By नीरज कुमार दुबे | Jun 23, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह बात करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका और मिस्र दौरे, अमेरिका-चीन और भारत-चीन संबंधों, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात और पाकिस्तान के बिगड़ते आर्थिक हालात से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे को आप भारत के लिए किन मायनों में सार्थक और सफल देखते हैं?
उत्तर- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अमेरिका दौरा बेहद सफल रहा। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर करार हुए और आतंकवाद तथा कट्टरता से मिलकर लड़ने का जो संकल्प लिया गया उससे पूरी दुनिया को लाभ होगा। राजकीय यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका में जिस तरह भव्य स्वागत किया गया, विश्व के लिए अहम मुद्दों पर भारत की राय व भारत की भूमिका को महत्व दिया गया और अमेरिका के विकास में भारतीय अमेरिकियों के योगदान को सराहा गया तथा बेहतर स्वास्थ्य के लिए भारत की प्राचीन योग पद्धति के महत्व को पूरी दुनिया की ओर से स्वीकारा गया उसने भारत को विश्व गुरु के स्थान पर पहुँचाने का काम किया है। अमेरिका यात्रा के दौरान मोदी-मोदी की गूँज दरअसल भारत के यशोगान की गूँज थी। पूरी दुनिया को यह समझ आ गया है कि भारत ही अब नेतृत्व करेगा और संकटकाल हो या सामान्य दिन, भारत पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में मानता है और सबको साथ लेकर चलने की चाहत और क्षमता भी रखता है। अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई कीर्तिमान स्थापित किये। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि वह अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को दूसरी बार संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गये।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूएस कैपिटल (अमेरिकी संसद भवन) के विशाल ‘प्रतिनिधि सभा चैंबर’ में अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। लगभग एक घंटे लंबे संबोधन के दौरान अमेरिकी सांसदों ने कई बार अपनी सीट से उठकर तालियां बजाईं। वहीं, भारतीय मूल के अमेरिकी सांसदों ने ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगाए। मोदी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को दो बार संबोधित करने वाले पहले भारतीय नेता बन गए। उन्होंने पहली बार 2016 में अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया था।
रक्षा सहयोग बढ़ाने और महत्वपूर्ण सूचना साझा करने की प्रक्रिया को और मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन अमेरिकी कमानों में तीन संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति पर सहमत हुए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय ‘व्हाइट हाउस’ ने बाइडन और मोदी के बीच शिखर वार्ता के बाद बृहस्पतिवार को कहा कि अमेरिका और भारत ने उन तरीकों को अपनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है जिनसे दोनों देश अपने रक्षा सहयोग को बढ़ा सकते हैं। व्हाइट हाउस ने कहा कि दोनों देशों ने पहली बार अमेरिकी कमानों में तीन भारतीय संपर्क अधिकारियों को रखने का समझौता किया है जो ‘‘हमारी साझेदारी को गहरा करेगा और महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने में मदद करेगा।’’ उसने कहा कि अमेरिका और भारत ने आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा और पारस्परिक रक्षा खरीद व्यवस्था के लिए भी बातचीत शुरू की है, जो आपूर्ति श्रृंखला में अप्रत्याशित बाधा आने की स्थिति में रक्षा सामान की आपूर्ति को सक्षम बनाएगी। उन्होंने एक रक्षा औद्योगिक खाके को अंतिम रूप दिया, जो रक्षा उद्योगों को नीतिगत दिशा प्रदान करता करेगा और उन्नत रक्षा प्रणालियों के सह-उत्पादन के साथ-साथ सहयोगात्मक अनुसंधान और परीक्षण को सक्षम बनाएगा जिससे सैन्य शक्ति का भविष्य निर्धारित होगा।
