Gyan Ganga: भगवान शंकर को अपनी बारात के बाराती रत्ती भर भी बुरे नहीं लग रहे थे

Lord Shankar
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सुखी भारती । Apr 24 2025 3:48PM

अब आप भी स्वाभाविक रुप से यह कल्पना कीजिए, कि आपके समक्ष कोई बिना नेत्र वाला व्यक्ति आ जाये, तो आप उसे सुंदर व आकर्षक मानेंगे, या उससे भयग्रसित होंगे? किंतु भोलेनाथ को इससे कोई समस्या नहीं, कि उनका गण एक आँख वाला है, अथवा कोई आँख है ही नहीं।

भगवान शंकर की सुंदर बारात सज चुकी है। बारात सुंदर है, अथवा नहीं, यह तो देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है। क्योंकि जो भी शिवगण भोलेनाथ की बारात में सम्मिलित हैं, वे सभी मन के तो कुंदन से भी खरे व सुंदर हैं, किंतु बाहर से वे इतने कुरुप हैं, कि उन्हें कोई देखना तक नहीं चाहता। प्रत्यक्ष देखने की बात तो छोड़ ही दीजिए, कोई उन्हें स्वपन में भी नहीं देखना चाहता। क्यों? क्योंकि उनका सामाजिक स्तर अत्यंत हीन व निम्न है, कि उन्हें भूत पिशाच जैसे नामों से पुकारा जाता है। ऐसा हमारा विचार नहीं है, अपितु ऐसा दूसरे समाजों को लगता है। जैसे भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी के दल में सभी सुंदर, श्रेष्ठ व आकर्षक प्रतीत होते हैं। उन्हें तो सुंदर होना ही था, उनके वाहन इत्यादि भी महान सुंदरता की गवाही दे रहे थे। किंतु एक हमारे भोलेनाथ हैं, वे स्वयं तो प्रत्येक रीति से विलग व हट कर थे ही, साथ में उनके बारातीयों के भी भयँकर रीति विरुद्ध लक्षण थे। जैसे किसी के अनेकों सिर थे, तो किसीके एक भी सिर नहीं था। किसी के मुख पर या तो एक ही आँख थी, या फिर एक भी आँख नहीं थी।

अब आप भी स्वाभाविक रुप से यह कल्पना कीजिए, कि आपके समक्ष कोई बिना नेत्र वाला व्यक्ति आ जाये, तो आप उसे सुंदर व आकर्षक मानेंगे, या उससे भयग्रसित होंगे? किंतु भोलेनाथ को इससे कोई समस्या नहीं, कि उनका गण एक आँख वाला है, अथवा कोई आँख है ही नहीं। क्योंकि समाज में समस्या यह नहीं, कि किसी की एक आँख है। अपितु समस्या यह है, कि लोगों के पास पल-पल बदलती हुई दूसरी आँख है। प्रत्येक क्षण आँख बदलने से, उन्हें प्रतिपल दृष्य भी बदलता ही दिखाई पड़ता है। जो उन्हें अभी अभी धर्मात्मा दिखाई पड़ रहा था, दूसरे ही क्षण उन्हें वह व्यक्ति, धूर्त या दुष्ट दिखाई देने लग जाता है। जिससे भ्रम की स्थिती उत्पन्न होती है। भ्रम की स्थिति जितनी गहन होगी, जीव ब्रह्म से उतना ही दूर होगा। जो कि मनुष्य जीवन के लिए महान हानि का विषय है। ऐसे मानवों को उस श्रेणी में रखा जाता है, जिसमें उन्होंने हाथ तो इसलिए आगे बढ़ाया होता है, कि उनके हाथ हीरे पन्ने लगेंगे। किंतु दुर्भाग्यवश उनके हाथ केवल कंकड़ पत्थरों के सिवा कुछ नहीं लगता। इसलिए भोलेनाथ को एक नेत्र ही पसंद है, बजाये इसके कि जीव अनेकों दृष्टि वाले, अनेकों नेत्र पाल कर रखे।

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भगवान शंकर को वे भी रत्ती भर बुरे नहीं लग रहे, जिनके मुख संसारी जीवों की भाँति अनेकों आँखों वाले हैं। कारण यह है, कि मायावी जीव के दो नेत्र होने के पश्चात भी, उसके द्वारा धारण किए गए, अनेकों नेत्रें का वर्णन है। जिस कारण उसकी दृष्टि पल प्रतिपल भिन्न ही रहती है। अब क्योंकि शिवजी के गणों की तो वास्तव में ही कई कई आँखें हैं, तो क्या वे भी सबको भिन्न-भिन्न दृष्टि से देखते हैं? जी नहीं! वे सबको एक ही दृष्टि से ही देखते हैं। वह इसलिए, क्योंकि शिवगणों के अनेकों नेत्र केवल इसलिए हैं, क्योंकि उन्हें तो सदा भोलेनाथ जी को देखकर ही जीना है। भोले का दर्शन ही उनकी जीवन आधारशिला है। अब एक नेत्र से किया दर्शन तो उन्हें पूरा नहीं पड़ता। इसलिए वे तो सदा यही कामना करते हैं, कि उन्हें प्रभु पूरे सरीर पर नेत्र ही नेत्र प्रदान कर दे। जिससे वे सतत् अपने प्रभु का दर्शन करते रहें। क्योंकि एक नेत्र अगर झपकने के लिए बंद भी हो, तो दूसरे खुले नेत्र से वे, अपने प्रभु का दर्शन करते रहें। सच्चे अर्थों में यही शिवगणों के विचित्र आकारों का रहस्य था। एक मुख था, तो यह दिखाने के लिए, कि हम बात-बात पर अपनी बात नहीं बदलते। और अगर उनके अनेकों मुख हैं, तो वे इसलिए हैं, क्योंकि उनके अपने प्रभु के यशगाण गाने के लिए, अनेकों मुखों की आवश्यक्ता है।

भोलेनाथ की विचित्र बारात का चारों ओर क्या प्रभाव पड़ता है, जानेंगे अगले अंकों में---!

क्रमशः

- सुखी भारती

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