बेचारी कांग्रेस ! गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष ना खोज पाने की मजबूरी को सहे जा रही है
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का इतनी तेजी से पतन, इतनी तेजी से विश्वसनीयता कम होना लोकतंत्र के हित में नहीं है। लोकतांत्रिक प्रणाली में किसी एक पार्टी का ही देश में राज हो और किसी एक पार्टी का ही पूरा दबदबा हो तो यह ठीक नहीं है। एक मजबूत विपक्ष आवश्यक है।
कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व और पूर्णकालिक एवं सक्रिय अध्यक्ष की मांग को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा तो उस पर हंगामा हो गया। गांधी परिवार को पहली बार पार्टी के भीतर से चुनौती मिली तो वह हिल गया और बगावती रुख अपनाने वाले नेताओं को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सबके सामने भाजपा का एजेंट बता दिया गया। जब पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल कई ने कहा है कि उन्हें विरोधी नहीं समझा जाए और उन्होंने कभी भी पार्टी नेतृत्व को चुनौती नहीं दी तब जाकर हंगामा कुछ कम हुआ लेकिन जो चिंगारी लग गयी है वह बुझी नहीं है। जिस तरह पत्र लिखने वाले नेता ट्वीटों के माध्यम से या फिर अपने मीडिया साक्षात्कारों के माध्यम से अपना दर्द दिखा रहे हैं वह दर्शाता है कि कांग्रेस में भीतर ही भीतर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत पनप रही है।
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आखिर कांग्रेस कब तक एक परिवार का बोझ ढोती रहेगी। अध्यक्ष वह बने जो पार्टी को आगे ले जाये और उसका नेतृत्व भी करिश्माई हो। सोनिया गांधी पूरे उत्तर प्रदेश में एकमात्र अपनी सीट बचा पाईं। राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर रहते अपनी अमेठी सीट हार गये। अमेठी कोई सामान्य सीट नहीं बल्कि गांधी परिवार का पारम्परिक गढ़ थी। राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस की लोकसभा चुनावों में लगातार दूसरी बड़ी हार हुई। यही नहीं जिन प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि दिखाकर उनका राजनीति में जोरशोर से पदार्पण कराया गया वह पार्टी का जरा भी भला नहीं कर पाईं। गांधी परिवार के लोग ना तो पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में बैठ कर नेताओं या कार्यकर्ताओं से मिलते हैं ना ही प्रदेश इकाइयों के कार्यालयों में जाकर वहां का हालचाल लेते हैं और नेताओं या कार्यकर्ताओं से मिलना तो दूर की बात है, पार्टी के मुख्यमंत्रियों को ही बमुश्किल समय मिल पाता है। ऐसे में आखिर नेता और कार्यकर्ता निराश नहीं होंगे तो और क्या होगा?
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पार्टी का जो सांगठिनक ढांचा इस समय है उसमें अंतरिम अध्यक्ष के हाथ में पिछले एक साल से कांग्रेस की कमान है। महासचिव के पदों पर वह लोग जमे हुए हैं जोकि पिछले 20-30 सालों से इन पदों पर डेरा डाले हुए हैं। ऐसे में युवाओं को आगे बढ़ायेगा कौन? हाल के दिनों में कांग्रेस के युवा नेताओं ने जिस तरह पार्टी से नाराजगी जताई है उसके चलते राजनीति में आने के इच्छुक युवा नेता कांग्रेस का चयन नहीं कर रहे हैं। प्रभासाक्षी के साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह कांग्रेस से जुड़े सभी विषयों पर गहन मंथन किया गया है इसलिए समय निकाल कर इसे अवश्य देखें।
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