पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के बावजूद नारी अभी भी प्रताड़ित है
महादेवी वर्मा ने नारी की परिभाषा देते हुए कहा− 'नारी सिर्फ हाड़−मांस से बने पुतले का नाम नहीं अपितु आदिकाल से लेकर आज तक उसने विकास पथ पर पुरुष का साथ दिया। नर के शापों को खुद पर झेल कर वरदानों से उसके जीवन में अथाह शक्ति का संचार किया।'
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। कहीं इसे महिलाओं के सम्मान में समर्पित एक पर्व के रूप में मनाया जाता है तो कहीं पर स्त्री−पुरुष की समानता−स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहीं पर महिला सशक्तिकरण में की जा रही कोशिशों के रूप में इस दिन की खास अहमीयत है। परंतु 1909 से लेकर 2020 तक विश्व भर में 111 अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने के बावजूद भी नारी को उसके योग्य सम्मान नहीं मिल पाया। वैज्ञानिक युग में पुरुषों के समकक्ष अपनी भागीदारी सिद्ध करने वाली नारी अभी भी प्रताड़ित है। एक तरफ कल्पना चावला, ऐलिन कोलिन्ज़, वैलेन्टाईना तेरोशकोवा, सुनीता विलीयमज़ ने अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाई तो वहीं सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल एवं पी.वी. सिंधु इत्यादि महिलाओं ने खेल जगत को अपनी प्रतिभा व कौशल से विस्मित करके रख दिया। चंदा कोचर, इंद्रा नूई जैसी प्रतिभाशाली औरतें ने पुरुषों के वर्चस्व वाले Finance and entrepreneurship के क्षेत्र में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया। वहीं किरण मजमूदार शा जैसी नारियों का biotechnology, industrial enzymes निर्माण के सबसे मुश्किल माने जाने वाले क्षेत्र में उन्नति के नए शिखरों को छूकर नए आयाम स्थापित किए। वहीं दूसरी ओर नारी के साथ होती निरंतर हिंसा, अपराध, शोषण समाज के माथे के काले स्याह कलंक हैं जो नारी की उलझी हुई विरोधी स्थिति को उजागर करते हैं। अगर हम विश्व सेहत संगठन के आंकड़ों पर दृष्टिपात करेंगे तो पता चलेगा−
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1. विश्व में हर 3 में से 1 औरत (36 प्रतिशत) घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। इनमें से लगभग 38 प्रतिशत औरतों की पति या निजी संबंध रखते हुए कुछ और पुरुषों द्वारा हत्या कर दी जाती है।
2. अंतरराष्ट्रीय एसिड सर्वाइवर ट्रस्ट के अनुसार विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष महिलाओं पर तेज़ाबी हमले के 1500 सौ से भी ज्यादा मामले दर्ज होते हैं।
3. अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन के अनुसार वर्ष 2012 में विश्व भर में 16 करोड़ औरतों को जर्बदस्ती मजदूरी करने को विवश किया गया एवं इसी दौरान ज्यादातर औरतें छेड़छाड़ की शिकार हुईं।
4. विश्व में 79 प्रतिशत महिलाओं को गलत तरीके द्वारा बेचा और खरीदा जा रहा है। इन औरतों को जर्बदस्ती देह व्यापार में धकेल दिया जाता है।
5. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष विश्व में 2,55,000 महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। अमेरिका में प्रत्येक 5 में से 1 औरत का शील भंग किया जाता है। दक्षिणी अमेरिका में प्रत्येक 17 सैकिंड में 1 महिला का शील भंग किया जाता है। चीन के आंकड़े भी कुछ कम दहलाने वाले नहीं हैं क्योंकि चीन में 57 प्रतिशत से भी ज्यादा पुरुषों ने अपने जीवन में एक बार एवं 9 प्रतिशत पुरुषों ने 4 या फिर 4 से भी ज्यादा स्त्रियों का शील भंग किया। भारत देश भी कहाँ पीछे रहा यहाँ पर भी ऐसी वीभत्स घटनाएं प्रत्येक घंटे में नारियों के शील का हनन करती हैं।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि ऊपर वर्णित सभी हिंसात्मक व अपराधों की शिकार सिर्फ अनपढ़ या ग्रामीण औरत नहीं अपितु पढ़ी−लिखी व आत्मनिर्भर नारी भी हैं। इस स्थिति में शिक्षा एवं रोज़गार महिला सशक्तिकरण का आधार स्तम्भ कहना कहाँ तक मान्य है? हमें गहराई से चिंतन करना पड़ेगा कि आज भी नारी हिंसा एवं शोषण का शिकार क्यों हो रही है? तो इसका एक ही मुख्य कारण उभर कर सामने आया कि इसकी जड़ें लिंग आधारित घटिया सोच एवं पक्षपात में ही निहित हैं। जिसकी शिकार गृहिणी एवं कामकाजी, आत्मनिर्भर महिलाएँ भी होती हैं। ऐसी सोच रखने वाले लोग इस बात को भूल जाते हैं कि जिस औरत के अंदर एक भ्रूण को विकसित करने की महान शक्ति है उस माँ में स्वयं कितनी शक्ति होगी? हमारे ऋषियों ने नारी की इस शक्ति को बहुत पहले ही जान लिया था। इसलिए उन्होंने अर्थववेद में वर्णित किया− माता भूमिः पुत्रो अहं पृथियाः भूमि मेरी माता है एवं हम इस धरती के पुत्र हैं। इन पंक्तियों में स्पष्ट तौर पर नारी की महिमा की घोषणा हो गई थी।