वार्ता के बाद जारी एक संयुक्त बयान के अनुसार, राष्ट्रपति बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी ने सेनाओं के बीच मजबूत संबंधों, साजो सामान के मामले में परस्पर सहयोग और मूलभूत समझौतों के कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करने के प्रयासों की सराहना की। संयुक्त बयान में कहा गया है, ‘‘दोनों नेताओं ने उल्लेख किया कि सूचना साझा करने और एक-दूसरे के सैन्य संगठनों में संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति से संयुक्त सेवा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने समुद्री सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के अपने संकल्प को भी दोहराया।’’ बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं ने अंतरिक्ष और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित नए रक्षा क्षेत्रों में संवाद शुरू करने का स्वागत किया, जो क्षमता निर्माण, ज्ञान और विशेषज्ञता को बढ़ाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठक के बाद कहा कि भारत और अमेरिका वर्ष 2024 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने के लिए गठजोड़ कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद बाइडन ने कहा कि भारत और अमेरिका एक साथ विकास के लिए करीब-करीब हर मानवीय प्रयासों में गठजोड़ कर रहे हैं। बाइडन ने कहा, ‘‘कैंसर, मधुमेह जैसे बीमारियों के परीक्षण एवं उपचार के नये रास्ते तैयार करने में गठजोड़ से लेकर मानव युक्त अंतरिक्ष उड़ान और 2024 तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने आदि में गठजोड़ कर रहे हैं।’’ वहीं, भारत के अर्टेमिस संधि में शामिल होने का फैसले की घोषणा के बारे में मोदी ने कहा कि हमने अंतरिक्ष सहयोग में नया कदम आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच गठजोड़ की असीमित संभावनाएं हैं। उल्लेखनीय है कि 1967 के बाह्य अंतरिक्ष संधि पर आधारित अर्टेमिस संधि असैन्य अंतरिक्ष अन्वेषण को दिशानिर्देशित करने के लिए तैयार किये गये गैर-बाध्यकारी सिद्धांतों का एक ‘सेट’ है। यह 2025 तक चंद्रमा पर मानव को फिर से भेजने का अमेरिका नीत प्रयास है, जिसका लक्ष्य मंगल और अन्य ग्रहों तक अंतरिक्ष का अन्वेषण करना है। वहीं, भारत पहला मानव युक्त अंतरिक्ष यान ‘गगनयान’ भेजने की योजना बना रहा है जो वर्ष 2024 के अंत या 2025 के प्रारंभ में हो सकता है। इससे पहले, व्हाइट हाउस के अधिकारी ने कहा था कि नासा और इसरो इस वर्ष मानव युक्त अंतरिक्ष उड़ान के लिए सामरिक ढांचा विकसित कर रहे हैं। सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अमेरिकी कंपनियां भारत में सेमीकंडक्टर व्यवस्था के निर्माण के लिए गठजोड़ कर रहे हैं। अमेरिकी चिप कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने बयान में कहा कि माइक्रोन गुजरात में सेमीकंडक्टर परीक्षण एवं असेंबली संयंत्र लगाएगी और इसके माध्यम से कुल 2.75 अरब डॉलर का निवेश होगा। माइक्रोन ने कहा कि दो चरणों में विकसित किए जाने वाले इस संयंत्र पर वह अपनी तरफ से 82.5 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी। बाकी राशि का निवेश केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा। वहीं, अमेरिकी एप्लायड मैटिरियल्स ने भारत में वाणिज्यिकरण और नवाचार के लिए नये सेमीकंडक्टर केंद्र की स्थापना करने की घोषणा की। अधिकारी ने कहा कि दोनों देशों ने उन्न कम्प्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमता और क्वांटम सूचना विज्ञान में सहयोग पर बढ़ाने की बात कही। दोनों ने कृत्रिम बुद्धिमता उन्नत वायरलेस एवं क्वांटम प्रौद्योगिकी पर नयी अनुपालन व्यवस्था पर भी हस्ताक्षर किये। उन्नत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देश 5जी और 6जी प्रौद्योगिकी पर काम कर रहे हैं।
प्रश्न-2. प्रधानमंत्री की मिस्र यात्रा भारत के लिए रणनीतिक रूप से क्या महत्व रखती है?
