राधाष्टमी के व्रत से होते हैं सभी कष्ट दूर, जानें पूजन विधि
मंडप के बीच में कलश स्थापित कर उस पर तांबे का बर्तन रखें। राधा की मूर्ति को पंचामृत से नहलाएं। पंचामृत से स्नान के बाद सुंदर वस्त्र धारण कराएं।
भादो महीने की शुक्लपक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी मनायी जाती है। राधा बिना कृष्ण भगवान अधूरे हैं इसलिए राधाष्टमी को भी कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल राधाष्टमी 6 सितम्बर को पड़ रही है। आइए हम आपको राधाष्टमी की महिमा के बारे में बताते हैं।
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राधाष्टमी का व्रत कैसे करें
राधाष्टमी के दिन भक्त सबसे पहले स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। उसके बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई कर वहां मंडप बनाएं। मंडप के बीच में कलश स्थापित कर उस पर तांबे का बर्तन रखें। राधा की मूर्ति को पंचामृत से नहलाएं। पंचामृत से स्नान के बाद सुंदर वस्त्र धारण कराएं। राधा जी को सजाने के बाद उनकी प्रतिमा को कलश पर स्थापित करें। उसके धूप-दीप जलाएं और आरती उतारें। विधि प्रकार के फल-फूल और प्रसाद अर्पित करें। इस प्रकार विधिवत पूजा करने के बाद व्रत रखें। व्रत करने के बाद अगले दिन सुहागिनों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
राधाष्टमी का महत्व
राधाष्टमी का व्रत करने से घर में धन की कमी नहीं होती है और समृद्धि आती है। ऐसी माना जाता है कि अगर किसी भक्त को अपने इष्ट देवता कृष्ण को मनाना है तो उन्हें सबसे पहले राधारानी को खुश करना होगा। इसलिए सभी भक्त राधा की आराधना करते हैं। राधाष्टमी के व्रत से सभी पाप दूर हो जाते हैं।
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बरसाने में राधाष्टमी के दिन होती है धूमधाम
राधाष्टमी ब्रज और बरसाने में बहुत उमंग और उत्साह से मनायी जाती है। अष्टमी के दिन बरसाना की ऊंची चोटी पर मौजूद गहवर वन की भक्तगण परिक्रमा करते हैं। वृंदावन के राधा बल्लभ मंदिर में उत्सव की धूम देखते ही बनती है। मंदिर में राधा के जन्म के बाद भोग लगाया जाता है और बधाइयां गायी जाती है। इसके अलावा दूसरे मंदिरों में भी बहुत धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।
राधा जी के जन्म की कथा
एक बार श्रीकृष्ण गोलोक में अपनी सखी विराजा के साथ घूम रहे थे। श्रीकृष्ण को इस तरह आनंद लेते देख राधा बहुत क्रुद्ध हुईं और श्रीकृष्ण को बुरा-भला कहने लगीं। राधा का क्रोध देखकर सुदामा ने उन्हे श्राप दिया कि राधा को पृथ्वी पर जन्म लेकर कष्ट भोगना होगा। राधा ने भी सुदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का अभिशाप दे दिया। इस श्राप के कारण सुदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लिया और विष्णु के परम भक्त बने।
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सुदामा के श्राप के कारण राधा वृषभानुजी की बेटी के रूप में जन्म लीं। उनकी माता वृषभानुजी की पत्नी कीर्ति थीं। लेकिन राधा देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं पैदा हुईं थीं। देवी कीर्ति उस समय गर्भवती थीं लेकिन योगमाया की प्रेरणा से वायु ने उनके गर्भ में प्रवेश किया वायु प्रसव के बाद बाहर निकल गयी। उसी समय देवी राधा प्रकट हुई और कीर्ति देवी की पुत्री बन गयी। श्रीकृष्ण ने कहा राधा से कहा कि पृथ्वी पर रायाण नामक के वैश्य से राधा का विवाह होगा जो मेरा ही अंशावतार होगा। इस तरह राधा को श्राप के कारण पृथ्वी पर रहकर कुछ दिनों कृष्ण से वियोग सहन करना पड़ेगा।
राधाष्टमी के दिन पूजा का मुहूर्त
अष्टमी तिथि 5 सितम्बर को शाम 8.49 से शुरू होकर 6 सितम्बर शाम 8.43 तक रहेगी। इसलिए भक्त पूजा का सही मुहूर्त देखकर आराधना करें।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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