By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 29, 2022
पीठ ने कहा, “राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा पर्याप्त कार्रवाई के अभाव में समस्या अभी भी बनी हुई है, जो मिशन मोड में उपचारात्मक कदम उठाए जाने की मांग करती है, जिसमें इस तरह की निरंतर विफलताओं के लिए दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करना शामिल है।” अपने हालिया आदेश में पीठ ने कहा, “उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को चर्म शोधन इकाइयों से होने वाले प्रदूषण पर वास्तविक रूप में लगाम लगाने के लिए उपचारात्मक उपाय करने की जरूरत है। इसमें उचित दिशा-निर्देश जारी करना, ड्रम या पैडल को सील करना, उत्पादन क्षमता में कटौती करना और अनुपालन लक्ष्य की प्राप्ति तक चर्म शोधन इकाइयों को बंद करना शामिल है।”
पीठ ने उल्लेख किया कि कानपुर जिले के एक औद्योगिक उपनगर जाजमऊ में एक सिंचाई नहर के माध्यम से अशोधित या आंशिक रूप से शोधित अपशिष्ट (सीवेज और औद्योगिक कचरा) के प्रवाह के कारण गंगा नदी दूषित हो रही थी। पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जाजमऊ में सीईटीपी का निर्माण पूरा कर लिया जाए, क्योंकि इसमें पहले से ही काफी देरी हो चुकी है। पीठ ने कहा कि मामले में आगे की कार्रवाई तेजी से की जानी चाहिए और 31 जनवरी 2023 तक अनुपालन स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट 15 फरवरी 2023 से पहले दाखिल की जानी चाहिए। हरित पैनल कानपुर में चर्म शोधन इकाइयों द्वारा गंगा में अशोधित औद्योगिक अपशिष्ट के प्रवाह से होने वाले जल प्रदूषण से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था।