परंपरागत नायिका के फ्रेम को हमेशा तोड़ने वाली कंगना मणिकर्णिका में छाईं
हर कोई सफेद घोड़े पर सवार रानी लक्ष्मीबाई बनी कंगना को जब दास्ता के प्रतीक यूनियन जैक को तलवार से भेदते देखता है तो एक पल को रोयां रोयां खड़ा हो जाता है। ये स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही भारत में महारानी लक्ष्मीबाई के प्रति अगाध श्रद्धा को बयां करती है।
ब्रितानी हुकूमत को अपने शौर्य से हिला देने वाली झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई का शौर्य एक दफा फिर सिनेमा के पर्दे पर साकार होने जा रहा है। यह फिल्म हिन्दुस्तान में किस जज्बात से देखी जाएगी कुछ माह पहले देश भर में चर्चित रहा ट्रेलर ही बता गया था। कंगना रनौत की केन्द्रीय भूमिका में यह फिल्म गणतंत्र दिवस पर देश भर के मल्टीप्लैक्स व सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। फिल्म रिलीज से पहले सोशल मीडिया में भरपूर चर्चा में है। हर कोई सफेद घोड़े पर सवार रानी लक्ष्मीबाई बनी कंगना को जब दास्ता के प्रतीक यूनियन जैक को तलवार से भेदते देखता है तो एक पल को रोयां रोयां खड़ा हो जाता है। ये स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही भारत में महारानी लक्ष्मीबाई के प्रति अगाध श्रद्धा को बयां करती है। फिलम वास्तव में हिन्दुस्तान के माथे की मणि की जीवटता देश दुनिया को बताने जा रही है।
1857 के संग्राम में ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का जो युद्ध शुरू हुआ उसमें झांसी की रानी का नाम अदम्य शौर्य और वीरता के लिए अमर हो गया है। रूपहले पर्दे से समाज और कला के विभिन्न मंचों तक रानी लक्ष्मीबाई को देशवासियों ने अपने अपने तरीकों से पूजा है। महारानी लक्ष्मीबाई पर मणिकर्णिका फिल्म हम 19 जनवरी 2019 को देख पाएंगे। इस फिल्म में कंगना रनौत तलवार से फिरंगियों को खदेड़ती हुई पूरे हिन्दुस्तान की रानी लक्ष्मीबाई बन जाएंगी। कंगना हिन्दी सिनेमा में विद्रोही स्वभाव की अदाकारा के रूप में सामने आयी हैं।
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तनु वेड्स मनु और तनु वेडस मनु रिटर्न दोनों में कंगना का किरदार परंपरागत नायिका की फ्रेम को तोड़ता नजर आता है। फिल्म में बिंदास तनु शर्मा और हरियाणवी एथलीट तनु के डबल रोल में वे अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहीं थीं। मणिकर्णिका के लिए अगर जी ने उन्हें चुना है तो इसके लिए उनका स्पष्टवादी और कुछ हद तक विद्रोही अवचेतन भी निर्देशक के ध्यान में रहा होगा। पर्दे पर अभिनय करते समय कलाकार खुद को आधा बदल सकता है पूरा नहीं।
मणिकर्णिका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तलवार उठाए वही अदाकारा न्याय कर सकती थी जो वीर रस के भाव को अपने अंर्तमन में समाहित किए हो। हिन्दी सिनेमा में शेखर सुमन से लेकर ऋतिक रोशन से हुए निजी विवाद में कंगना रनौत का विद्रोही स्वभाव मीडिया की सुर्खियां बना था। ये फिल्मकार की कुशलता होगी अगर वो विद्रोही भाव अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ मणिकर्णिका के फिल्मांकन में वे कंगना के अंदर से निकलवा पाए। मणिकर्णिका से पहले महारानी लक्ष्मीबाई पर पूर्व में भारत की पहली मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन भी फिल्म बनाना चाहती थीं। अगर ये फिल्म बनती तो दर्शक समय फिल्म में एसीपी के सख्त रोल में दिखीं सुष्मिता को अश्वारोही लक्ष्मीबाई के रूप में देख पाते।
