By अनुराग गुप्ता | Sep 06, 2021
गुवाहाटी। असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। जबकि जीत दर्ज करने के लिए कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां की संस्कृति को समझने का प्रयास किया। चाय बागान इलाके के लोगों से मुलाकात की। लेकिन चुनाव परिणामों ने उनकी रणनीति धरी की धरी रह गई।
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) से गठबंधन किया था लेकिन हार के बाद उन्हें ही सबसे बड़ा विलेन माना और गठबंधन को बरकरार रखने के लिए कोई दिलचस्पी भी नहीं दिखाई।
क्या गठबंधन से अलग होगी कांग्रेस ?कांग्रेस असम विधानसभा उपचुनाव अपने दम पर लड़ने की योजना बना रही है। ऐसे में मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ गठबंधन को समाप्त करने का फैसला किया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने गठबंधन को समाप्त कर अतीत में अपने द्वारा की गई गलतियों को सुधारने का प्रयास किया है। कांग्रेस ने एआईयूडीएफ से गठबंधन तोड़ते हुए भाजपा के साथ सांठगांठ का आरोप लगाया।हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मौलाना बदरुद्दीन अजमल से मुलाकात की थी। आपको बता दें कि बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ का बंगाली बोलने वाले असमी मुसलमानों में खासा प्रभाव है। कांग्रेस ने गठबंधन तोड़कर 5 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए खुद को मजबूत किया है। पार्टी एआईयूडीएफ के माध्यम से भाजपा को उन्हीं की योजना में फंसाने का प्रयास करेगी।दरअसल, धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाली कांग्रेस को भाजपा की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। लेकिन अब भाजपा के साथ एआईयूडीएफ की बढ़ती दोस्ती का इस्तेमाल उसी के खिलाफ करेगी क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस गठबंधन का जिक्र करते हुए हिन्दुओं को एकजुट किया था।
2016 में कांग्रेस को मिली थी 26 सीटेंसाल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 60, कांग्रेस को 26, असम गण परिषद को 14, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को 13 और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट को 12 सीटें मिली थीं। वहीं साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को 76, कांग्रेस गठबंधन को 49 सीटें प्राप्त हुई थीं। जबकि अन्य के खाते में एक सीट गई थी।साल 2016 में कांग्रेस को जो 26 सीटें प्राप्त हुई थी, उसमें ऊपरी असम की 10 सीटें शामिल थीं। लेकिन इस बार उन्हें 47 में से महज 4 सीट ही मिल पाई। विशेषज्ञ मानते है कि जिस पार्टी ने असम की ऊपरी सीट पर कब्जा कर लिया, प्रदेश की सत्ता भी उसी को मिल जाती है। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला।