Gyan Ganga: परीक्षित के ज्येष्ठ पुत्र जनमेजय ने ब्राह्मणों से सर्प यज्ञ क्यों करवाया था?

Janamejaya hawan
Prabhasakshi
आरएन तिवारी । Jul 14 2023 4:56PM

अब जब ब्राह्मणों ने आकर्षण मंत्र का पाठ किया तब इन्द्र तक्षक के साथ घबरा गए। जब अंगिरनन्दन देवगुरु बृहस्पति ने देखा कि आकाश से देवराज इन्द्र सिंहासन और तक्षक सहित अग्निकुंड में गिर रहे हैं तब राजा जनमेजय से कहा— हे नरेंद्र! सर्पराज तक्षक को मारना उचित नहीं है।

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 

प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! भागवत-कथा, स्वर्ग के अमृत से भी अधिक श्रेयस्कर है। 

भागवत-कथा श्रवण करने वाले जन-मानस में भगवान श्री कृष्ण की छवि अंकित हो जाती है। यह कथा “पुनाति भुवन त्रयम” तीनों लोकों को पवित्र कर देती है। तो आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। मित्रों ! 

पूर्व कथा प्रसंग में हमने सुदामा चरित्र की कथा सुनी। 

आइए ! अब आगे की कथा प्रसंग में चलें----

शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित ! इस प्रकार कृष्ण बलराम द्वारिका में निवास कर रहे थे। एक बार कुरुक्षेत्र में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण लगा। ऐसा ग्रहण प्रलय के समय लगा करता है। पुण्य प्राप्त करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से वहाँ पधारे हुए थे। अक्रूर, वसुदेव, उग्रसेन आदि सभी बड़े-बूढ़े अपने पापों का नाश करने के लिए वहाँ आए थे। जब नन्द बाबा को पता चला कि श्री कृष्ण आदि यदुवंशी कुरुक्षेत्र में आए हैं तब वे भी गोप-गोपियों के साथ सारी सामग्री गाड़ी में लादकर अपने प्रिय पुत्र कृष्ण-बलराम से मिलने के लिए वहाँ पहुँच गए। नन्द आदि गोपों को देखकर सभी यदुवंशी आनंद से भर गए। बहुत दिनों के बाद एक-दूसरे से बात चित की। वसुदेव जी ने आनंद से विह्वल होकर नन्द जी को हृदय से लगा लिया। कृष्ण बलराम ने माँ यशोदा और पिता नन्द के हृदय से लगकर चरण स्पर्श किया। नन्द-यशोदा दोनों ने अपने पुत्रों को हृदय से जकड़ लिया। इतने दिनों से न मिलने का जो दुख था वह मिट गया। बहुत दिनों के बाद आज गोपियों को भी भगवान के दर्शन हुए। गोपियों की कृष्ण मिलन की चिर काल की लालसा आज पूरी हुई। कृष्ण ने कहा---

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: भगवान ने कुछ दिया नहीं तो सुदामा क्या सोचते हुए चले जा रहे थे?

गोपियों ! अपने स्वजन और संबंधियों का कम करने के लिए हम व्रज से बाहर चले आए और शत्रुओं का विनाश करने में उलझ गए। तुम लोग हमे कृतघ्न मत समझो। गोपियों को समझाने के पश्चात भगवान ने धर्म राज युधिष्ठिर और अन्य संबंधियों से कुशल-मंगल पूछा। इधर द्रौपदी ने कृष्ण की आठों पटरानियों से विवाह के संबंध में पूछा— रुक्मिणी, जांबवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवृन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। भगवान ने अपने विवाह की विस्तृत चर्चा की। तत्पश्चात भगवान ने ऋषि-मुनियों से भेंट की और उन्हे ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया। उसके बाद प्रभु अपनी द्वारिकापुरी वापस आ गए। 

इस प्रकार भगवान ने अनेक लीलाए कीं। अंत में वसुदेव जी को ब्रह्म का उपदेश दिया। ऋषियों के शाप के कारण यदुवंशियों का विनाश हो गया। जहां निर्माण है वहाँ विनाश अवश्य है। शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित ! अब सभी देवता गण अपने-अपने धाम को जाने की तैयारी करने लगे। ब्रहमा जी ने कहा- 

भूमेर्भारा वताराय पुरा विज्ञापित; प्रभो। 

हे प्रभु! आपने अवतार लेकर पृथ्वी का भार उतारा। धर्म परायण पुरुषों के लिए धर्म की स्थापना की और दसों दिशाओं में अपनी कीर्ति स्थापित की। जगत के कल्याण के लिए अनेक लीलाएं की। कलियुग में जो व्यक्ति आपकी लीलाओं का श्रवण करेगा वह सुगमता पूर्वक इस भव सागर से पार हो जाएगा। आपको यदुवंश में अवतार ग्रहण किए एक सौ पचीस वर्ष बीत गए। अब ऐसा कोई काम बाकी नहीं है जिसे पूरा करने के लिए आपको यहाँ रहने की जरूरत हो।  

    

