शोधकर्ताओं ने किया कोशकीय प्रक्रियाओं से जुड़ा अहम खुलासा

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Prabhasakshi

शोधकर्ताओं ने कोलाइडल झिल्ली का अध्ययन किया है, जो संरेखित, रॉड जैसे कणों की माइक्रोमीटर-मोटी परत होती है। कोलाइडल झिल्ली, अध्ययन के लिए अधिक ट्रैक्टेबल सिस्टम प्रदान करती है, क्योंकि इसमें कोशिका झिल्ली के समान गुण पाये जाते हैं।

पतली चादरों और झिल्लियों (Membranes) को त्रि-आयामी (3डी) आकार देना सामग्री-विज्ञान की एक ऐसी विशेषता है, जो बड़े पैमाने पर आकारिकी (Morphogenesis) से लेकर आणविक दवा वितरण तक, विविध जैविक प्क्रियाओं को रेखांकित करती है। विशिष्ट 3डी आकृतियों के बीच कोशिका झिल्ली की निर्बाध परिवर्तनशीलता; कोशिका विभाजन, कोशिका गतिशीलता, कोशिकाओं में पोषक तत्वों के परिवहन, और वायरल संक्रमण जैसी जैविक घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलूरू के शोधकर्ताओं; और उनके सहयोगियों ने अपने एक ताजा अध्ययन में दिखाया है कि वास्तविक स्थिति में ऐसी प्रक्रियाएं कैसे होती हैं।

शोधकर्ताओं ने कोलाइडल झिल्ली का अध्ययन किया है, जो संरेखित, रॉड जैसे कणों की माइक्रोमीटर-मोटी परत होती है। कोलाइडल झिल्ली, अध्ययन के लिए अधिक ट्रैक्टेबल सिस्टम प्रदान करती है, क्योंकि इसमें कोशिका झिल्ली के समान गुण पाये जाते हैं। किसी प्लास्टिक शीट, जहाँ सभी अणु गतिहीन होते हैं, के विपरीत कोशिका झिल्ली द्रव की परतों से मिलकर बनी होती हैं, जिसमें प्रत्येक घटक फैलने के लिए स्वतंत्र होता है। भौतिकी विभाग, आईआईएससी में एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रेरणा शर्मा बताती हैं - "यह कोशिका झिल्लियों का एक प्रमुख गुण है, जो हमारी नई (कोलाइडल झिल्ली) प्रणाली में भी उपलब्ध है।" 

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इस अध्ययन में, कोलाइडल झिल्ली 1.2 माइक्रोमीटर और 0.88 माइक्रोमीटर रॉड के आकार के वायरस का घोल तैयार करके बनायी गई थी। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि घोल में छोटी छड़ों का अंश बढ़ाये जाने पर कोलाइडल झिल्लियों का आकार कैसे बदलता है। आईआईएससी के भौतिकी विभाग में पीएचडी शोधार्थी, और इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता अयंतिका खानरा बताती हैं- "हमने दो वायरस के अलग-अलग संस्करणों को मिलाकर कई नमूने बनाये, और फिर माइक्रोस्कोप से उनका अध्ययन किया है।"

जब छोटी छड़ों का अनुपात 15% से बढ़ाकर 20-35% के बीच किया गया, तो झिल्ली एक सपाट डिस्क जैसी आकृति से एक काठी (saddle) जैसी आकृति में परिवर्तित हो गई। समय के साथ, झिल्लियां आपस में मिलने लगीं, और आकार में बढ़ने लगीं। शोधकर्ताओं ने देखा कि जब काठी विलीन हो गई, तो उन्होंने उसी या उच्च क्रम की एक बड़ी काठी का निर्माण किया। हालाँकि, जब वे अपने किनारों से दूर, लगभग समकोण पर विलीन हो गए, तो अंतिम विन्यास एक कैटेनॉइड जैसी आकृति के रूप में उभरकर आया। कैटेनॉयड्स फिर अन्य काठी के साथ विलय हो गए, जिसने ट्रिनोइड्स और फोर-नोइड्स जैसी जटिल संरचनाओं को जन्म दिया।

झिल्ली के व्यवहार की व्याख्या करने के लिए, शोधकर्ताओं ने एक सैद्धांतिक मॉडल भी प्रस्तावित किया है। उनका कहना है कि ऊष्मप्रवैगिकी (Thermodynamics) के नियमों के अनुसार, सभी भौतिक प्रणालियाँ निम्न-ऊर्जा विन्यास की ओर बढ़ती हैं। उदाहरण के लिए, पानी की बूँद गोलाकार आकार ग्रहण करती है, क्योंकि इसमें ऊर्जा कम होती है। इसी तरह, झिल्लियों के लिए, छोटे किनारों वाली आकृतियाँ, जैसे कि सपाट डिस्क, अधिक अनुकूल हैं।

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एक अन्य गुण, जो झिल्ली विन्यास को परिभाषित करने में भूमिका निभाता है, वह है गाऊसी वक्रता मापांक। अध्ययन में स्पष्ट हुआ है कि छोटी छड़ों के अंश में वृद्धि होने पर झिल्लियों का गाऊसी वक्रता मापांक बढ़ जाता है। इससे पता चलता है कि अधिक छोटी छड़ें जोड़ने से झिल्लियाँ कम ऊर्जा वाली काठी जैसी आकृतियों में क्यों परिवर्तित होने लगती हैं। 

शर्मा बताती हैं- "हमने द्रव झिल्ली की वक्रता के निर्माण के लिए एक नया तंत्र प्रस्तावित किया है। गाऊसी मापांक को बदलकर वक्रता को ट्यून करने का यह तंत्र जैविक झिल्लियों में भी काम कर सकता है।” वह आगे बताती हैं कि वे अध्ययन जारी रखना चाहती हैं, जिससे यह पता लगाया जा सके कि झिल्ली घटकों में अन्य सूक्ष्म परिवर्तन बड़े पैमाने पर उसके गुणों को कैसे प्रभावित करते हैं। 

(इंडिया साइंस वायर)

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