Vinoba Bhave Death Anniversary: गांधीवादी होकर भी राजनीति से दूर रहे विनोबा भावे, भूदान आंदोलन में दिया था अहम योगदान

By अनन्या मिश्रा | Nov 15, 2024

विनोबा भावे एक महान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही संत के रूप में भी जाने जाते हैं। आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को विनोबा भावे का निधन हो गया था। वह महात्मा गांधी के करीबी थे, लेकिन विनोबा हमेशा राजनीति से दूर रहे। उन्होंने हमेशा समाज सेवा को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी थी। महाराष्ट्र के भूदान आंदोलन जैसे कई समाज सुधारक कार्यों में विनोबा ने अपना योगदान दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर विनोबा भावे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

महाराष्ट्र के कोंकण के गागोदा गांव में चितपाव ब्राह्मण परिवार में 11 सितंबर 1895 को विनोबा भावे का जन्म हुआ था। विनोबा भावे की मां का नाम रुकमणी बाई था, जोकि एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उनको अपनी मां से संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, रू रामदास, नामदेव, और शंकराचार्य की कथाओं के अलावा महाभारत, रामायण की कहानियां और उपनिषदों का ज्ञान मिला। वहीं हाई स्कूल में विनोबा भावे ने फ्रेंच सीखा और साहित्य के साथ संस्कृत पढ़ वेद उपनिषद भी पढ़े।

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आध्यात्म की ओर झुकाव

बचपन से ही विनोबा का झुकाव आध्यात्म की ओर रहा था। इंटर की परीक्षा के लिए वह मुंबई जाने वाली ट्रेन छोड़कर दूसरी गाड़ी में बैठ गए और आध्यात्मिक यात्रा के लिए हिमालय की ओर निकल पड़े। ज्ञान की तलास में वह काफी समय तक काशी में भी रहे। वहीं समाचार पत्रों में उन्होंने गांधीजी के बारे पढ़ा, तब उनको लगा कि महात्मा गांधी उनके लिए मार्गदर्शक हो सकते हैं। फिर विनोबा ने गांधी जी को पत्र लिखा। वहीं आमंत्रण मिलने पर वह फौरन अहमदाबाल चल दिए।


विनोबा और गांधी जी की पहली मुलाकात 07 जून 1916 को हुई थी। इस पहली मुलाकात ने ही दोनों को अभिन्न मित्र बना दिया था। जिस दौरान विनोबा भावे हिमालय पर जाकर तप करना चाहते थे और बंगाल के क्रांतिकारियों से मिलना चाहते थे। उस दौरान गांधी से मुलाकात ने उनको सही राह दिखाई। महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि वह पहले ऐसे इंसान लगे, जो कुछ देने आए थे।


भूदान आंदोलन

महात्मा गांधी के निधन के बाद वह विनोबा भावे थे, जो उनकी विरासत को आगे बढ़ाते रहे। साल 1951 में महाराष्ट्र में भूदान आंदोलन को भावे के सबसे बड़े योगदान के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने इस स्वैच्छिक सुधार आंदोलन में सामाजिक स्तर पर बदलाव लाने का प्रयास किया था। इसके साथ ही उन्होंने सर्वोदय समाज की भी स्थापना की थी।


मृत्यु

देश की आजादी के बाद विनोबा भावे ने अपना शेष जीवन वर्धा में पवनार के ब्रह्म विद्या मंदिर आश्रम में गुजारा। जीवन के आखिरी दिनों में उन्होंने अन्न-जल का त्यागकर दिया था। साथ ही समाधि मरण को अपनाया था। जिसको जैन धर्म में संथारा कहा जाता है। वहीं 15 नवंबर 1982 को विनोबा भावे की मृत्यु हो गई थी।

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