कृषि को मिलेगी ‘सौर-वृक्ष’ की नयी ऊर्जा
सौर-वृक्ष का डिजाइन ऐसा है, जिससे प्रत्येक सोलर पीवी पैनल को सूर्य का अधिकतम प्रकाश मिलता रहता है। इसे विकसित करने में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि सोलर पैनल के नीचे न्यूनतम छाया बने। प्रत्येक सौर-वृक्ष में 35 सोलर पीवी पैनल लगाए गए हैं।
भारत की उत्तरोत्तर बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता पारंपरिक ऊर्जा-स्रोतों के लिए एक कठिन चुनौती है। इस दिशा में प्रकृति सुलभ सौर-ऊर्जा एक बड़ी और प्रभावी भूमिका निभा सकती है। लेकिन, सौर-ऊर्जा बनाने वाले सोलर पैनल के लिए बड़ा स्थान चाहिए होता है। इसके लिए एक खंभे पर वृक्ष की डालियों से लटके पत्तों की तरह, अनेक छोटे-छोटे पैनल वाले ‘सौर-वृक्ष’ विकसित किए गए हैं। लेकिन, सघन सौर-वृक्ष का डिजाइन नीचे के पैनल तक सूर्य की पर्याप्त रोशनी पहुँचने में बाधक होता है। ऐसे में, एक महत्वपूर्ण प्रगति की बात सामने आयी है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने दुनिया का सबसे बड़ा सौर-वृक्ष (Solar Tree) विकसित करने का दावा किया है। दुर्गापुर स्थित सीएसआईआर-सेंट्रल मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमईआरआई) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इस सौर-वृक्ष की क्षमता 11.5 किलोवाट पीक (kWp) ऊर्जा उत्पादन की है। पूरे साल में 12,000-14,000 यूनिट स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा उत्पादित करने में सक्षम इस सौर-वृक्ष को सीएसआईआर-सीएमईआरआई की आवासीय कॉलोनी में लगाया गया है।
सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक डॉ हरीश हिरानी ने बताया कि “इस सौर-वृक्ष को विभिन्न स्थानों एवं आवश्यकताओं के अनुसार कस्टमाइज किया जा सकता है। इसे कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे इसके नीचे छाया क्षेत्र कम से कम बनता है, जो इसे विभिन्न कृषि गतिविधियों में उपयोग के अनुकूल बनाता है। उच्च क्षमता के पंप, ई-ट्रैक्टर, ई-पावर टिलर्स जैसे कृषि उपकरणों के संचालन में यह मददगार हो सकता है। सौर-वृक्ष को जीवाश्म ईंधन के स्थान पर कृषि में शामिल कर सकते हैं। जीवाश्म ईंधन उपयोग से तुलना करें तो प्रत्येक सौर-वृक्ष में ग्रीनहाउस गैस के रूप में छोड़ी जाने वाली 10-12 टन कार्बनडाईऑक्साइड का उत्सर्जन बचाने की क्षमता है। इसके अलावा, आवश्यकता से अधिक उत्पन्न ऊर्जा को ग्रिड में भेजा जा सकता है। यह कृषि मॉडल सुसंगत रूप से आर्थिक प्रतिफल देने के साथ-साथ किसानों को कृषि से संबंधित गतिविधियों में अनिश्चितताओं का सामना करने में भी मदद कर सकता है।"
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सौर-वृक्ष का डिजाइन ऐसा है, जिससे प्रत्येक सोलर पीवी पैनल को सूर्य का अधिकतम प्रकाश मिलता रहता है। इसे विकसित करने में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि सोलर पैनल के नीचे न्यूनतम छाया बने। प्रत्येक सौर-वृक्ष में 35 सोलर पीवी पैनल लगाए गए हैं। प्रत्येक पैनल की क्षमता 330 वॉट पीक है। सौर पीवी पैनलों को पकड़ने वाली भुजाओं का झुकाव लचीला है, जिसे आवश्यकता के अनुसार समायोजित किया जा सकता है। यह विशेषता रूफ-माउंटेड सौर सुविधाओं में उपलब्ध नहीं है। यह उल्लेखनीय है कि इसमें ऊर्जा उत्पादन के आंकड़ों की निगरानी वास्तविक समय या दैनिक आधार पर की जा सकती है।
डॉ हिरानी ने बताया कि “ऐसे प्रत्येक सौर-वृक्ष का मूल्य करीब 7.5 लाख रुपये है। नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड बनाने के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयां अपने बिजनेस मॉडल को प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (पीएम कुसुम) योजना से जोड़ सकती हैं। इस सौर-वृक्ष में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) आधारित फीचर्स, जैसे – खेतों की सीसीटीवी निगरानी, वास्तविक समय में आर्द्रता एवं हवा की गति का पता लगाना, वर्षा का पूर्वानुमान और मिट्टी का विश्लेषण करने वाले सेंसर्स को शामिल किया जा सकता है।"
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सीएसआईआर-सीएमईआरआई ने सौर-ऊर्जा से संचालित ई-सुविधा किओस्क भी विकसित किया है, जिसे सौर-वृक्ष से जोड़ा जा सकता है। इस किओस्क का लाभ यह होगा कि इसके जरिये विभिन्न कृषि डाटाबेस तक पहुँचा जा सकता है। इसका एक उदाहरण ई-नैम (नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केटप्लेस) है। इसे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सौर-वृक्ष, भारत को ऊर्जा में आत्मनिर्भर और कार्बन मुक्त बनाने में मददगार हो सकता है।
इंडिया साइंस वायर
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