सृष्टि के सृजन में अहम योगदान रहा महर्षि कश्यप का

महर्षि कश्यप ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने ‘कश्यप-संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की।
महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि की सृजना में दिए गए महायोगदान की यशोगाथा हमारे वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य अनेक धार्मिक साहित्यों में भरी पड़ी है, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि के सृजक’ उपाधि से विभूषित किया जाता है। महर्षि कश्यप पिघले हुए सोने के समान तेजवान थे। उनकी जटाएं अग्नि-ज्वालाएं जैसी थीं। महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते थे। सुर-असुरों के मूल पुरूष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे पर-ब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे।
महर्षि कश्यप ने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भीक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते थे, जिनके कारण उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरशः पालन करते थे। उन्हीं की कृपा से ही राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।
श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। मरीचि ऋषि की पत्नी थीं सम्भूति। इन्हीं सम्भूति की कोख से महर्षि कश्यप का जन्म हुआ। महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महाविभूतियों में गिने जाते थे। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गए। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है-
वसिष्ठः काश्यपोऽयात्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।,
विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोऽभवन।।
(अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं, वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।)
महर्षि कश्यप ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने ‘कश्यप-संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार ‘कस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप जी के नाम पर ही हुआ। श्रीनरसिंह पुराण के पांचवें अध्याय के अनुसार दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मा जी के आदेश (तुम प्रजा की सृष्टि करो) पर अपनी पत्नी अश्विनी के गर्भ से 60 कन्याएं पैदा कीं। उन्होंने इन 60 कन्याओं में से 10 कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, 13 कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ, 27 कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ, 4 कन्याओं का विवाह अरिष्टनेमी के साथ, 2 कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, 2 कन्याओं का विवाह बहुपुत्र के साथ और 2 कन्याओं का विवाह विद्वान कृशाश्व के साथ किया।
महर्षि कश्यप की पत्नियां बनने वाली 13 दक्ष कन्याएं इस प्रकार थीं- 1. अदिति, 2. दिति, 3. दनु, 4. अरिष्टा, 5. सुरसा, 6. खसा, 7. सुरभि, 8. विनता, 9. ताम्रा, 10. क्रोधवशा, 11. इरा, 12. कद्रू और 13. मुनि। मुख्यतः इन्हीं से ही सृष्टि का सृजन हुआ और जिसके परिणामस्वरूप महर्षि कश्यप जी ‘सृष्टि के सृजक’ कहलाए।
महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किए, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। श्री विष्णु पुराण के अनुसार:
मन्वन्तरेऽत्र सम्प्राप्ते तथा वैवस्वतेद्विज।
वामनरू कश्यपाद्विष्णुरदित्यां सम्बभुव ह।।
त्रिमि क्रमैरिमाँल्लोकान्जित्वा येन महात्मना।
पुन्दराय त्रैलोक्यं दत्रं निहत्कण्टकम।।
(अर्थात-वैवस्वत मन्वन्तर के प्राप्त होने पर भगवान् विष्णु कश्यप जी द्वारा अदिति के गर्भ से वामन रूप में प्रकट हुए। उन महात्मा वामन जी ने अपनी तीन डगों से सम्पूर्ण लोकों को जीतकर यह निष्कण्टक त्रिलोकी इन्द्र को दे दी।)
पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जो अग्रि के समान कांतिमान एवं तेजस्वी थे। ये इस प्रकार थे -विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरूण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ये बारह आदित्य तपते और वर्षा करते हैं। महर्षि कश्यप के पुत्र विवस्वान् से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। श्रीनरसिंह पुराण के छठे अध्याय के अनुसार अदिति के मध्यम पुत्र ‘लोकपाल’ कहलाए। इनकी स्थिति वरूण-दिशा (पश्चिम) में बतलायी जाती है। ये पश्चिम दिशा में पश्चिम समुद्र के तटपर सुशोभित होते हैं। यहां एक सुन्दर सवर्णमय पर्वत है। उसके शिखर सब रत्नमय हैं। इनसे युक्त और नाना प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण वह सुन्दर पर्वत बड़ी शोभा पाता है।
महर्षि कश्यप ने अदिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। हिरण्यकश्यप भगवान नरसिंह और हिरण्याक्ष भगवान वाराह के हाथों परमलोक पधारे थे। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा अदिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जोकि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निःसंतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्याकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रहल्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई।
महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धुम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई। पत्नी अरिष्टा से गन्धर्व गण पैदा हुए। सुरसा नामक रानी की कोख से अनेक विद्याधरपण उत्पन्न हुए। पत्नी खसा ने यक्ष और राक्षसों को जन्म दिया। रानी सुरभि से गौ, भैंस तथा दो खुर वाले पशुओं का जन्म हुआ। रानी विनता के गर्भ से दो विख्यात पुत्र हुए। गरूड़ जी प्रेमवश अमित-तेजस्वी देवदेव भगवान विष्णु के वाहन हो गये और अरूण सूर्य के सारथि बने। ताम्रा ने बाज, गीद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। रानी क्रोधवशा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। इरा से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। पत्नी कद्रू की कोख से ‘दंदशूक’ नामक महासर्प उत्पन्न हुए। रानी मुनि से अप्सराओं की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी की आज्ञा से महर्षि कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
अन्य न्यूज़