हमारे जीवन और हमारे पर्यावरण की रक्षा करती ओजोन परत
पराबैंगनी बी का वह क्षीण प्रवाह जो भू सतह के वायुमंडल तक पंहुचता है- त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद आदि बीमारियां फैलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं यदि समताप मंडल में ओजोन का निर्माण न हुआ होता तो आधुनिक समय में जीवन स्वरूपों का उदभव शायद ही संभव होता।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 16 सितंबर को एक घोषणा के रूप में नामित किया गया था। कहने का तात्पर्य यह है कि 19 दिसंबर 2000 को ओजोन परत की कमी के कारण मॉन्ट्रियल कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के लिए यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित किया गया था। मॉन्ट्रियल कन्वेंशन दुनिया भर के हानिकारक पदार्थों और गैसों को समाप्त करके ओजोन परत की रक्षा करने हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। ओजोन परत की रक्षा के लिए 1995, जो पहला वर्ष था जब इस दिन को दुनिया भर में मनाया गया था। इसके बाद से इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस में भागीदारी को लेकर भारी वृद्धि देखी गई। इस दिन को एक अंतररष्ट्रीय अवसर के रूप में देखने का मुख्य उद्देश्य ओजोन परत के बारे में जागरूकता की भावना पैदा करना है कि यह कैसे बनती है और इसमें पैदा हुई कमी को रोकने के क्या तरीके हैं। इस दिन विद्यालयों, कॉलेजों, संगठनों और मीडिया के लोगों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़कर उनके विचारों को साझा किया जाता है। इस दिन यह जागरूकता फैलाई जाती है कि हमारी धरती को नष्ट करने वाले खतरे को नियंत्रित भी किया जा सकता है। विश्व ओजोन दिवस, पर्यावरण के महत्व और पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण साधनों के बारे में लोगों को शिक्षित करता है। मानव प्रकृति का हिस्सा है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती।
प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है- प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। पर्यावरण से हम हैं और हमसे पर्यावरण। पारिस्थितिकी तंत्र का पृथ्वी से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पर्यावरण पर हमारे चारों ओर के वातावरण का प्रभाव पड़ता है। ये वातावरण, वायुमंडलीय प्रभाव से निर्मित होता है। हमारा वायु मंडल मजबूत होगा तो वातावरण भी शुद्ध होगा। वातावरण शुद्ध होगा तो हमारा पर्यावरण भी शुद्ध होगा। पृथ्वी की रक्षा के लिए वायुमंडलीय सतह पर एक परत होती है। यह परत पराबैंगनी किरणों से हमारी व हमारे पर्यावरण की रक्षा करती है, जिसे ओजोन परत कहते हैं। वायुमंडल के ऊपरी सतह पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया।
इसे भी पढ़ें: Engineers Day: भारत के इंजीनियरिंग कौशल का पूरी दुनिया मान रही है लोहा
पृथ्वी की बाहरी सतह मुख्यतः चार वर्गो में विभक्त है- 1. लिथोस्फीयर (पृथ्वी का आवरण), 2. हाइड्रो स्फीयर (समुद्र, नदियाँ और झीलें), 3. एटमास्फीयर (पृथ्वी का आवरण), 4. बायोस्फियर (यह तीनों का समावेश है)। आरम्भ में जब पृथ्वी का उदभव हुआ तो ऑक्सीजन गैस नहीं थी। ज्वालामुखियों के निरंतर टूटते-फूटते रहने से सम्पूर्ण वायुमंडल कार्बन डाई ऑक्साइड व मीथेन से भरपूर था। कुछ समय बाद समुद्रों के भीतर जीवन का उदभव हुआ, जो कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन का प्रजनन करने लगे। इस ऑक्सीजन ने पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल की ओर एकत्र होना शुरू कर दिया, जहां पराबैगनी किरणों के प्रभाव में ऑक्सीजन का विभाजन एटमो में होने लगा। तत्पश्चात एटमो ने मिलकर ओजोन का रूप धारण कर समताप मंडल में सांद्रित होकर ओजोन परत का निर्माण किया| ओजोन परत, पृथ्वी को पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों से बचाने में एक छलनी समान, सुरक्षा कवच का काम करती है। ओजोन में ऑक्सीजन के तीन एटम बाउंड होते हैं। ओजोन एक रंग विहीन तथा तीखी गंध वाली गैस होती है। ओजोन परत पृथ्वी के ऊपर सोलह से पचास किलोमीटर (अर्थात 