ट्रंप-इमरान की मुलाकात से भारत था चौकन्ना, इसलिए कश्मीर पर चल दी बड़ी चाल

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राकेश सैन । Aug 8 2019 2:34PM

अभी हाल ही में इमरान के अमेरिका दौरे के दौरान वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर को लेकर मध्यस्थता का शिगूफा भी छोड़ा जिससे भारतीय नीति निर्माताओं के कान खड़े होने स्वभाविक है। भारत समझ गया कि अब हाथ पर हाथ धर कर बैठने का समय नहीं है।

समुद्र पर सेतु बांध दिया? भौंचक रावण विश्वास नहीं कर पा रहा था अपने विश्वसनीय गुप्तचरों द्वारा लाई गई सूचना पर। चारों ओर समुद्र से घिरी अभेद्य किले-सी लंका में बैठा दशानन अभी तक यही सोचता था कि वह कैसा भी अपराध कर ले उसे कोई छूने वाला नहीं। वह बार-बार खुद को चिकोटी काटता, कभी बड़बड़ाता और पूछता कि कहीं सिंधूराज को भी नकेला जा सकता है? आज वैसा ही विस्मय उन ताकतों को हो रहा होगा जो सोचती रहीं कि विवश और विभाजित भारतीय राजनीतिक व्यवस्था जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को छू नहीं सकती। जितना सन्न पाकिस्तान-अमेरिका है उससे अधिक वो हमारे लोग जो धमकी देते थे कि इस धारा को छुआ तो केवल हाथ नहीं बल्कि पूरा शरीर जल जाएगा। लेकिन केवल धारा 35-ए व 370 ही नहीं हटी बल्कि जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन भी हुआ, सेतु बांधा गया और गिरयाने वाले सन्निपातग्रस्त दिख रहे हैं।

केवल घरेलू परिपेक्ष ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी भारत लाभ वाली स्थिति में आ गया है। वर्तमान हालातों में पड़ोसी देश के साथ-साथ पूरी दुनिया को यह संदेश देना आवश्यक हो गया था कि जम्मू-कश्मीर को भारत अपना अभिन्न अंग कहता मात्र नहीं बल्कि मानता भी है। सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में बुरी तरह फंसा अमेरिका वापसी के लिए तड़प रहा है और संभव है कि इस काम के लिए उसे पाकिस्तान की ही सर्वाधिक जरूरत महसूस हो। या शेख अपनी-अपनी देख की नीति पर चलने वाला अमेरिका इमरान खान को खुश करने के लिए जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई ऐसी नीति अपना सकता है जो भविष्य में भारत के लिए मुसीबत साबित हो। अभी हाल ही में इमरान के अमेरिका दौरे के दौरान वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर को लेकर मध्यस्थता का शिगूफा भी छोड़ा जिससे भारतीय नीति निर्माताओं के कान खड़े होने स्वभाविक है। भारत समझ गया कि अब हाथ पर हाथ धर कर बैठने का समय नहीं है। इस कदम से भारत ने अमेरिका-पाक की जोड़ी को संदेश दे दिया है कि कश्मीर उसकी कमजोर रग नहीं कि जिसे दबा कर भारत की भूमिका को अफगानिस्तान में नगण्य कर दिया जाए।

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भारत ने अफगानिस्तान में अब तक लगभग 25 हजार करोड़ रु. खर्च किए हैं। भारत ने अफगानिस्तान में क्या-क्या नहीं बनाया है ? बिजलीघर, बिजली की लंबी-लंबी लाइनें, कई बांध, कई नहरें, कई स्कूल, कई पंचायत घर। सबसे बड़ा निर्माण कार्य हुआ है, ईरान और अफगानिस्तान को सीधे सड़क से जोड़ने का। जरंज-दिलाराम सड़क 218 किमी लंबी है। इस पर भारत ने अरबों रु. खर्च किया है। इस सड़क ने अफगानों की 200 साल पुरानी मजबूरी को खत्म किया। उसे अब अपने यातायात और आवागमन के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है। अफगानिस्तान में हमारे हजारों डॉक्टरों, इंजीनियरों, शिक्षकों, पत्रकारों, अफसरों और विशेषज्ञों ने पिछले 70 साल में इतना जबर्दस्त योगदान किया है कि वहां के कट्टरपंथी लोग भी भारत की तारीफ किये बिना नहीं रहते। अमेरिका की अनुपस्थिति में पाकिस्तान खतरनाक तालिबानियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है। ऐसे में भारत कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता कि अफगानिस्तान को लेकर बनने वाली किसी भी योजना में उसकी अनदेखी हो और वह भी जम्मू-कश्मीर को आड़ बना कर। सीधे शब्दों में कहें कि धारा 370 के उन्मूलन के बाद नई परिस्थितियों में अब अमेरिका कौन-सा लालच देकर पाकिस्तान से अफगानिस्तान पर मदद मांगेगा।

