Gyan Ganga: अथ श्री महाभारत कथा- जानिये भाग-11 में क्या क्या हुआ

Ath Shri Mahabharata Katha
Prabhasakshi
आरएन तिवारी । Jan 27 2024 12:26PM

युद्ध के तेहरवें दिन अर्जुन को पराजित करने के लिए भगदत्त नाम के एक दूसरे राजा अर्जुन को दूर ले जाकर युद्ध करते हैं। लेकिन अर्जुन छलपूर्वक उन्हें भी पराजित कर देता है। इसी दिन गुरु द्रोणाचार्य युद्ध के दौरान पांडवों के लिए चक्रव्यूह की रचना करते हैं।

ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्  देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॐ

अथ श्री महाभारत कथा, अथ श्री महाभारत कथा

कथा है पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की

सारथि जिसके बने श्री कृष्ण भारत पार्थ की

शब्द दिग्घोषित हुआ जब सत्य सार्थक सर्वथा

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत 

अभ्युत्थानमअधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम 

धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

भारत की है कहानी सदियो से भी पुरानी

है ज्ञान की ये गंगाऋषियो की अमर वाणी॥ 

ये विश्व भारती है वीरो की आरती है

है नित नयी पुरानी भारत की ये कहानी

महाभारत महाभारत महाभारत महाभारत।।

पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि राजा त्रिगर्त अर्जुन को युद्ध भूमि से दूर ले जाते हैं ताकि कौरव दल के योद्धा युधिष्ठिर को आसानी से बंदी बना सके, परंतु राजा त्रिगर्त की दाल  नहीं गल पiई और उसी युद्ध के दौरान राजा त्रिगर्त को परास्त करके अर्जुन लौट आते हैं। 

आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं ------- 

युद्ध के तेहरवें दिन अर्जुन को पराजित करने के लिए भगदत्त नाम के एक दूसरे राजा अर्जुन को दूर ले जाकर युद्ध करते हैं। लेकिन अर्जुन छलपूर्वक उन्हें भी पराजित कर देता है। इसी दिन गुरु द्रोणाचार्य युद्ध के दौरान पांडवों के लिए चक्रव्यूह की रचना करते हैं। पांडवों में केवल अभिमन्यु ही चक्रव्यूह तोड़ना जानता था। अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश तो कर सकता था किन्तु उससे बाहर निकलने की विधि वह नहीं जानता था। इसका कारण यह था कि जब वह अपनी माता के गर्भ में था, तब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदन की विधि समझा रहे थे, किन्तु चक्रव्यूह भेदन के पश्चात चक्रव्यूह से बाहर निकलने की विधि समझाते वक्त  सुभद्रा की आंख लग जाने के कारण अभिमन्यु का ज्ञान अधूरा रह गया और वह चक्रव्यूह से निकलने की युक्ति न जान सका। इसका परिणाम यह हुआ कि अंत में वह कौरवों के हाथों मारा गया। अर्जुन को जब अभिमन्यु के वध का समाचार मिला। तब उन्होने जयद्रथ को अगले दिन सूर्यास्त से पहले मारने की प्रतिज्ञा कर ली और ऐसा न कर पाने पर स्वयं अग्नि समाधि लेने का प्राण भी कर लिया। 

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युद्ध के चौदहवें दिन जब अर्जुन जयद्रथ को मारने के लिए आगे बढ़ते हैं, तब उन्हें रोकने के लिए कौरव सेना उनके सामने आ जाती है। लेकिन वह अर्जुन को रोक नही पाती है। उधर सूर्य देव भी धीरे-धीरे अस्ताचल की तरफ बढ़ते हैं और जयद्र्थ का कुछ पता नहीं लगता है। अर्जुन चिंतित से हो जाते हैं। अपने भक्त की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से सूर्य देव के प्रकाश को छुपा देते हैं और सबको ऐसा लगता है सूर्यास्त हो गया। तब जयद्रथ बाहर आ जाता है और तभी भगवान श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र को हटा लेते हैं। और अर्जुन अपने दिव्यास्त्र से जयद्रथ का वध कर देते हैं। जिसका धड़ उसके पिता की गोद में जाकर गिरते ही भस्म हो जाता है।

इधर इस दिन गुरु द्रोणाचार्य भी राजा द्रुपद और राजा विराट का वध कर देते हैं। महाबली भीम भी इस दिन अपने पुत्र घटोत्कच का आह्वान करते हैं और वह युद्ध में आकर कौरवों की 2 अक्षौहिणी सेना का नाश कर देता है।

घटोत्कच के युद्ध कौशल के सामने कौरव सेना हताश हो जाती है तभी दुर्योधन के कहने पर कर्ण भगवान इंद्र द्वारा दिए गए दिव्यास्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर कर देता है, जिसे इंद्र देवता ने उसके कुंडल और कवच के बदले में दिया था।  आपको बता दें कि बाल्यकाल से ही कर्ण अर्जुन से प्रतिस्पर्धा करता था और उसने यह दिव्यास्त्र अर्जुन का वध करने के लिए ही इंद्र देव से लिया था।

युद्ध के पंद्रहवें दिन पांडव गुरु द्रोणाचार्य को अश्वस्थमा की मृत्यु का गलत समाचार देते है। जिसपर गुरु द्रोणाचार्य युधिष्ठिर से इस बात की पुष्टि करने के लिए कहते हैं। पहली बार युधिष्ठिर असत्य का सहारा लेते है और कहते हैं- “अश्वस्थामा हत: नरो वा कुंजरों वा“। वास्तव में उस युद्धभूमि में “अश्वस्थामा नामक का एक हाथी भी था और उस हाथी की मृत्यु हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा की गई शंख ध्वनि के कारण द्रोणाचार्य ठीक से सुन नहीं सके और अपने पुत्र को ही मरा हुआ समझकर शोक में आकर अपने अस्त्र-शस्त्रों को त्याग देते हैं, जिसका फायदा उठाकर धृष्टद्युम्न उनका सिर धड़ से अलग कर देता है।

युद्ध के सोलहवें दिन गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कर्ण को कौरवों का सेनापति बनाया जाता है। लेकिन वह अर्जुन को छोड़कर पांडवों का वध नहीं करता चाहता है, क्योंकि उसने अपनी माता कुंती को वचन दिया था, कि मैं केवल अर्जुन का ही वध करूंगा किसी दूसरे पांडव का नहीं। तुम पाँच पांडवों की माता बनी रहोगी। युद्ध भूमि में यदि मैं वीरगति को प्राप्त हुआ तो तुम्हारे पांचों पांडव यथावत बने रहेंगे और अर्जुन वीरगति को प्राप्त हुआ तो मैं पांडवों के साथ मिल जाऊँगा इस प्रकार तुम पाँच पुत्रों की जननी बनी रहोगी।  

शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

- आरएन तिवारी

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