्ती ने उन्हें बताया कि इस नौजवान के साथ मेरा यही करार है कि यह मेरे घर में रहकर संगीत सीखेगा पर इसे पैसे नहीं मिलेंगे। बीआर चोपड़ा ने उसी समय खय्याम को 120 रूपए महीने की तनख्वाह पर अपने यहां मुलाजिम रख लिया और उनका फिल्मी दुनिया तक पहुंचने का उनका रास्ता हमवार कर दिया।
इसे भी पढ़ें: अभिनंदन वर्धमान पर फिल्म बनाएंगे विवेक ओबेरॉय, 3 भाषाओं में होगी रिलीज
खय्याम के सात दशक से भी ज्यादा के फिल्मी सफर में ऐसे हजारों गीत हैं जो उनके संगीत के साथ सदियों तक गुनगुनाए जाएंगे। उनके संगीत ने कई फिल्मों को अमर बना दिया। फिल्म उमराव जान और कभी कभी के संगीत को इन सदाबहार फिल्मों की रूह कहा जा सकता है। अपने संगीत से फिल्म में प्राण फूंक देने वाले ऐसे संगीतकार युगों में कभी एक बार जन्म लेते हैं और फिर युगों तक याद किए जाते हैं।
अन्य न्यूज़