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हिन्दुस्तान की माटी को अपनी वीरता और लहू से पावन बनाने वाली लक्ष्मीबाई का किरदार स्कूलों के सालाना कार्यक्रमों से लेकर अनगिनत मंचों पर तमाम बालिकाएं, युवतियां और महिलाएं निभाती आ रही हैं। लक्ष्मीबाई का चरित्र है ही ऐसा जो हमेशा से अनुकरणीय है। आजादी के 5 साल बाद ही 1953 में महारानी लक्ष्मीबाई पर बनी फिल्म मुंबई सिनेमा में दर्ज हो गई।
फिल्म प्रख्यात फिल्कार सोहराब मोदी ने बनाई जिसका नाम था झांसी की रानी। खास बात रही कि इस फिल्म में सोहराब मोदी की पत्नी मेहताब रानी लक्ष्मीबाई के किरदार में अंग्रेजों से स्वतंत्रता का युद्ध लड़ते नजर आयीं। बिना रंगीन सिनेमा के भी इस फिल्म में पर्दे पर महिला सशक्तिकरण और भारतीय नारी के अदम्य साहस और वीरता को पर्दे पर अमर कर दिया। इस फिल्म के पहले और बाद में तमाम प्रयास हुए होंगे मगर लेखक के ज्ञान की उड़ान उन तक पहुंचने के लिए अभी प्रयासरत ही है।
लक्ष्मीबाई का किरदार सिनेमा के बड़े पर्दे के बाद टीवी के छोटे पर्दे पर बखूबी साकार हुआ है। कुछ साल पहले पुनर्विवाह सीरियल में भावपूर्ण अभिनय करने वाली कृतिका सेंगर ने महारानी लक्ष्मीबाई के पात्र को खुलकर जिया था। इस सीरियल में मनु के बचपन की वीरता को बाल कलाकार ने जीवंत बना दिया था।
महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता सिनेमा, साहित्यिक कार्यक्रमों के साथ सांस्कृतिक आयोजनों में भी निरंतर गूंजती रही है। ग्वालियर में राष्ट्रीय वीरांगना बलिदान मेला अब भारत का सबसे बड़ा शहीदी मेला बन गया है। वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि के सामने 300 कलाकारों द्वारा प्रस्तुत महानाटय खूब लड़ी मर्दानी और अखिल भारतीय कवि सम्मेलन साल 2000 से देश दुनिया तक महारानी की वीरता को गुंजायमान करता आ रहा है। इस मेले में कर्णम मल्लेश्वरी से लेकर पर्यावरणविद वंदना शिवा तक देश की प्रख्यात महिलाएं वीरांगना अलंकरण से सम्मानित हो चुकी हैं।
ग्वालियर में महारानी की शहादत को आदरांजलि का ये सिलसिला हालांकि 18 जून 1948 को शुरु हुआ था जब महाराज बाड़े पर महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान को नमन करने स्वातंत्रय वीर सावरकर आए थे। देश की वीरांगना को नमन करने का यह आयोजन प्रख्यात राष्ट्रवादी और गांधीवादी चिंतक पंडित गोपाल कृष्ण पौराणिक की अगुआई में प्रारंभ हुआ। तब महाराज बाड़े से महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि तक नगरवासी और प्रबुद्धजन वीरांगना को श्रद्धासुमन अर्पित करने सड़कों पर निकले थे।
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देश के लिए मर मिटने वाली बेटियों और वीरांगनाओं को याद करने का ये प्रवाह समाज में निरंतर चलता रहेगा। बनारस के मणिकर्णिका घाट पर शूटिंग से प्रारंभ होने वाली कंगना रनौत की मणिकर्णिका एक ऐसा ही प्रयास है। ये फिल्म उस महान योद्धा के लिए है जिसकी वीरता के लिए लिए अंग्रेजी अफसर ने लिखा था कि युद्ध में तलवार भांजने वाले भारतीयों में वो इकलौती मर्द दिखती हैं हालांकि महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता मर्द और स्त्री के विभाजन से बहुत ऊपर सर्वत्र पूज्यनीय है।
हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर हम 1857 के संग्राम में होम होने वाली महारानी लक्ष्मीबाई को जितना ज्यादा गहराई से जान पाएंगे कंगना रनौत लक्ष्मीबाई के किरदार में उतनी ही सफल कहलाएंगी। वे हिन्दुस्तान के माथे की मणि बनने जा रही हैं। शुभकामनाएं।
- विवेक कुमार पाठक
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