भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने बनाए पश्चिमी घाट के भूस्खलन नक्शे

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करीब 83.2 प्रतिशत भूस्खलनों का मुख्य कारण भारी बारिश थी। भारी बारिश के अलावा, इन भूस्खलनों के लिए भौगोलिक ढलानों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। अध्ययन में अत्यधिक ऊंची ढलान वाले क्षेत्रों में करीब 38 प्रतिशत, उच्च ढलानों पर लगभग 36 प्रतिशत और मध्यम ढलानों पर लगभग 18 प्रतिशत भूस्खलन दर्ज किए गए हैं।

वास्को-द-गामा (गोवा)। (इंडिया साइंस वायर): भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने पिछले साल अगस्त के महीने में भारी बारिश के कारण पश्चिमी घाट में हुए भूस्खलनों के मानचित्र बनाए हैं और उनकी व्यापक सूची भी तैयार की है।

इस अध्ययन में पिछले साल भारी बारिश से सबसे ज्यादा प्रभावित तीन राज्यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के 23 जिलों के कुल 98 हजार 356 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का मानचित्रण किया गया है। इस पूरे क्षेत्र के 22.69 वर्ग किलोमीटर संचयी क्षेत्र में कुल 6,970 भूस्खलन दर्ज किए गए। केरल में सबसे अधिक 5,191 भूस्खलन, कर्नाटक में 993 और तमिलनाडु में 606 भूस्खलन हुए थे। 

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करीब 83.2 प्रतिशत भूस्खलनों का मुख्य कारण भारी बारिश थी। भारी बारिश के अलावा, इन भूस्खलनों के लिए भौगोलिक ढलानों को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। अध्ययन में अत्यधिक ऊंची ढलान वाले क्षेत्रों में करीब 38 प्रतिशत, उच्च ढलानों पर लगभग 36 प्रतिशत और मध्यम ढलानों पर लगभग 18 प्रतिशत भूस्खलन दर्ज किए गए हैं। 

नक्शों को तैयार करने के लिए पृथ्वी का अवलोकन करने वाले उपग्रहों से प्राप्त चित्रों  का उपयोग किया गया है। वर्षा के पहले और उसके बाद उपग्रहों द्वारा लिए गए चित्रों में दिखने वाली भिन्नताओं के विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने भूस्खलनों की पहचान करके उनकी सूची तैयार की है। 

तीनों राज्यों में हुई दैनिक वर्षा के वितरण का विश्लेषण अमेरिका के नेशनल ओशिनिक ऐंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर (सीपीसी) के आंकड़ों पर आधारित है। अध्ययन में पिछले वर्ष के 1 जून से 21 अगस्त के आंकड़ों को शामिल किया गया है। इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया इससे संबंधित अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले वर्ष एक दिन में सर्वाधिक वर्षा इन राज्यों में 14 अगस्त को हुई थी। यह भी पता चला है कि 8 अगस्त 2018 को बारिश अधिक थी और दो दिनों के बाद, यह 11 अगस्त को फिर से शुरू हुई जो 17 अगस्त तक जारी रही। वैज्ञानिकों का कहना है कि भारी बारिश से मिट्टी के जल संतृप्त होने से उसकी पकड़ ढीली हो गई थी। लगातार भारी बारिश से भीषण बाढ़ और बड़े पैमाने पर मिट्टी के कटाव होने से भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो गई। इससे जन-धन का व्यापक नुकसान हुआ और विभिन्न भूमि संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 

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वैज्ञानिकों का कहना है- हिमालय के बाद भारत का पश्चिमी घाट भूस्खलन के प्रति दूसरा सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र है। यहां खड़ी ढलानें हैं, जो मिट्टी से ढकी हुई हैं। इसलिए बरसात के दौरान भूस्खलन का खतरा यहां सबसे अधिक होता है। भूस्खलन के प्रकोप को कम करने के लिए संवेदनशील क्षेत्रों के मानचित्र तैयार करना अनिवार्य होता है। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि विभिन्‍न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए तैयार किए ये भूस्खलन मानचित्र तीनों राज्यों में इस प्राकृतिक आपदा के प्रबंधन में महत्‍वपूर्ण हो सकते हैं। भूस्खलन सूची और मानचित्रों के कारण भविष्य में इन क्षेत्रों में संभावित भूस्खलनों से निपटने की तैयारी, पूर्व चेतावनी, त्‍वरित प्रतिक्रिया, राहत, पुनर्वास तथा रोकथाम के लिए आवश्यक जानकारियां और मदद मिल सकेगी। 

अध्ययनकर्ताओं में नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के जियोसाइंस ग्रुप के तापस आर. मार्था, प्रियोम रॉय, कीर्ति खन्ना, के. मृणालनी और के. विनोद कुमार शामिल थे। 

(इंडिया साइंस वायर)

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