उत्तर- अमेरिका की यात्रा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के निमंत्रण पर काहिरा की यात्रा करेंगे। मिस्र के राष्ट्रपति इस वर्ष हमारे गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आये थे। कुछ महीनों के अंतराल में ये दो यात्राएं मिस्र के साथ तेजी से विकसित हो रही हमारी साझेदारी का प्रतिबिंब हैं, जिसे राष्ट्रपति सीसी की यात्रा के दौरान ‘रणनीतिक साझेदारी’ के रूप में उन्नत किया गया था। इसके अलावा, हाल ही में थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे मिस्र की यात्रा पर गये थे जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए इस अरब देश के शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ व्यापक वार्ता करना था। भारत मिस्र के साथ रणनीतिक संबंधों का विस्तार करने का इच्छुक है, जिसकी अरब जगत के साथ ही अफ्रीका की राजनीति में प्रमुख भूमिका है। इसे अफ्रीका और यूरोप के बाजारों के लिए एक प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में भी देखा जाता है। भारत और मिस्र के सैन्य संबंध और प्रगाढ़ हो रहे हैं और यह 74वें गणतंत्र दिवस परेड के दौरान स्पष्ट हुआ, जिसमें मिस्र के सशस्त्र बलों की टुकड़ी पहली बार शामिल हुई।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत और मिस्र की सेनाओं ने इस साल जनवरी में अब तक का पहला संयुक्त अभ्यास किया था। हमें यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि मिस्र पहले ही भारत से तेजस हल्के लड़ाकू विमान, रडार, सैन्य हेलीकॉप्टर और अन्य प्लेटफॉर्म खरीदने में दिलचस्पी दिखा चुका है। इसके अलावा, पिछले साल जुलाई में, भारतीय वायुसेना ने मिस्र में तीन सुखोई-30 एमकेआई जेट और दो जी-17 परिवहन विमान के साथ एक महीने के सामरिक नेतृत्व कार्यक्रम में भाग लिया। सितंबर में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मिस्र की तीन दिवसीय यात्रा की थी।
प्रश्न-3. अमेरिका के विदेश मंत्री चीन होकर आये तो लगा कि दोनों देशों के संबंधों में सुधार हुआ है लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने जिस तरह चीनी राष्ट्रपति को तानाशाह करार दिया वह दर्शा रहा है कि संबंध बेहद खराब दौर में हैं। क्या वाकई ऐसा है? इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति की चीनी राष्ट्रपति के बारे में टिप्पणी पर जिस तरह रूस की प्रतिक्रिया आई है उसे कैसे देखते हैं आप? चीन से जुड़ा एक सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन से संबंधों को लेकर अमेरिका यात्रा से पहले बड़ा बयान दिया। इस बीच चीन ने साजिद मीर को ‘वैश्विक आतंकवादी’ घोषित कराने की राह में अवरोध पैदा किया। चीन कहता है कि 'ऑल इज वेल' लेकिन भारत बार-बार कह रहा है कि सबकुछ तब तक ठीक नहीं होगा जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता और शांति नहीं होगी। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- चीन और अमेरिका के संबंध खराब दौर में पहुँचे हैं तो उसकी वजह चीन ही है। देखा जाये तो जिस किसी भी देश के साथ चीन के संबंध खराब हुए हैं उसका मुख्य कारण चीन की गलतियां या दादागिरी वाला रवैया ही होता है। अमेरिका के विदेश मंत्री चीन गये तो कोई खास उपलब्धि हासिल होने की पहले भी उम्मीद नहीं थी। लंबे समय बाद अमेरिकी विदेश मंत्री चीन गये लेकिन जिस तरह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रवैया रहा उसी को देखते हुए ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें तानाशाह करार दिया। हालांकि उन्होंने यह उम्मीद भी जताई है कि आने वाले समय में चीन के साथ सार्थक बातचीत हो सकती है।
जहां तक भारत और चीन के संबंधों की बात है तो यह नरम गरम चल ही रहे हैं। प्रधानमंत्री पहले दिन से कह रहे हैं कि चीन को वादों पर खरा उतरना होगा। अमेरिका यात्रा से पहले भी उन्होंने चीन के साथ सामान्य द्विपक्षीय संबंधों के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को ‘आवश्यक’ करार देते हुए कहा कि भारत अपनी संप्रभुता और गरिमा की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार और प्रतिबद्ध है। ज्ञात हो कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून, 2020 को भारत और चीनी सेनाओं के बीच संघर्ष हो गया था। यह पिछले पांच दशक में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह का पहला संघर्ष था और इससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ गया था। चीनी के साथ हुए झड़पों में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे। चीन ने फरवरी 2021 में आधिकारिक रूप से स्वीकार किया कि झड़पों में उसके पांच सैन्य अधिकारी और सैनिक मारे गए थे। हालांकि, माना जाता है कि मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी। दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर तनाव कम करने के लिए बातचीत कर रही हैं, क्योंकि अभी भी कुछ स्थानों पर दोनों पक्ष के बीच गतिरोध कायम है। हालांकि, कुछ अन्य स्थानों से दोनों देशों के सैनिक पीछे हट गए हैं। पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध बढ़ने के बाद, सेना ने क्षेत्र में अपनी अभियानगत क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं।
