Gyan Ganga: अथ श्री महाभारत कथा- जानिये भाग-12 में क्या क्या हुआ
युद्ध के सतरहवें दिन अर्जुन और कर्ण के बीच भीषण युद्ध होता है। शाप के कारण कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस जाता है और वह अपनी विद्या भी भूल जाता है। जिसके बाद अर्जुन नि:शस्त्र कर्ण को छलपूर्वक मार देते हैं।
ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॐ
अथ श्री महाभारत कथा, अथ श्री महाभारत कथा
कथा है पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की
सारथि जिसके बने श्री कृष्ण भारत पार्थ की
शब्द दिग्घोषित हुआ जब सत्य सार्थक सर्वथा
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमअधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
भारत की है कहानी सदियो से भी पुरानी
है ज्ञान की ये गंगाऋषियो की अमर वाणी॥
ये विश्व भारती है वीरो की आरती है
है नित नयी पुरानी भारत की ये कहानी
महाभारत महाभारत महाभारत महाभारत।।
पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि युद्ध के सोलहवें दिन गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कर्ण को कौरवों का सेनापति बनाया जाता है। लेकिन वह अर्जुन को छोड़कर पांडवों का वध नहीं करता चाहता है, क्योंकि उसने अपनी माता कुंती को वचन दिया था, कि मैं केवल अर्जुन का ही वध करूंगा किसी दूसरे पांडव का नहीं। तुम पाँच पांडवों की माता बनी रहोगी। युद्ध भूमि में यदि मैं वीरगति को प्राप्त हुआ तो तुम्हारे पांचों पांडव यथावत बने रहेंगे और अर्जुन वीरगति को प्राप्त हुआ तो मैं पांडवों के साथ मिल जाऊँगा इस प्रकार तुम पाँच पुत्रों की जननी बनी रहोगी।
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आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं -------
युद्ध के सतरहवें दिन अर्जुन और कर्ण के बीच भीषण युद्ध होता है। शाप के कारण कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस जाता है और वह अपनी विद्या भी भूल जाता है। जिसके बाद अर्जुन नि:शस्त्र कर्ण को छलपूर्वक मार देते हैं। इसी रात समस्त पांडवों को यह पता चलता है कि कर्ण उनका जयेष्ठ भ्राता था। पांडव पश्चाताप की आग में जलने लगते हैं और विचार करने लगते हैं, कि यदि माँ कुंती यह रहस्य खोल दी होती तो शायद यह भीषण युद्ध टल गया होता । क्षुब्ध होकर धर्मराज युधिष्ठिर समस्त स्त्री जाति को शाप देते हैं कि---- आज के बाद किसी भी स्त्री के पेट में कोई बात नहीं पचेगी वह कोई भेद छिपा कर नहीं रख सकेंगी।
युद्ध के अठहारवें दिन भीम समस्त कौरव भाइयों का वध कर देते हैं । नकुल और सहदेव मामा शकुनि और शल्य का वध कर देते हैं। तो वहीं दुर्योधन अपनी हार के डर से एक तालाब में जाकर छुप जाता है। बाद में भीम उसको द्वंद युद्ध के लिए उकसाते हैं।
हालांकि रानी गांधारी ने अपनी शक्ति से दुर्योधन के सम्पूर्ण शरीर को वज्रमय का बना दिया था। लेकिन केवल उसकी जंघा का भाग व्रज का ना हो पाया था। जिसके कारण युद्ध के अंत में भीम छलपूर्वक दुर्योधन की जंघा तोड़ देते हैं और उसी दौरान उसका वध हो जाता है और पांडव महाभारत का युद्ध जीत जाते हैं।
द्रौपदी के पांचों पुत्रों का वध और परीक्षित का जन्म
दुर्योधन की मृत्यु के बाद गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए धृष्टद्युम्न को मारने की योजना बनाई। लेकिन धोखे से उसने धृष्टद्युम्न समेत द्रौपदी के पांचों बेटों ( प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक, श्रुतसेन) को मार डालता है। इसी कारण उसे धरती पर जीवन भोगने का शाप मिलता है। इतना ही नहीं अश्वस्थमा ने ही अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। जिसे बाद में श्री कृष्ण द्वारा पुनर्जीवन मिला था। इस प्रकार, दुर्योधन की मृत्यु के बाद महाभारत के युद्ध का अंत हो जाता है। उधर, भगवान श्री कृष्ण के यदुकुल वंश का भी नाश हो जाता है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को माता गांधारी ने वंशहीन होने का शाप दिया था।
शेष अगले प्रसंग में ------
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी
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