बच्चों की मौत का भी हो गया ''राजनीतिकरण'', कोई मासूम चीखों को सुनने वाला है क्या ?

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राजस्थान के कोटा शहर में स्थित जेके लोन अस्पताल में लगातार बच्चों की मौत हो रही है। और अब तक मौत का आंकड़ा 100 पार कर चुका है। बच्चों की मौत की खबर सुनते ही गोरखपुर का अस्पताल याद आ जाता है। उस वक्त बीआरडी अस्पताल में 60 से अधिक नवजात बच्चों की दर्दनाक मौतें हुई थी।

नयी दिल्ली। बहुत सुनी अबतक आप लोगों की बातें अब एक्शन भी दिखाईये । सत्ताधारी पार्टी पर तो आपने जमकर निशाना साधा था। अब आपकी पार्टी के ही मुख्यमंत्री साहब की भी चर्चा कर लेते हैं। राजस्थान के कोटा शहर में स्थित जेके लोन अस्पताल में लगातार बच्चों की मौत हो रही है। और अब तक मौत का आंकड़ा 100 पार कर चुका है। बच्चों की मौत की खबर सुनते ही गोरखपुर का अस्पताल याद आ जाता है। तब इन्हीं तमाम नेताओं ने यूपी की योगी सरकार को घेरा था और आज जब बात खुद पर आई तो बड़बोले बयान दे रहे हैं। न हम उस वक्त की यूपी की घटना को सही ठहरा रहे हैं और न ही राजस्थान की। हमारा सवाल तो इन सियासतदानों से है, जो राजनीति करने के लिए उतर आते हैं मगर सत्ता होने पर अपने ही लोगों को मूलभूत सुविधाए नहीं दे पाते हैं। आज सवाल कोटा के अस्पताल में हुई 100 मौतों को लेकर करेंगे।

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बच्चों की लगातार मौत हो रही है ? गहलोत सरकार कर क्या रही है ?

मामले के तूल पकड़ने के बाद गहलोत सरकार हरकत में आई। अस्पताल के सुपरिटेंडेंट को हटा दिया है साथ भी हाई लेवल जांच के आदेश दे दिए गए हैं। हालांकि जब भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने अस्पताल का दौरा किया और वहां पर मौजूद पीड़ितों से बातचीत की तो उसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान सामने आया।

इस दौरान मुख्यमंत्री साहब ने आंकड़ों पर बड़ा जोर दिया। उन्होंने कहा कि सबसे कम मौत 6 साल में इस साल ही हुई है। सबसे कम जानें इस साल गई हैं। एक भी होना दुर्भाग्यपूर्ण होता है पर मौतें 1500 भी हुई हैं। एक साल के अंदर 1400 भी हुई हैं.. 1300 भी हुई हैं...इस साल करीब 900 हुई हैं। पूरे देश के अंदर, पूरे प्रदेश के अंदर हर अस्पताल के अंदर तीन, चार, पांच, सात मौतें होती हैं...प्रतिदिन होती हैं, कोई नई बात नहीं है...जयपुर में भी होती है।

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मान लिया मौते होती हैं तो क्या सरकार को कोई कदम नहीं उठाना चाहिए ?

बड़े-बड़े बादे, बड़ी-बड़ी कसमें जो आप लोगों ने खाई थी चुनाव के दरमियां लगता है वो आप भूल गए। उत्तर प्रदेश तो याद होगा ही आपको और याद होगा वहां के गोरखपुर का अस्पताल भी। जहां पर 60 से अधिक बच्चों की दर्दनाक मौत हुई थी। याद आया कुछ। तब आप लोगों ने कैसे सरकार को घेरा था। चलिए ये छोड़िए। ठीक है आपने जो आंकड़े गिनाए उन पर हम विश्वास कर लेते हैं। तो क्या यूं ही मौते होने दें ?

मीडियाकर्मियों की टीम जब कोटा के जेके लोन अस्पताल पहुंची तो वहां दिखाई दी टूटी हुई खिड़कियां, जहां से सर्द हवाएं सीधे अस्पताल के भीतर पहुंच रही हैं। आईसीयू में 77 वॉर्मर में से 44 खराब हैं, अस्पताल में 20 वेंटिलेटर है जिनमें से सिर्फ 9 ही काम कर रहे हैं और बचे हुए 11 खराब हैं। और तो और नवजात बच्चों के बॉर्ड का हाल भी कुछ ऐसा ही है।

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कहां है कांग्रेस पार्टी ? 

ठीक यही सवाल बसपा प्रमुख मायावती ने पूछा है। उन्होंने तो प्रियंका गांधी को भी याद किया और कहा कि प्रियंका अगर कोटा में जाकर मृतक बच्चों की ‘माओं‘ से नहीं मिलती हैं तो यहाँ अभी तक किसी भी मामले में यू.पी. पीड़ितों के परिवार से मिलना केवल इनका यह राजनैतिक स्वार्थ व कोरी नाटकबाजी ही मानी जायेगी।

इस मामले पर भाजपा के आईटीसेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी सवाल खड़े किए। नेताओं के सवाल खड़े करने के बाद खबर आई कि सोनिया गांधी इस मामले को लेकर काफी चितिंत नजर आ रही हैं। साहब चिंता छोड़िए कुछ हल निकालिए क्योंकि ये आंकड़ा बहुत बड़ा है।

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सीएम गहलोत ने फिर कुछ कहा क्या ?

सोनिया गांधी ने चितिंत दिखीं तो सीएम गहलोत का बयान भी सामने आ गया। गहलोत कहते हैं कि इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। कोटा के इस अस्पताल में शिशुओं की मृत्यु दर लगातार कम हो रही है। हम आगे इसे और भी कम करने के लिए प्रयास करेंगे। मां और बच्चे स्वस्थ रहें यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। हालांकि मामले पर अस्पताल के अधीक्षक भी बोले थे। उन्होंने कहा था कि अधिकतर शिशुओं की मौत मुख्यत: जन्म के समय कम वजन के कारण हुई। 

तो क्या इसमें सरकार की कोई गलती नहीं ? तो क्या अस्पताल को बेहतर संसाधन नहीं मिलने चाहिए थे ? तो क्या बच्चों की मौत पर ऐसे बयानों को सही ठहराया जा सकता है ? इन तमाम सवालों पर आप गौर करियेगा और सोचियेगा ? 

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