पीएम मोदी के मंदिर जाने से विपक्ष को क्यों है आपत्ति, कांग्रेस को कितना मजबूत कर पाएंगे खड़गे
नीरज दुबे ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री इस बात को भी भली-भांति जानते हैं कि मंदिरों के विकास के साथ ही उस शहर का विकास हो सकता है। वहां के लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। यही कारण है कि मंदिरों को विकसित करने पर उनका पूरा ध्यान है।
प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह भी हमने कई मुद्दों पर चर्चा की। दिवाली से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मंदिरों का दर्शन किया। साथ ही साथ अयोध्या के दीपोत्सव में भी शामिल हुए। इस कार्यक्रम में हमेशा की तरह मौजूद रहे प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे जी। हमने पहला सवाल नीरज दुबे से यही पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिरों का दौरा कर रहे हैं, विपक्ष इसको लेकर हमलावर क्यों है? इसको लेकर नीरज दुबे ने कहा कि 2014 से पहले हम प्रतीक के रूप में देखते थे कि रामलीला मैदान में दशहरे के मौके पर प्रधानमंत्री तीर छोड़ते थे। एक आध बार ही ऐसा होता था कि कोई प्रधानमंत्री मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाता है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि प्रधानमंत्री धार्मिक यात्राओं पर जाने से बचते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी के आने के बाद से इसमें बड़ा परिवर्तन आया है। पीएम मोदी का आध्यात्मिक के प्रति लगाव है। वे चाहते हैं कि भारत की जो आध्यात्मिक विरासत है, उसको विश्व स्तर पर पहचान मिले। वह चाहते हैं कि हमारे लोग जो हमारी जड़े हैं, उसको पहचानने की कोशिश करें। जो भारतीयता है उसको निभाने की कोशिश करें।
नीरज दुबे ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री इस बात को भी भली-भांति जानते हैं कि मंदिरों के विकास के साथ ही उस शहर का विकास हो सकता है। वहां के लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। यही कारण है कि मंदिरों को विकसित करने पर उनका पूरा ध्यान है। मोदी हर हाल में भारत को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं और चाहते हैं कि भारत का गौरव गान पूरी दुनिया में हो। नीरज दुबे ने कहा कि हमारे आध्यात्मिक केंद्र लोगों को एक रिसर्च का अवसर प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद वाराणसी में पर्यटकों का हुजूम लग रहा है। वहां के रोजगार में वृद्धि हुई है। नीरज दुबे ने कहा कि मंदिरों का दौरा करके प्रधानमंत्री सिर्फ धर्म का प्रचार कर रहे हैं, ऐसा नहीं है। वह वहां के पर्यटन को विकसित करने का काम कर रहे हैं। वह वहां के विकास को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: '...नेहरू की विरासत को कैसे हटाएं', जयराम रमेश बोले- वाजपेयी जी और मोदी जी की सोच में जमीन-आसमान का फर्क
इसके साथ ही नीरज दुबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धर्म स्थलों के दौरे पर हो रही राजनीति को लेकर भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री सिर्फ चुनाव के समय ही धार्मिक यात्रा पर जाते हैं। वह अक्सर धर्म-कर्म के काम में व्यस्त रहते हैं। नीरज दुबे ने कहा कि प्रधानमंत्री के हालिया यात्राओं को लोग गुजरात चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन इस देश में हर साल चुनाव होते रहते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री की हर यात्रा को लेकर चुनाव के बाद जरूर की जाएगी। हालांकि उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि चुनाव पर इसका असर पड़ेगा। लेकिन हर चीज को चुनाव से जोड़कर हम नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि गुजरात हिंदुत्व की राजनीति का प्रयोगशाला माना जाता है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी गुजरात बड़ा केंद्र रहा था। नीरज दुबे ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री अयोध्या जा रहे हैं और रामलला के पूजा कर रहे हैं, तो गुजरात के लोगों को यह याद आएगा कि जिसने मंदिर बनाने का वादा किया था वही मंदिर बनवा रहा है।
मल्लिकार्जुन खड़गे की चुनौतियां
इसके अलावा हमने कांग्रेस का नया अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लेकर भी चर्चा की। नीरज दुबे ने कहा कि आखिरकार कांग्रेस को अध्यक्ष मिल गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के सबसे उम्रदराज अध्यक्ष हैं। नीरज दुबे ने कहा कि 2019 के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को हार मिली थी। मल्लिकार्जुन खड़गे कई राज्यों के प्रभारी रहे हैं। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस के भीतर उन राज्यों में हुई अंतर्कलह को नहीं सुलझाया है। उन्होंने इसके लिए राजस्थान और महाराष्ट्र का भी उदाहरण दिया। नीरज ने साफ तौर पर कहा कि एक संगठनकर्ता के तौर पर कुछ सवाल जो है वह मल्लिकार्जुन खड़गे को लेकर है। उन्होंने कहा कि हम लोगों को इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए फर्स्ट चॉइस नहीं थे। परिस्थितियों के मुताबिक उन्हें अध्यक्ष बनाया गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे के ऊपर हिमाचल और गुजरात में पार्टी के लिए बड़ी जिम्मेदारी होगी। साथ ही साथ वह पार्टी को जमीनी स्तर पर कितना मजबूत कर पाते हैं, यह भी देखने वाली बात रहेगी। इसके साथ नीरज दुबे ने कहा कि परिस्थितियां एक बार कुछ ऐसी बनेगी कि फिर से कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथों में होगी। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता है कि 2024 का चुनाव कांग्रेस मलिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में लड़ेगी।
- अंकित सिंह
अन्य न्यूज़