Mahashivratri 2024 Vrat Katha: महाशिवरात्रि के मौके पर जरूर पढ़नी चाहिए यह व्रत कथा, खुशहाल रहेगा दांपत्य जीवन

Mahashivratri 2024 Vrat Katha
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हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-अर्चना किए जाने का विधान है और शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती माता के विवाह की कथा जरूर पढ़नी चाहिए।

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-अर्चना किए जाने का विधान है और शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक फाल्गुन माह की महाशिवरात्रि को भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हर साल इस तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

ऐसे में महाशिवरात्रि के मौके पर भगवान शिव की पूजा के अलावा शिव-पार्वती विवाह व्रत कथा जरूर पढ़नी व सुननी चाहिए। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको भगवान शिव और पार्वती माता के विवाह की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। इस व्रत कथा को पढ़ने से दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है और भगवान शिव की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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महाशिवरात्रि की व्रत कथा

माता सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। वह भगवान शिव को बेहद पसंद करती थीं और उनको पति के रूप में पाना चाहती थीं। लेकिन जब उन्होंने इस बारे में अपने पिता प्रजापति दक्ष को बताया तो दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया और विवाह के लिए मना कर दिया। लेकिन माता सती ने पिता के खिलाफ जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। जिस पर उनके पिता दक्ष काफी ज्यादा नाराज हुए और अपनी पुत्री का हमेशा के लिए त्याग कर दिया।

एक बार प्रजापति ने महायज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं और ऋषियों-मुनियों को आमंत्रित किया गया। लेकिन भगवान शिव और माता सती को प्रजापति ने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। आमंत्रण न मिलने पर भी माता सती ने पिता के घर जाने की जिद की और भगवान शिव की आज्ञा से वह यज्ञ में पहुंच गईं। जहां पर प्रजापति ने भगवान शिव को अपशब्द कहते हुए अपमानित किया। पति के बारे में पिता द्वारा किए गए अपमान को माता सती सह न सकीं और क्रोध में आकर उन्होंने यज्ञ कुंड में अपने शरीर को त्याग दिया।

फिर अगले जन्म में माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालय राज के घर जन्म लिया। लेकिन इस जन्म में भगवान शिव ने उनसे विवाह करने के लिए मना कर दिया। क्योंकि माता पार्वती मानवीय शरीर में बंधी थीं। महादेव द्वारा विवाह के लिए मना करने के बाद माता पार्वती ने घोर तपस्या की। बता दें कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने 12,000 वर्षों तक अन्न-जल त्याग कर तपस्या की। उनके कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। 

जिस दिन भगवान शिव-शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ, उसे महाशिवरात्रि के तौर पर मनाया जाने लगा। धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव बारात लेकर माता पार्वती के घर पहुंचे थे और विवाह संपन्न किया था। महाशिवरात्रि के दिन जो भी जातक भगवान शिव और माता पार्वती की यह व्रत कथा सुनता है उसके विवाह में आने वाली बाधा दूर होती है और दांपत्य जीवन खुशहाल होता है।

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