Gyan Ganga: श्रीहनुमानजी के चेहरे का तेज देखकर आश्चर्यचकित रह गये थे विभीषण

Hanumanji
सुखी भारती । Dec 28 2021 5:25PM

श्रीहनुमान जी के वचन सुन कर, श्रीविभीषण जी उसी क्षण, अपने भवन से बाहर आये। उन्होंने देखा, कि उनके समक्ष एक अतिअंत तेजस्वी ब्राह्मण उपस्थित हैं। जिनके दर्शन करते ही, श्रीविभीषण जी के हृदय में हर्ष व उल्लास के भाव उठने लगे।

श्रीहनुमान जी ने अब श्रीविभीषण जी से वार्ता करने की ठान ही ली थी। जिसके निमित, श्रीहनुमान जी अपना चिर परिचित रूप धारण करते हैं। जी हाँ! वे आज फिर ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं। ठीक वही रूप, जो उन्होंने श्रीराम जी से प्रथम भेंट में भी धारण किया था। निश्चित ही श्रीहनुमान जी के विभिन्न रूप धारण के क्रम में यह देखा गया है, कि वे किसी के समक्ष या तो बहुत बड़े आकार वाली देह धारण कर लेते हैं। अथवा बहुत छोटे रूप को भी धारण करते हैं। लेकिन श्रीराम जी के समक्ष पवनसुत महाराज, ब्राह्मण का ही रूप धारण करते हैं। कारण स्पष्ट था, कि जो जैसा है, उसे वैसे ही व्यवहार से मिलना चाहिए। प्रभु श्रीराम और श्रीविभीषण जी ब्रह्म की अनुभूति करवाते हैं, तो श्रीहनुमान जी भी ब्राह्मण के वेश में आ गए। श्रीविभीषण जी को कोई राक्षस अथवा माया से सना व्यक्ति मिला होता, तो उन्हें उससे मिलने में निश्चित ही, कुछ भी रुचिकर न लगता। शायद यही जान, श्रीहनुमान जी ने बिप्र रूप धर कर प्रभु का गान आरम्भ कर दिया-

‘बिप्र रुप धरि बचन सुनाए।

सुनत बिभीषन उठि तहँ आए।।

करि प्रनाम पूँछी कुसलाई।

बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।।’

श्रीहनुमान जी के वचन सुन कर, श्रीविभीषण जी उसी क्षण, अपने भवन से बाहर आये। उन्होंने देखा, कि उनके समक्ष एक अतिअंत तेजस्वी ब्राह्मण उपस्थित हैं। जिनके दर्शन करते ही, श्रीविभीषण जी के हृदय में हर्ष व उल्लास के भाव उठने लगे। श्रीविभीषण जी ने तत्काल श्रीहनुमान जी को प्रणाम किया। और उनकी कुशल पूछी। और कहा, कि हे बिप्रवर! आप कौन हैं। कृप्या अपनी कथा कहने का कष्ट करें। होना तो यह चाहिए था, कि श्रीहनुमान जी तुरंत अपना परिचय देते। और अपने आने का संपूर्ण उद्देश्य कह सुनाते। लेकिन अभी तक, जो श्रीहनुमान जी, श्रीविभीषण जी भेंट को लेकर इतने उत्साहित व व्यग्र थे, वे अब कुछ बोले ही नहीं। श्रीविभीषण जी ने देखा, कि बिप्रवर तो प्रतिऊत्तर में मौन ही हैं। श्रीविभीषण जी ने सोचा कि ब्राह्मण देवता इतने तेजस्वी हैं, तो निश्चित ही वे, भगवान विष्णु के दास हैं। कारण कि मेरे हृदय में इतनी प्रीति उमड़ रही है, तो निश्चित ही इन्हें श्रीहरि के दास ही होना चाहिए। या फिर ये दीन दुखियों को प्रेम करने वाले स्वयं श्रीराम जी ही हैं, जो कि मुझे साक्षात दर्शन देकर धन्य करने हेतु पधारे हैं-

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: श्रीहनुमान जी राम-राम की धुन सुन क्यों प्रसन्न होते हैं?