इस बीच, दोनों देशों की सेनाओं के बीच अब तक 18 दौर की उच्चस्तरीय वार्ता हो चुकी है, जिसका मकसद टकराव वाले शेष स्थानों से सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया में तेजी लाना और पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति बहाल करना है। भारत का लगातार कहना रहा है कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी आठ जून को कहा था कि पूर्वी लद्दाख में सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं होने तक चीन के साथ संबंधों के सामान्य होने की कोई भी उम्मीद करना निराधार है।
दूसरी ओर, भारत ने पाकिस्तान में रहने वाले लश्कर-ए-तैयबा नेता साजिद मीर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित किये जाने में रोड़ा अटकाने के लिए चीन पर निशाना साधते हुए कहा है कि यह आतंकवाद के अभिशाप से लड़ने के लिए वास्तविक राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है। चीन ने मीर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की 1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत वैश्विक आतंकवादी के रूप में काली सूची में डालने और उसकी संपत्ति जब्त करने, उस पर यात्रा प्रतिबंध और हथियार प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिका की ओर से पेश तथा भारत समर्थित प्रस्ताव पर मंगलवार को अवरुद्ध कर दिया था। पाकिस्तान में रहने वाला मीर 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में शामिल होने के मामले में वांछित है। न्यूयार्क में भारत के स्थायी मिशन के संयुक्त सचिव प्रकाश गुप्ता ने मंगलवार को कड़े शब्दों में कहा कि यदि "तुच्छ भू-राजनीतिक हितों" के कारण आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास विफल होते हैं, तो "आतंकवाद की इस चुनौती से ईमानदारी से लड़ने को लेकर हमारे पास सचमुच वास्तविक राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।” गुप्ता ने मीर का एक ऑडियो क्लिप भी चलाया, जिसमें उसे मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों के दौरान पाकिस्तान के आतंकवादियों को निर्देश देते हुए सुना जा सकता है। उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर 2008 को सीमापार से आये 10 पूरी तरह से हथियारबंद आतंकवादियों ने मुंबई में घुसकर कहर बरपाया था। इन हमलों में 26 विदेशियों समेत 166 लोगों की मौत हो गई थी।
प्रश्न-4. रूस-यूक्रेन युद्ध में वर्तमान में क्या स्थिति है? ऐसी खबरें भी आईं कि यूक्रेन ने अपने कुछ गांव रूस से वापस लिये हैं।
उत्तर- एक-दो गांव वापस ले लेना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। यह युद्ध जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है उसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। अमेरिका, नाटो और यूक्रेन के अन्य समर्थक देश भी अब मदद दे देकर थक चुके हैं। इसके अलावा नाटो के कई हथियारों को रूस जिस तरह से विफल कर रहा है उससे उन देशों की सरकार की चिंता बढ़ गयी है क्योंकि अभी तक वह जिन हथियारों को अजेय मानते थे वह बुरी तरफ विफल हो रहे हैं।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ‘यूक्रेन रिकवरी समिट’ का जो आयोजन किया उसमें उन्होंने कहा कि यूरोपीय पड़ोसी देश में मचाई गई तबाही के लिए रूस को अवश्य ही क्षतिपूर्ति करनी होगी। उन्होंने यूक्रेन को ब्रिटिश सरकार की ओर से तीन अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण गारंटी की भी घोषणा की। सुनक ने यू्क्रेन की समझ-बूझ की सराहना की और देश के ऊर्जा ग्रिड को नष्ट करने की कोशिश करने को लेकर रूस पर प्रहार भी किया। बताया जा रहा है कि कुल 1,600 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के वार्षिक राजस्व के साथ यूक्रेन के पुनर्निर्माण में सहयोग करने का संकल्प लिया गया है।
इसके अलावा, यूक्रेन में रूस के युद्ध के सबसे उल्लेखनीय पहलुओं में से एक है निजी सैन्य कंपनियों पर मास्को की बढ़ती निर्भरता। हालांकि, यह बात भी अहम है कि निजी सैन्य समूहों पर नियंत्रण के क्रेमलिन के प्रयास उनकी आपसी प्रतिद्वन्द्विता खत्म नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन अंतत: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इससे फायदा ही हो रहा है। इस युद्ध में वैगनर ग्रुप का नाम बार-बार आया है, जो एक निजी सैन्य कंपनी है। येवगेनी प्रिगोझिन के नेतृत्व में वैगनर ग्रुप जैसी ताकतों को सबसे भीषण लड़ाई का खामियाजा भुगतना पड़ा है, खासकर बखमुत के लिए खूनी लड़ाई के दौरान। यहां उसने बड़ी संख्या में अपने लड़ाकों को खोया। क्रेमलिन यूक्रेन में अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए एक ओर जहां सभी विकल्पों की जांच-परख कर रहा है, वहीं वह सेना में आम लोगों की अनिवार्य भर्ती का कदम भी टालना चाहता है। इसे देखते हुए निजी सैन्य कंपनियों को नियंत्रण में लेने से पुतिन को फायदा ही होगा।
इसके अलावा, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका यात्रा से पहले और अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए जिस तरह शांति का पक्ष एक बार फिर लिया है उससे संकेत मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी के स्तर पर संभवतः शांति का कोई प्रयास चल रहा है। इससे पहले चीन और कई अन्य देश शांति का प्रयास कर चुके हैं लेकिन वह प्रयास विफल रहे। संभवतः भारत किसी ऐसे फॉर्मूले पर काम कर रहा है जिस पर रूस और यूक्रेन, दोनों को राजी किया जा सके।
प्रश्न-5. पाकिस्तान के बिगड़ते आर्थिक हालात के बीच चीन ने पाकिस्तान में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, एक खबर यह भी है कि आपातकालीन कोष जुटाने के लिए पाकिस्तान सरकार कराची बंदरगाह को यूएई को सौंप सकती है? यह सब क्या दर्शाता है?