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नेपोलीयन बोनापार्ट ने नारी की महानता बताते हुए कहा था− आप मुझे एक योग्य माता दे दें। मैं आपको एक योग्य राष्ट्र दे दूँगा। हम शहीद भगत सिंह जी की माता विद्यावती जी को कैसे भूल सकते हैं? कहा जाता है कि जब उनका पुत्र फांसी पर चढ़ा था तो उनकी माता जी की आँखों में अश्रु देखकर उनकी माता जी को पत्रकारों ने प्रश्न पूछा था कि आप तो एक शहीद की माता हैं फिर आप की आंखें नम क्यों हो रही हैं? आपको तो गर्व होना चाहिए कि आपका बेटा इतनी कम आयु में देश के हित लिए शहीद हुआ है। पत्रकारों की बात सुनकर माता विद्यावती जी ने जवाब दिया कि मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही हूँ अपितु अपनी कोख पर रो रही हूँ कि काश मेरी कोख से एक और भगत सिंह पैदा हुआ होता। तो मैं उसे भी भारत माता की गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए समर्पित कर देती। माता विद्यावती जी के मुख से निकले ये शब्द हमारे लिए सुनहरे शब्द बन गए जिनसे मानव समाज अनादि काल तक मार्गदर्शन प्राप्त करता रहेगा। महर्षि पाणिनी भी कहते हैं− 'जो पुरुष स्त्री से शिक्षा प्राप्त करेगा वह उत्तम बुद्धि वाला श्रेष्ठ पुरुष बन जाएगा।' महाकवि जय शंकर नारी से संबंधित बहुत ही सुंदर पंक्तियों का उच्चारण करते हुए कहते हैं− 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो को याद कर अपने कर्त्तव्य को निभा नवयुग का स्वर्णिम इतिहास बन जाओ।' इसी प्रकार राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त नारी को नर से ज्यादा श्रेष्ठ मानते हुए कहते हैं− 'एक नहीं दो−दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी।' महादेवी वर्मा ने नारी की परिभाषा देते हुए कहा− 'नारी सिर्फ हाड़−मांस से बने पुतले का नाम नहीं अपितु आदिकाल से लेकर आज तक उसने विकास पथ पर पुरुष का साथ दिया। नर के शापों को खुद पर झेल कर वरदानों से उसके जीवन में अथाह शक्ति का संचार किया।'
विनोबा भावे जी ने नारी की इस अदभुत् शक्ति को वैज्ञानिक ढंग से प्रमाणित करते हुए कहा है− 'कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि स्त्री एवं पुरुष समान उम्र के हों, एक समान काम करते हों तो पुरुष का आहार 2000 कैलोरी का होगा एवं स्त्री को सिर्फ 1600 कैलोरी ही काफी हैं। यही नहीं स्त्रियाँ पुरुषों से ज्यादा लंबा जीवन व्यतीत करती हैं। भाव स्त्री के शरीर में पुरुष से ज्यादा जीवनी शक्ति निवास करती है। इसलिए महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम आराम की जरूरत होती है।'
शायद तभी हमारे महापुरुषों ने स्त्री को 'महिला' की उपाधि दी। महिला भाव जो महान शक्ति की स्वामिनी है। नारी की इसी महानता को बयां करते हुए पाश्चात्य कवि William Goding ने भी कहा है− जो नारी यह दिखावा करती है कि वह पुरुष से श्रेष्ठ है तो वह मूर्ख है क्योंकि नारी इससे कहीं ज्यादा महान एवं शक्तिशाली है। असलियत तो यह कि पुरुष जो भी नारी को प्रदान करता है नारी उसे भी महान बना देती है− If you give her a sperm she will give you a baby. If you give her a house, she will give you a home. If you give her groceries, she will give you a meal. If you give her a smile, she will give you her heart. She multiplies and enlarges what is given to her. आदि शंकराचार्य जी नारी की महिमा में कहते हैं− कुपुत्रो जायेता क्वाचिदापि न भवति अर्थात् संतान कुपुत्र पैदा हो सकती है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती। वेदों का भी कथन है−
वस्यां इन्द्रासि मे पितुः।
माता च मे छदयथः समा वासो।।
अर्थात् हे इन्द्र आप मेरे पिता से बढ़कर हैं। हे ईश्वर! आप और मेरी माता यह दो ही ऐसे हैं जो मेरे समस्त पापों एवं अपराधों को ढंक लेते हो। इसलिए कहा गया− त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव। यहाँ पर भी ईश्वर के लिए सबसे पहले माता संबोधन ही आया है।
तभी तो भगवान शंकर जी महर्षि गार्ग्य को समझाते हैं− यदगृहे रमते नारी, देवताः कोटिशो वत्स न त्यजन्ति गृहं हि तत्। अर्थात् जिस स्थान पर सदगुणों से भरपूर स्त्री सम्मान सहित निवास करती है। करोड़ों देवी देवता भी उस स्थान को त्यागकर नहीं जाते।
इसलिए आज आवश्यकता है सदियों पहले संत अरस्तु द्वारा स्थापित किए गए सूत्र को समझने की− Equals should be treated equally भाव जो समान रूप से कार्यरत हैं उन्हें समान रूप में ही देखना चाहिए। लेकिन आज इतनी उन्नति के बावजूद भी हमारे समाज में स्त्री−पुरुषों के अधिकारों में गहरी खाई नज़र आती है। जिसे पाटना इस समय की महती आवश्यकता है।
-सुखी भारती
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