‘की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई।

मोरें हृदय प्रीति अति होई।।

की तुम्ह रामु दीन अनुरागी।

आयहु मोहि करन बड़भागी।।’

श्रीहनुमान जी ने देखा, कि श्रीविभीषण जी ने जब यह कहा, कि क्या मैं श्रीहरि जी का दास हूँ? तो निश्चित ही उन्होंने एकदम सही कहा था। लेकिन श्रीविभीषण जी तो कुछ अधिक ही अनुमान से परे जा पहुँचे। मुझे साक्षात श्रीराम जी ही समझने लगे। यह कुछ अधिक ही पर्दे में लुकाछुपी हो गई। निश्चित ही मुझे अब रहस्य से पर्दा उठा देना चाहिए। लेकिन यहाँ भी एक उलझन थी। उलझन यह, कि श्रीविभीषण जी ने तो मुझसे मेरी कथा कहने को कह डाला। अब इन्हें कौन बताये, कि हम वानरों की कोई कथा नहीं, अपितु व्यथा होती है। कथा तो मात्र प्रभु की ही होती है। श्रीविभीषण जी को अपनी व्यथा सुनाने में भला उनका क्या लाभ होगा। कारण कि जीव का कल्याण तो ईश्वर की कथा सुनने में ही है। प्रभु की कथा ही तो है, जिससे जीव के बंधन कारक कर्म संस्कार कटते हैं। मैं अथवा श्रीविभीषण जी, भला संसार की माया के व्यापारी थोड़ी न हैं। जो सुबह उठते ही माया की चर्चा व चिंतन आरम्भ कर दें। श्रीविभीषण जी के मुख से श्रीराम जी का पावन नाम का उच्चारण हुआ है, तो निश्चित ही उन्हें श्रीराम जी की कथा ही सुनानी चाहिए-

‘तब हनुमंत कह सब राम कथा निज नाम।

सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।’

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: हनुमान जी ने आखिर क्यों किया था विभीषण के लिए सज्जन शब्द का प्रयोग?

आश्चर्य है! अब श्रीहनुमान जी ने बड़े प्रेम व श्रृद्धा से श्रीराम जी की कथा कही। और सबसे बड़ी बात कि श्रीराम जी की कथा सुनने में मात्र श्रीविभीषण जी को ही आनंद नहीं हुआ। अपितु श्रीराम कथा सुनाने वाले, स्वयं श्रीहनुमान जी के हृदय में भी आनंद की रसगंगा बह उठी। मानों यह ऐसे था, कि कोई किसी को मेंहदी लगाने बैठे, और साथ में उसके हाथ भी, अपने आप ही रंगे जायें। प्रभु की कथा का प्रभुत्व ही यह है, कि वह सुनने वाले, और सुनाने वाले, दोनों को ही आनंद से सरोबार कर देती है। दोनों भक्तों की इस रसपूर्ण वार्ता में एक बात और है, जो आपने चिन्हित की होगी। वह यह कि प्रभु की कथा सुनाने के पश्चात, अब श्रीहनुमान जी अपना परिचय भी दे देते हैं, और श्रीविभीषण जी को अब अपना नाम बता देते हैं। लेकिन विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है, कि उससे पहले वे प्रभु की कथा सुनाते हैं। मानों कह रहे हों, कि भाई विभीषण जी, आप भला हमारा नाम पता पूछ कर क्या करेंगे। नाम से वास्ता रखना ही है, तो प्रभु के नाम से वास्ता रखें न। जीव के नाम में भला क्या प्रभाव व अर्थ होने हैं। कारण कि संसार में लोग नाम तो रखते हैं, ‘धनीदास’, लेकिन दरिद्रता ने उनको, कहीं का नहीं छोड़ा होता हैं। नाम कुछ, और काम कुछ। बस यही तो चलता है। इसलिए जिस नाम से सारे बँधन कटें, वह नाम तो केवल प्रभु का ही है। इसीलिए ही श्रीहनुमान जी ने सर्वप्रथम प्रभु की कथा कही, और बाद में अपना नाम व परिचय दिया।

आगे श्रीहनुमान जी और श्रीविभीषण जी के मध्य क्या वार्ता होती है, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

-सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़