उत्तर- आर्थिक बदहाली से जूझ रहा पाकिस्तान अपने संसाधनों को बेचने के अलावा चीन से मिल रहे उधार और निवेश के सहारे गुजर बसर कर रहा है। एक ओर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पाकिस्तान को किसी प्रकार का ऋण नहीं मिल रहा है तो दूसरी ओर इस्लामिक देश भी अब पाकिस्तान को और उधार देने को राजी नहीं हैं ऐसे में पाकिस्तान अब अपने संसाधन गिरवी रखने में जुट गया है ताकि पैसे जुटाये जा सकें। पाकिस्तान में जल्द ही संसदीय चुनाव भी होने हैं और महंगाई के आसमान पर होने के कारण जनता त्राहिमाम कर रही है तथा शहबाज शरीफ सरकार को सत्ता से नीचे उतारने को आतुर दिख रही है। ऐसे में पाकिस्तान सरकार कैसे भी करके जल्द से जल्द धन जुटाने के अभियान पर लग गयी है। पाकिस्तानी नेता देश के संसाधनों को बेच कर धन इसलिए भी जुटाना चाहते हैं ताकि चुनावों में यदि हार का मुँह देखना पड़ जाये तो लंदन में ऐशो आराम की जिंदगी जीने के लिए पैसे की कोई कमी नहीं रहे।
इसके लिए पाकिस्तान ने आपातकालीन निधि जुटाने के मद्देनजर अपने कराची बंदरगाह टर्मिनल को संयुक्त अरब अमीरात को सौंपने के लिए एक समझौते को अंतिम रूप देने के वास्ते वार्ता समिति का गठन किया है। यूएई सरकार ने पिछले साल ‘पाकिस्तान इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल्स’ (पीआईसीटी) के प्रशासनिक नियंत्रण वाले कराची बंदरगाह को हासिल करने में दिलचस्पी दिखाई थी। माना जा रहा है कि इस बंदरगाह पर जल्द ही यूएई का कब्जा हो सकता है।
जहां तक चीनी जाल में फंसते पाकिस्तान की बात है तो चीन ने नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के पंजाब सूबे में 4.8 अरब डॉलर की लागत से 1200 मेगावाट क्षमता का एक परमाणु संयंत्र लगाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। कहने के लिए चीन ने यह करार दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को और प्रगाढ़ करने के संकेत के तौर पर किया है। समझौते पर हस्ताक्षर करने के मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी मौजूद थे। समझौते के तहत चीन पंजाब के मियांवाली जिले के चश्मा में 1200 मेगावाट क्षमता के एक चश्मा-V परमाणु संयंत्र की स्थापना करेगा। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने संबोधन में परमाणु संयंत्र समझौते को चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते आर्थिक सहयोग का प्रतीक करार दिया और संकल्प लिया कि इस परियोजना को बिना देरी के पूरा किया जाएगा। पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के मुताबिक, चश्मा में पूर्व में स्थापित चार परमाणु संयंत्रों की बिजली उत्पादन क्षमता 1330 मेगावाट है। दो अन्य परमाणु संयंत्र भी पाकिस्तान में स्थापित हैं। कराची परमाणु संयंत्र के इन दो रिएक्टरों की क्षमता 2,290 मेगावाट है।