अब ब्राह्मणों के शाप के कारण यदुवंश भी नष्ट हो गया है, इसलिए हे वैकुंठ पति! अब अपने परम धाम में पधारिए और हम देवताओं का पालन-पोषण कीजिए। ऐसा कहकर ब्रह्माजी देवताओं के साथ अपने धाम को चले गए। 

तत; स्वधाम परमं विशस्व यदि मन्यसे 

सलोकानलोकपालान न; पाहि वैकुंठ किंकरान॥ 

  

एकादश स्कन्ध में अवधूतोपाख्यान के अंतर्गत भगवान कृष्ण ने उद्धव जी से चौबीस गुरुओं की कथा, सत्संग की महिमा, भक्ति की महिमा वानप्रस्थ और सन्यासी धर्म के साथ-साथ कर्म योग की चर्चा की। अंत में कहा- उद्धव ! आज के सातवें दिन समुद्र द्वारिकापुरी को डूबो देगा। जिस क्षण मैं इस भू लोक का परित्याग करूंगा उसी क्षण यहाँ के सारे मंगल नष्ट हो जाएंगे और पृथ्वी पर कलियुग का बोल-बाला हो जाएगा। इसके बाद कथा आती है कि जरा नाम का एक व्याध (बहेलिया) श्री कृष्ण के पैर के तलवे को हिरण की जीभ समझकर बाण मारता है। भगवान पीपल के वृक्ष के नीचे आसन लगाकर बैठते हैं, अपने नेत्रों को बंद करके अपने श्री विग्रह अर्थात शरीर को इस परम पुनीत श्रीमद भागवत पुराण में स्थापित करते हैं और अपने धाम वैकुंठ में चले जाते हैं। 

शुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित! भगवान के परम धाम प्रस्थान को देखने के लिए सभी देवता, यक्ष, किन्नर, गंधर्व वहाँ आए और भक्ति-भाव से पुष्पों की वर्षा करने लगे। सूत जी कहते हैं-- शौनकादि ऋषियों ! राजा परीक्षित ने श्री शुकदेवजी से कहा- हे ब्रह्मन ! आपने मुझे भगवान के परम कल्याणमय स्वरूप का साक्षात्कार करा दिया है। इस प्रकार कहकर राजा परीक्षित ने भगवान श्री शुकदेव जी की बड़े प्रेम से पूजा की। शुकदेव जी महाराज परीक्षित से विदा लेकर महात्माओं के साथ वहाँ से चले गए। 

आइए ! जहां से कथा की शुरुआत हुई थी उसके समापन की ओर चलें। आज सातवाँ दिन है। उधर तक्षक राजा परीक्षित को डँसने के लिए चला है। रास्ते में कश्यप वैद्य मिलते हैं जो जहर विद्या में निपुण है। तक्षक से कहते हैं- यदि तुम हमारे धर्मनिष्ठ राजा को डँसोगे तो मैं अपनी विद्या से जीवित कर दूँगा इसलिए वापस चले जाओ। तक्षक ढेर सारा धन-दौलत देकर कश्यप वैद्य को विदा कर देता है और फूल का रूप धारण कर परीक्षित को डंस देता है। कथा के प्रभाव से वे पहले ही ब्रह्मस्थ हो गए थे। तक्षक की तीव्र विष ज्वाला से उनका शरीर सबके सामने जलकर भस्म हो गया। उनके लिए चिता नहीं सजाई गई।

बाद में परीक्षित के ज्येष्ठ पुत्र जनमेजय ने ब्राह्मणों से सर्प यज्ञ करवाया। मंत्र के प्रभाव से सभी सर्प यज्ञकुंड में गिरने लगे। तक्षक इन्द्र के सिहासन में लिपट गया था। परीक्षित नन्दन जनमेजय ने कहा- ब्राह्मणों! आप लोग इन्द्र के साथ तक्षक को अग्नि में क्यों नहीं गिरा देते?

सहेन्द्र्स्तक्षको विप्रा नाग्नौ किमिति पात्यते। 

अब जब ब्राह्मणों ने आकर्षण मंत्र का पाठ किया तब इन्द्र तक्षक के साथ घबरा गए। जब अंगिरनन्दन देवगुरु बृहस्पति ने देखा कि आकाश से देवराज इन्द्र सिंहासन और तक्षक सहित अग्निकुंड में गिर रहे हैं तब राजा जनमेजय से कहा— हे नरेंद्र! सर्पराज तक्षक को मारना उचित नहीं है। यह अमृत पी चुका है इसलिए यह अजर और अमर है। कोई किसी को मारता नहीं। जगत के सभी प्राणी अपने-अपने प्रारब्ध कर्म का ही फल भोगते हैं। जनमेजय ने बृहस्पति की बात का सम्मान करके सर्प यज्ञ बंद कर दिया और अपने राज-काज में लग गए। 

इस प्रकार आज यहाँ श्रीमद भागवत की कथा सम्पन्न होती है। हम फिर किसी दूसरे धर्म ग्रंथ में मिलेंगे तब तक के लिए आप सभी को राम ----राम -----जय श्री कृष्ण !!

कथा विसर्जन होत है, सुनहुं परीक्षित राज । 

राधा संग श्रीकृष्णजी सिद्ध करे सब काज॥ 

                              

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।

-आरएन तिवारी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़