टीपू सुल्तान का किलाः अवशेष सुनाते हैं बुलंदियों की गाथा
अल्बर्ट विक्टर रोड और कृष्णा राजेंद्र के केंद्र में स्थित किले के मध्य बना 'समर पैलेस' इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का सुंदर नमूना है। इसे मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने बनवाना शुरू किया और टीपू सुल्तान ने उसको 1791 में पूरा करवाया।
भारत के मुस्लिम स्थापत्य में कर्नाटक राज्य में बेंगलुरू में टीपू सुल्तान उर्फ बेंगलुरू का किला अपना विशेष महत्व रखता है। एक समय में यह भव्य और ऐतिहासिक किला दक्खन के मजबूत किलों में शुमार था और पूरी भव्यता के साथ मौजूद था। विडम्बना ही कह सकते हैं कि इस किले के आज कुछ अवशेष ही शेष रह गए हैं। अवशेष भी किले की भव्यता को बताते हैं और सैलानियों को लुभाते हैं।
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यह किला लगभग एक किमी लम्बाई में बना था जो दिल्ली गेट से वर्तमान केआईएमएस परिसर तक फैला हुआ था। सुरक्षा की दृष्टि से किला पानी की चौड़ी खाइयों से घिरा हुआ था। किले की प्राचीर में 26 बुर्जों की कमान थी जी चारों तरफ से महल की रक्षा करते थे। किला असामान्य अंडाकार आकार में था और किले को तोड़ने और कब्जा करने के प्रयास में लॉर्ड कॉर्नवालिस और उनकी सेना द्वारा की गई क्षति के दृश्य चिह्नों के साथ मोटी दीवारों द्वारा संरक्षित किया गया है।
किले की विशिष्ट विशेषताओं में से एक तीन विशाल लोहे के घुंडी वाला एक लंबा द्वार है। दीवारों पर कमल, मोर, हाथियों, पक्षियों और अन्य विस्तृत रूपांकनों की नक्काशी दर्शनीय है। मोटी लैटराइट दीवारें सभी को लुभाती हैं। टीपू के किले को पालक्काड फोर्ट भी कहा जाता है। किला कभी एक महत्वपूर्ण सैन्य छावनी हुआ करता था। आज यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। यह स्थल पालक्काड आने वाले सभी पर्यटकों का एक पसंदीदा पिकनिक स्थल है।
समर पैलेस
अल्बर्ट विक्टर रोड और कृष्णा राजेंद्र के केंद्र में स्थित किले के मध्य बना 'समर पैलेस' इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का सुंदर नमूना है। इसे मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने बनवाना शुरू किया और टीपू सुल्तान ने उसको 1791 में पूरा करवाया। महल के भव्य मेहराब और कोष्ठक इस्लामी प्रभाव को दर्शाते हैं, जबकि स्तंभों के चारों ओर स्थित कोष्ठक प्रकृति में भारतीय हैं। दुमंजिली इमारत की पहली मंजिल पर चार कोनों पर स्थित 4 शाही कमरे, एक बड़ा हॉल, कक्ष और दो बालकनी हैं जहाँ से सुल्तान अधिकारियों को संबोधित करते थे और अपना राज दरबार आयोजित करते थे।
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महल एक मजबूत पत्थर के चबूतरे पर बना है और इसमें उत्कृष्ट नक्काशीदार लकड़ी के खंभे हैं जो पत्थर के आधार पर टिके हुए हैं। यह पेलेस गहरे भूरे रंग में सागौन की लकड़ी से बना खूबसूरत रचना है। इस्लामी कला महल के आंतरिक भाग में “आनंद का निवास” शिलालेखों के साथ सजा है।आंतरिक भाग में लोग टीपू सुल्तान से जुड़े इतिहास के बारे में जानकारी दी गई है। दीवारों पर पेंटिंग और भित्ति चित्र सुल्तान की बहादुरी और शख्सियतों की कहानियों का वर्णन करते हैं। प्रत्येक छोर पर महल के रंगीन अंदरूनी और दीवारों को देख सकते हैं। ये कभी रत्नों से आच्छादित थे जिन्हें बाद में हटा दिया गया। यहां सुल्तान द्वारा उपयोग किए जाने वाले हथियारों, रॉकेट तकनीक की पूर्णता और उनके कुछ अन्य उपकरणों की एक झलक देखने को मिलती है। उनके टाइगर सिंहासन के चित्र दीवारों पर सुशोभित हैं। भव्य महल का उपयोग राजा द्वारा गर्मियों में किया जाता था और इसे ‘एबोड ऑफ हैपीनेस’ और ‘रैश ए जन्नत’ अर्थात ‘स्वर्ग की ईर्ष्या’ के रूप में जाना जाता है।