34 किलोमीटर मोती परत) ऊंचाई पर स्थित है। ओजोन का निर्माण सौर विकिरण द्वारा लगातार होता रहता है। जिसका स्तर 300 मिलियन टन प्रतिदिन है और इतनी ही मात्रा में यह प्राकृतिक रूप से नष्ट भी होती रहती है। ओजोन परत के कारण समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फियर) का तापमान ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) की अपेक्षाकृत अत्यधिक होता है। ओजोन परत पराबैंगनी किरणों को शोषित करता है और विकिरण के हानिकारक प्रभाव से पृथ्वी के सम्पूर्ण जीवन की रक्षा करता है। पराबैंगनी किरणों के अवशोषण के कारण ओजोन परत समताप मंडल को गर्म करता है। ओजोन की मोटी परत (34 किलोमीटर) से पराबैंगनी किरणें छन कर ट्रोपोस्फियर (क्षोभ मंडल) में प्रवेश करती हैं। ओजोन परत सबस्क्रीन की भांति काम करती है और खतरनाक पराबैंगनी बी सौर तरंगों के बड़े भाग को क्षोभ मंडल में प्रवेश करने से रोकती है।
इसे भी पढ़ें: मानवाधिकारों और कानूनों के नए नियम की रक्षा के लिए मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस
पराबैंगनी बी का वह क्षीण प्रवाह जो भू सतह के वायुमंडल तक पंहुचता है- त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद आदि बीमारियां फैलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं यदि समताप मंडल में ओजोन का निर्माण न हुआ होता तो आधुनिक समय में जीवन स्वरूपों का उदभव शायद ही संभव होता। ओजोन की कमी से पराबैंगनी बी का क्षोभ मंडल में अत्यधिक मात्रा में होना मानव पर ही नहीं अपितु पेड़ -पौधों पर भी प्रभाव डालते हैं। पौधों में स्टोमेटा के द्वारा ओजोन प्रवेश कर जाती है। यह पत्तियों को हानि पंहुचाती है जिससे पौधों की उत्पादन क्षमता में कमी और उनकी गुणवत्ता घटती है। ओजोन में कमी का मुख्य कारक है "क्लोरीन गैस"। क्लोरीन भारी होने के कारण स्ट्रैटोस्फियर की ऊंचाई तक नहीं पंहुच पाती जहां ओजोन परत विद्यमान है। घरेलु एवं सामूहिक रसायनों से उत्पन्न क्लोरीन गैस निचले वायुमंडल में विघटित हो वर्षा में बह जाती है। कई ऐसे स्थाई और हलके रसायन भी हैं जो वाष्पशील स्वभाव के होते हैं एवं विघटित होकर क्लोरीन का निर्माण करते हैं। इन्हे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस (ओ.डी.एस) कहते हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन, कार्बन टेट्रा क्लोराइड आदि कुछ ऐसे ओजोन डिप्लीटिंग सब्स्टेंस हैं जिनमे क्लोरीन होती है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन सर्वाधिक विनाशकारी सिद्ध हुई। एक क्लोरीन एटम लगभग 1,00,000 ओजोन मॉलिक्यूल्स को तोड़ कर वहां से हटा देता है। ग्रीन हाउस गैस के लगातार वृद्धि से भी ओजोन मात्रा घटती है। ग्रीन हाउस गैस प्रजनन के लिए उत्तरदायी स्रोत-लकड़ी के दहन से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन, पशु, मानव-विष्टा एवं जैव सड़ाव से मीथेन उत्सर्जन और हाइड्रोकार्बन एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड के प्रभाव में ट्रोपोस्फियर के भीतर मीथेन गैस का निर्माण। लम्बी तरंग धैर्य विकिरण का कुछ भाग वायुमंडल के ऊपरी ठन्डे भाग में उपस्थित ट्रेस गैसों द्धारा अवशोषित हो जाता है। इन्ही ट्रेस गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं। पृथ्वी की प्राकृतिक जलवायु निरन्तर बदलती रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव के द्वारा पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है।
ग्रीन हाउस प्रभाव- सूर्य की किरणें, कुछ गैसों और वायुमण्डल में उपस्थित कुछ कणों से मिलकर होने की जटिल प्रक्रिया है। कुछ सूर्य की ऊष्मा वायुमण्डल से परावर्तित होकर बाहर चली जाती हैं। लेकिन कुछ ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा बनाई हुई परत के कारण बाहर नहीं जाती है। अतः पृथ्वी का निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा यह जीवन को प्रभावित करती है।
- डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
असिस्टेंट प्रोफेसर एंड प्रॉक्टर
शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (यू.पी.)
अन्य न्यूज़