पूर्व विदेश सचिव श्री कंवल सिब्बल के अनुसार, पाकिस्तान का सुन्न हो जाना इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि यह कदम कश्मीर पर भारत-पाक वार्ता की रूपरेखा को पूरी तरह से बदलेगा। देखने में आया है कि द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने के लिए भारत ने लंबे अरसे से कश्मीर पर रक्षात्मक रुख अपनाया है। नई दिल्ली ने इसके लिए जम्मू-कश्मीर से जुड़े सभी लंबित मुद्दों पर बातचीत करने की हामी भरी और आतंकवाद को भी बर्दाश्त किया लेकिन अब, जब देश में कश्मीर की घरेलू स्थिति पूरी तरह से बदल गई, अब यह केंद्र शासित प्रदेश बन गया है, लद्दाख को भी इससे अलग कर दिया गया है, तब कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत का आधार ही खत्म हो गया है। अब पाक अधिकृत कश्मीर पर दावे को छोड़कर कोई लंबित मामला नहीं बचा। इसी पाक-अधिकृत कश्मीर में गिलगित और बाल्टिस्तान भी शामिल हैं। अब कश्मीर मसले के हल के लिए किसी पिछले दरवाजे की जरूरत भी खत्म हो गई है।  

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विदेश मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ मोर्चों पर भारत को अभी सावधान रहने की आवश्यकता है। राजनीतिक हताशा और घरेलू दबाव में पाकिस्तान भारत के इस फैसले का अंतरराष्ट्रीयकरण जरूर करेगा। लेकिन पाकिस्तान के विकल्पों पर यदि गौर करें, तो वह हमारे खिलाफ सिर्फ दुष्प्रचार कर सकता है। भारत के फैसले के विरोध की आग को भड़काने और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने का काम वह कर सकता है। हालांकि यह उसके लिए जोखिम भरा कदम होगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में यदि वह जेहाद भड़काने की कोशिश करेगा, तो भारत न सिर्फ जवाबी कार्रवाई करेगा, बल्कि आतंकी फंडिंग रोकने के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में भी उस पर दबाव बना सकता है, जिससे पाकिस्तान की आर्थिक सेहत और खराब हो सकती है। पाकिस्तान के हालात बताते हैं कि वह और सर्जिकल स्ट्राईक व बालाकोट जैसी कार्रवाई को सहन नहीं कर पाएगा। पाकिस्तान इस मसले को संयुक्त राष्ट्र ले जा सकता है, मगर हमारे यहां संविधानिक स्थिति को बदलने संबंधी भारतीय कानून में किसी तरह का बदलाव अंतरराष्ट्रीय मामला नहीं है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के किसी प्रस्ताव में अनुच्छेद-370 का जिक्र नहीं है। इसे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के महीनों बाद भारतीय संविधान में जोड़ा गया था, इसीलिए अपनी पहल से इसे हटाने या बदलाव करने का अधिकार भी भारत को ही है।

पिछले सत्तर सालों से भारतीय नेता कश्मीर को अपना अभिन्न अंग कहते आ रहे हैं परंतु उक्त विवादित धाराओं को संविधान से हटा कर मोदी सरकार ने कश्मीरियों को भी यह कहने का गौरव प्रदान कर दिया है कि भारत उनका अभिन्न अंग है। अभी तक यह रिश्ता एकतरफा-सा था और इस राज्य के भारत में पूर्ण विलय के मार्ग में ये धाराएं अघोषित बाधा सरीखी थीं जिन्हें भारत की वर्तमान सरकार ने रुग्ण अंग की तरह संविधान से काट फेंका है। इस बात की पूरी संभावना है कि जम्मू-कश्मीर का शेष भारत के साथ सेतुबंध रामायणकालीन रामसेतु की भांति कल्याणकारी व देश को सुदृढ़ करने वाला होगा।

-राकेश सैन

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