संग्रहालय
किले के एक हिस्से में संग्रहालय बना दिया गया है जिसमें पशु-पक्षियों के माडल, मुद्राएं, अस्त्र-शस्त्र, पोशाक, पुराने बर्तन आदि को प्रदर्शित किया गया है। वर्तमान में वर्तमान में दिल्ली गेट और दो गढ़ों के अवशेष और टीपू सुल्तान का समर पेलेस ही शेष रह गए हैं।
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स्वर्णिम पृष्टभूमि
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार किले को शुरुआत में 1537 ई. में विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख और बेंगलुरू के संस्थापक केम्पे गौड़ा द्वारा मिट्टी के किले के रूप में बनाया गया था। गौड़ा का एक ऐसा शहर बनाने का सपना था जो हम्पी जैसा सुंदर हो और एक किला, मंदिरों, तालाबों या जल जलाशयों और एक छावनी के साथ एक राजधानी शहर हो। इसलिए गौड़ा ने एक आकर्षक किला बनाया और इसे मिट्टी से मजबूत किया। मुगलों ने 1687 ई. में बैंगलुरू शहर पर कब्जा कर लिया और इसे 1689 ई. में मैसूर के तत्कालीन राजा चिक्का देवराज वोडेयार को पट्टे पर दे दिया, जिन्होंने मौजूदा किले का और विस्तार किया। लगभग 100 साल बाद महान योद्धा टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली द्वारा 1781 ई. में किले को पुनर्निर्मित और मजबूत किया गया और टीपू सुल्तान द्वारा पूर्ण किया गया। वर्ष 1791 ई.लॉर्ड कॉर्नवालिस के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किले पर हमला किया गया था, जिसमें लगभग 2,000 लोग मारे गए थे। खूनी लड़ाई के बाद, ब्रिटिश सेना ने महल पर कब्जा कर लियाा। अंग्रेजों का किले पर कब्जा होने के बाद उन्होंने ने इसे तोड़ना शुरू कर दिया, यह प्रक्रिया 1930 के दशक तक जारी रही। प्राचीर और दीवारों को तोड कर सड़कों के लिए रास्ता बनाया, जबकि शस्त्रागार, बैरक और अन्य पुराने भवनों को तोड कर कॉलेजों, स्कूलों, बस स्टैंडों और अस्पतालों के लिए रास्ता बनाया। नवंबर 2012 में मेट्रो निर्माण स्थल पर श्रमिकों ने टीपू सुल्तान के समय की तोपों के साथ एक-एक टन वजन वाली 2 विशाल लोहे की तोपों का पता लगाया।
पर्यटक आते हैं यहां
महल के आस-पास के बगीचों में आराम कर सकते हैं। लोग यहां शांति और सुकून से टहलने और जॉगिंग करने आते हैं। किला देखने के लिए निर्धारत शुल्क लगता है तथा किले के इतिहास और घटनाओं को जानने के लिए गाइड सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। यह पर्यटकों के लिए प्रतिदिन सुबह 8:30 से शाम 5:30 तक खुला रहता है। पर्यटक बड़ी संख्या में इसे देखने आते हैं। बेंगलुरू देश के सभी बड़े शहरों से हवाई एवं रेल सेवाओं से जुड़ा है। कर्नाटक राज्य के सभी स्थलों से बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
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