International Kullu Dussehra Festival: कुल्लू में आज से शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव, जानिए इसका महत्व और इतिहास

International Kullu Dussehra Festival
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देशभर में भले ही आज यानी की 24 अक्तूबर को विजयादशमी के साथ दशहरा का पर्व समाप्त हो जाएगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश में आज से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज होने जा रहा है। विजयदशमी के दिन से कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शुरूआत होती है।

देशभर में भले ही आज यानी की 24 अक्तूबर को विजयादशमी के साथ दशहरा का पर्व समाप्त हो जाएगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश में आज से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज होने जा रहा है। जहां पूरे देश में शारदीय नवरात्रि की धूम देखने को मिलती है। वहीं हिमाचल में विजयदशमी के दिन से कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शुरूआत होती है।

 

हांलाकि इसके पीछे अलग-अलग मान्यता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक पारंपरिक संस्कृति और कई खास कारणों के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का दर्जा प्राप्त हुआ। इस उत्सव में देश-प्रदेश के साथ ही विदेशों से भी लोग शामिल होते हैं। आइए जानते हैं अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की धार्मिक मान्यता और महत्व के बारे में...

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अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव

दशहरा का नाम लेते ही लोगों के जहन में पश्चिम बंगाल और मैसूर में होने वाले दशहरे को याद करते हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में मनाया जाता है। इसे अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का दर्जा मिला हुआ है। इस पर्व में शामिल होने के लिए जिले के 300 से अधिक देवी-देवता शामिल होने आते हैं। दशहरा उत्सव में कई ऐसे देवी-देवता हैं जिनके आगमन के बिना दशहरा उत्सव की कल्पना नहीं की जा सकती है। इन्हीं देवी-देवताओं में हिडिंबा माता प्रमुख देवी मानी जाती हैं। माता हिडिंबा का दशहरा उत्सव में आगमन अति जरूरी होता है। इनके बिना कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन नहीं हो सकता है। 

माता हिडिंबा से जुड़ी धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीराम ने विजयादशमी के दिन रावण को बाण मारा था। लेकिन कहा जाता है कि रावण की मृत्यु 7 दिन बाद हुई थी। यही कारण है कि विजयादशमी से 7 दिनों तक कुल्लू में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाता है। इस दिन देवी अपने हरियानों के साथ राजमहल पहुंचती हैं। माता की पूजा के बाद भगवान श्रीराम को ढालपुर लाया जाता है। फिर ढालपुर के अस्थाई शिविर में 7 दिनों तक माता विराजमान रहती हैं। इस दौरान मां हिडिंबा के दर्शन के लिए के लिए यहां पहुंचते हैं।

हिडिंबा मां के आशीर्वाद से देव महाकुंभ पूरी तरह से संपन्न होता है। लंका दहन के दिन भी मां हिडिंबा का रथ सबसे आगे रहता है। इस दिन मां हिडिंबा को अष्टांग बलि दी जाती है। इस दौरान हिडिंबा का गुर और घंटी धडच साथ लेकर जाया जाता है। बलि प्रथा पूरी होने के बाद मां का रथ अपने देवालय लौट आता है। इसके साथ ही दशहरा उत्सव का समापन हो जाता है। 

राज परिवार की कुल देवी मां हिडिंबा

विहंग मणिपाल राज परिवार की कुल देवी मां हिडिंबा है। मान्यता के मुताबिक मां हिडिंबा ने बुढ़िया के रूप में राजा विहंग मणिपाल को दर्शन दिए थे। जिसके बाद बुढ़िया को अपनी पीठ पर लादकर राजा विहंग ने पहाड़ी तक पहुंचाया था। जिससे खुश होकर मां हिडिंबा ने राजा मणिपाल को अपने कंघे पर उठाया और फिर अपने असली स्वरूप में दर्शन दिए। जिसके बाद मां हिडिंबा ने राजा से कहा कि जहां तक तेरी नजर जाएगी, वहां तक तेरी संपत्ति होगी। फिर मां हिडिंबा ने राजा विहंग मणिपाल को राजा घोषित कर दिया। तो वहीं राज परिवार ने मां हिडिंबा को दादी का दर्जा दिया। इसलिए इस उत्सव में मां हिडिंबा की उपस्थिति जरूरी मानी जाती है। 

ऐसे बना अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव 

साल 1966 में कुल्लू दशहरा राज्य स्तरीय दर्जा मिला था। वहीं साल 1970 में इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा देने की घोषणा की गई। हांलाकि तब इसे मान्यता नहीं मिल पाई। साल 2017 में इस पर्व को अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा दिया गया। वहीं साल 2022 में पीएम मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो कुल्लू अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में शामिल हुए थे। 

यहां नहीं जलाया जाता पुतला

जहां एक ओर विजयादशमी के मौके पर रावण का पुतला जलाया जाता है। तो वहीं कुल्लू में ना तो लंका दहन होता है और ना ही रावण का पुतला जलाया जाता है। ढालपुर में 7 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में 300 से ज्यादा देवी-देवताओं का आगमन होता है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि से लेकर एक सप्ताह तक यह पर्व चलता है। 

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