रक्षाबंधन के असल मायने क्या हैं? पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियां क्या दर्शाती हैं?

Rakshabandhan 2020

पौराणिक संदर्भ में रक्षाबंधन से संबंधित जो कहानियां मिलती हैं वह दर्शाती हैं कि रक्षा सूत्र का कितना महत्व है। यदि हम ऐतिहासिक कहानियों को देखें तो लगता है कि यह नारी द्वारा अपनी मदद के लिए की गयी एक पुकार मात्र है। आइये समझते हैं रक्षाबंधन के असल मायने आखिर हैं क्या?

मिठाइयाँ, ठिठोलियाँ, नोक-झोंक और असीम प्यार से भरा राखी का त्योहार सदियों से मनता आ रहा है। मुझे इस बात का अचम्भा होता है जब आजकल इस तरह की बातें कही जाती हैं कि यह पर्व भारतीय समाज की पैतृक व्यवस्था का प्रतीक है! जब तक हम अपने ही त्योहारों और मान्यताओं को बिना समझे यूं ही मनाते जाएंगे, तब तक इन पर न केवल अनगिनत सवाल उठेंगे, बल्कि उनके प्रति हमारे विचार और हमारी श्रद्धा दोनों डगमगाएंगे।

रक्षाबंधन के अनगिनत रूपों और कहानियों को एक आलेख में पिरोना शायद संभव ही नहीं, परंतु रक्षा का यह संकल्प कब पुरुषों को श्रेष्ठ बना गया, इसकी खोज कुछ दिलचस्प तथ्यों को उजागर करती है।

इसे भी पढ़ें: रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व है

पौराणिक संदर्भ में राखी पूर्णिमा या रक्षाबंधन का यह दिन कई कारणों से महत्वपूर्ण है। ‘भविष्य पुराण’ में एक कहानी आती है जब देवताओं और असुरों के बीच एक भीषण लड़ाई हो रही थी और देवताओं को अपनी पराजय के आसार दिखने लगते हैं। देवराज इन्द्र इस बात से चिंतित होकर अपने गुरु ब्रह्स्पति से सलाह लेते हैं। सलाह के अनुसार देवराज इन्द्र की पत्नी इंदरानी उनकी रक्षा हेतु, वेद मंत्रों के जाप से सुसज्जित एक रक्षा डोर इन्द्र देव की कलाई पर बांधती हैं और इसके बाद माना जाता है कि इस कवच की शक्ति से देवताओं की जीत सुनिश्चित हो गयी थी। 

ऐसी ही एक कहानी ऋग वेद में यम और उनकी बहन यमुना की भी है। एक बार यम अपनी बहन से मिलने गए थे, यमुना ने उनका स्वागत किया, भोजन खिलाया और उनकी कलाई पर रक्षा डोर बांध कर उनकी लंबी उम्र की कामना की, इस बात से प्रसन्न होकर यम ने वचन दिया कि इस पूर्णिमा पर जो बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधेगी वह उसे लंबी उम्र का वरदान देंगे।

कहानियाँ अनगिनत हैं लेकिन इन सभी से यह स्पष्ट है कि यह रक्षा की डोर इस पावन पूर्णिमा पर पुरुषों की कलाइयों पर उनकी रक्षा की दृष्टि से बांधी जाती है। इसी के चलते अभी भी भारत में ऐसे कई घर हैं जहां बहनों के अभाव में ‘घर की राखी’ पंडित द्वारा परिवार के बड़े व्यक्ति की कलाई पर बांधी जाती है। 

दक्षिण भारत में इस दिन को बहुत अलग तरह से मनाया जाता है। जहां पुरुष अपने पापों के लिए क्षमा प्रार्थना करता है, रीति रिवाज पूरे कर अपना जनेऊ (पवित्र धागा) बदल कर महासंकल्पम लेते हैं। कहीं ऋषि तर्पण तो कहीं पवित्रोपना किया जाता है। श्रावण पूर्णिमा का महत्व कुछ इस तरह सदियों से चला आ रहा है।

इसे भी पढ़ें: 29 साल बाद बन रहा रक्षाबंधन पर सर्वार्थ-सिद्धि के साथ दीर्घायु आयुष्मान योग

परंतु मुग़लों के दौर में राजपूत रानियों की राखी भेज कर मदद मांगने की कहानियों ने हमारे समाज के लिए इस त्योहार के मायने ही बदल कर रख दिये और हमने कभी यह सोचने तक की कोशिश नहीं की कि क्या वाकई इस त्योहार के मायने केवल एक नारी द्वारा मदद के लिए की जाने वाली पुकार मात्र है?

सही मायनों में राखी जितना महत्व नारी और उसकी शक्ति को देती है, शायद ही दुनिया कि कोई रस्म देती हो। सनातन काल से माना गया है कि पुरुष में भले ही शारीरिक बल हो, लेकिन शक्ति (नारी) की उपासना किए बिना उसका बल कोई काम का नहीं होता। जब एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो वह उस भाई की सुरक्षा की कामना भगवान से करती है और उसकी यह राखी उसके भाई की ढाल बनती है। 

यह डोर कब नारी की दुर्बलता की निशानी बनी, यह कहना कठिन है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज तक लोग उसे उसी दृष्टि से देखते हैं। रक्षा के इस बंधन से बंधने वाली हर कलाई सौभाग्यशाली है और यह डोर एक प्रतीक है कि यम तक से जो लड़ जाये, वह शक्ति केवल एक औरत में ही है।

-प्रियांका मोरारका

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

All the updates here:

अन्य न्यूज़