Valentine Week| भारत के इतिहास की वो पौराणिक प्रेम कहानियां, जिनके बारे में जानकर फिर से प्यार पर हो जाएगा आपको विश्वास
भीलों के बीच पले-बढ़े प्रसिद्ध राजपूत राजा बप्पादित्य की मुलाकात पड़ोसी राज्य सोलंकी की राजकुमारी से हुई, जिसने झूलन की पूर्णिमा की रात को अपनी सहेलियों के साथ जंगल में एक पेड़ पर झूला लगाया था।
आज कल का जमाना सोशल मीडिया का है, जहां लोगों को आए दिन नए प्यार मिलना काफी आम हो गया है। सोशल मीडिया के इस दौर में ना ही युवाओं को प्यार पर भरोसा होता है और ना ही वो किसी भी व्यक्ति से सच्चे प्रेम की अपेक्षा कर सकते है। हालांकि भारत के संदर्भ में ये बातें उतनी सच नहीं है क्योंकि भारत वास्तव में विविधता की भूमि है। भारत की इस पवित्र भूमि पर कई ऐसे प्रेमी हुए हैं, जिन्होंने प्यार की ऐसी दास्तां लिखी जो अमर हो गई। वर्षों ही नहीं बल्कि सदियां बीतने के बाद भी उनके प्यार की मिसाल पेश की जाती है। कई ऐसे प्रेमी भी रहे जिन्होंने अपने प्यार को हासिल करने के लिए दमदार लड़ाइयां लड़ने से भी गुरेज नहीं किया। आपको ऐसी ही 11 प्रेम कहानियों के बारे में बताते हैं।
अनारकली और सलीम
बॉलीवुड फिल्म मुगल-ए-आजम से मुगल राजकुमार सलीम और अनारकली की प्रेमकथा अमर हो गई है। सलीम के पिता, बादशाह अकबर इससे खुश नहीं थे, जिसके कारण सलीम ने अकबर के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। भले ही इस युद्ध में अकबर की जीत हुई। कहा जाता है कि सलीम को बचाने के लिए अनारकली ने जिंदा दफन होकर अपनी जान दे दी थी।
पृथ्वीराज चौहान और संयुक्ता
ये भारतीय प्रेम गाथा सबसे महान प्रेम कहानियों में शुमार की जाती है। ये प्रेम कहानी भारतीय इतिहास की अहम प्रेम कहानियों में शामिल है क्योंकि राजा पृथ्वीराज चौहान, कन्नौज के अपने प्रतिद्वंद्वी राजा जयचंद की बेटी संयुक्ता से प्रेम करते थे। पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए, जयचंद ने संयुक्ता के लिए एक स्वयंवर की व्यवस्था की। इस स्वंयवर में पृथ्वीराज को छोड़कर सभी राजा और राजकुमारों को आमंत्रित किया। पृथ्वीराज को आमंत्रित करने की जगह जयचंद ने द्वारपाल के रूप में काम करने के लिए पृथ्वीराज की एक मिट्टी की मूर्ति बनवाई। मगर संयुक्ता ने पृथ्वीराज की मूर्ति पर माला डालने का फैसला किया। इसी मूर्ति के पीछे असल में पृथ्वीराज चौहान छिपे हुए थे, जो संयुक्ता को स्वयंवर से अपने साथ लेकर भाग गए। बता दें कि जब पृथ्वीराज मोहम्मद गोरी से हार गये तो संयुक्ता ने जौहर अपनी जान दी थी।
नूरजहाँ और जहाँगीर
नूरजहां का जन्म के दौरान नाम मेहर-उन-निसा रखा गया है, जो आगे चलकर मुगल सम्राट जहाँगीर की सबसे पसंदीदा पत्नी बनीं। नूरजहां जहाँगीर की 20वीं पत्नी थी। जहांगीर नूरजहां को देखकर इतना मोहित हो गया था कि उसे हासिल करने के लिए उसने नूरजहां के पहले पति की हत्या कर दी थी। जहांगीर द्वारा पति की मौत होने के बाद नूरजहां ने छह वर्षों तक जहांगीर से निकाह के लिए हां नहीं भरी थी, मगर अंत में जहांगीर से निकाह के लिए राजी हुई। नूरजहां ही उनकी मुख्य पत्नी भी थीं, जिसने बाद में लगभग 20 वर्षों तक शासन किया।
बप्पादित्य और सोलंकी राजकुमारी
भीलों के बीच पले-बढ़े प्रसिद्ध राजपूत राजा बप्पादित्य की मुलाकात पड़ोसी राज्य सोलंकी की राजकुमारी से हुई, जिसने झूलन की पूर्णिमा की रात को अपनी सहेलियों के साथ जंगल में एक पेड़ पर झूला लगाया था। उन्होंने राधा और कृष्ण की भूमिकाएं निभाई और दोनों के बीच नकली विवाह समारोह हुआ। बप्पादित्य ने बाद में कई अन्य राजकुमारियों से शादी की लेकिन कहा जाता है कि उन्हें हमेशा सोलंकी राजकुमारी से प्यार रहा।
शाहजहाँ और मुमताज महल
अर्जुमंद बानू बेगम जो कि मुगल बादशाह शाहजहाँ की दूसरी पत्नी थीं। उन्हें मुमताज महल के नाम से भी बुलाया जाता हे। मुमताज महल सबसे पसंदीदा बेगम थी, इस कारण ही उन्हें ये नाम भी मिला था। मुमताज महल का अर्थ है कि 'महल का गहना/चुनी हुई एक'। मुमताज महाल ने उसने 14 बच्चों को जन्म दिया और 14वें बच्चे को जन्म देते समय उसकी मृत्यु हो गई। मुमताज महल की मृत्यु के बाद उसे दुख से उबरने और मुमताज के प्रति अपने प्रेम को देखते हुए एक अंतिम विश्राम घर बनवाया। ताज महल दुनिया के सात सबसे महान आश्चर्यों में से एक है।
शिवाजी और साईबाई
पारंपरिक प्रेम कहानियों के बिलकुल अलट ये ऐसा प्रेम कहानी है जो आज के समय में भी बेहद प्रासंगिक है। मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी का विवाह बहुत कम उम्र में निंबालकर वंश की साईबाई से हुआ था। आमतौर पर शिवाजी उसके बाद युद्धों में व्यस्त थे इसलिए उनके प्रेम को बढ़ने में समय लगा। शिवाजी के चार बच्चों की मां साईबाई को उनकी पसंदीदा पत्नी कहा जाता है, और यह भी कहा जाता है कि मृत्यु शय्या पर शिवाजी के अंतिम शब्द 'साई' थे।
बाजीराव और मस्तानी
छत्रपति शाहूजी के सेनापति पेशवा बाजीराव थे। पेशवा बाजीराव को मस्तानी नामक महिला से प्यार हुआ था। कई जगहों पर ये उल्लेख मिलता है कि मस्तानी के इतिहास के संबंध में अधिक जानकारी नहीं थी इसलिए बाजी राव के परिवार ने उनके मिलन का विरोध किया। इसके बावजूद बाजीराव ने उनसे विवाह किया। ऐसा कहा जाता था कि उनका प्यार इतना अधिक था कि युद्ध में बाजीराव की मृत्यु के बाद मस्तानी ने आत्महत्या कर ली थी।
कुली कुतुब शाह और भागमती
कहानियों की मानें तो मुहम्मद कुली कुतुब शाह जब युवा राजकुमार थे, तब मुसी नदी के दूसरी ओर एक गांव से गुजरते समय भागमती नाम की महिला को देखकर उन्हें उससे प्यार हो गया था। सभी बाधाओं और परिवार के विरोध के बाद भी भागमती से उन्होंने शादी की। कुतुब शाह और भागमती दोनों अलग धर्मों से आते थे। हिंदू धर्म को मानने वाले भागमती सामान्य महिला थी। उन्होंने भागमती के गांव के आसपास एक पूरा शहर बसाया था। भागमती के नाम पर इसका नाम हैदराबाद रखा, क्योंकि शादी के बाद उन्हें हैदर महल नाम दिया गया था।
आम्रपाली और बिम्बिसार
वैशाली की प्रसिद्ध वैश्या आम्रपाली बुद्ध की शिष्याओं में से एक के रूप में भी प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि जब मगध के राजा बिम्बिसार ने वैशाली पर हमला किया, तो उन्हें आम्रपाली की प्रसिद्धि के बारे में पता चला। इस दौरान ही वो अपना भेष बदलकर आम्रपाली का नृत्य देखने पहुंचे। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। जब बिंबिसार ने आम्रपाली को अपने साथ चलने को कहा तो उसने इंकार कर दिया। उसने ये भी वादा किया कि वो कभी शादी नहीं करेगी। उसने बिंबिसार से अपने सच्चे प्यार को साबित करने के लिए उसके शहर को बचाने की भी अपील की। इसके बाद वो बुद्ध धर्म को अपनाकर शांति पाने की खोज में निकल गई।
मूमल और महेंद्र
मूमल और मेंहद्र की कहानी भी काफी रोचक है। खूबसूरत राजपूत लड़की मूमल और उमर कोट (अब पाकिस्तान में) के राणा महेंद्र की ये कहानी है। एक बार जब महेंद्र शिकार करते हुए मूमल के निवास के पास आया और उससे प्रभावित होकर मूमल ने उसे अपनी पत्नी के रूप में लेने का फैसला किया और अंततः उनका प्यार परवान चढ़ा। महेंद्र को एक तेज़ गति वाला ऊँट मिला जो उसे हर रात जैसलमेर ले जाता और उमर कोट से वापस ले आता। जब महेंद्र के परिवार को इस बारे में पता चला तो उन्होंने ऊंट के पैर तोड़ दिए, लेकिन महेंद्र नहीं रुका। उसने दूसरा ऊँट लिया और जैसलमेर के लिए चल दिया, लेकिन गलती से वह बाडमेर पहुँच गया। अपनी गलती का पता चलने पर वो फिर से जैसलमेर के लिए चल पड़ा। दूसरी ओर मूमल उसका इंतजार करती रही और उसका साथ देने के लिए उसकी बहनें सज-धज कर उसका मनोरंजन करती रहीं। बहनों में से एक, जो पुरुष के रूप में कपड़े पहनती थी, माँ के साथ उसके बिस्तर पर सो गई। जब महेंद्र काक महल आये तो उन्होंने यह देखा और निराश होकर अपनी छड़ी वहीं छोड़कर चले गये। मूमल की विनती व्यर्थ गई और अंततः अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए उसने आग लगा दी और उसमें कूद गई। जब महेंद्र को यह पता चला तो वह दौड़कर महल में आया, लेकिन मूमल पहले ही आग की लपटों में घिर चुकी थी। ममूल के साथ रहने के लिए महेंद्र ने भी उसी अग्नि के हवाले खुद को कर दिया था।
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