केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद AAP की राजनीति का क्या होगा, दिल्ली में कैसे चलेगी सरकार?
अन्ना आंदोलन के बाद 2012 में आम आदमी पार्टी का निर्माण अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों के द्वारा किया गया। 2013 के दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को सफलता मिली थी। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटों पर जीत हासिल की।
लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही देश की राजनीति पूरी तरीके से गर्म होती दिखाई दे रही है। इन सबके बीच दिल्ली शराब घोटाला मामले में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी ने सियासत को और भी गर्म कर दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष पूरी तरीके से आमने-सामने है। हालांकि, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से सबसे बड़ा प्रश्न यही उठ रहा है कि आखिर आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य की राजनीति क्या रहने वाली है? दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को लेकर क्या फैसला होगा?
आप की राजनीति
अन्ना आंदोलन के बाद 2012 में आम आदमी पार्टी का निर्माण अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों के द्वारा किया गया। 2013 के दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को सफलता मिली थी। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटों पर जीत हासिल की। 2015 में शानदार प्रदर्शन करते हुए अपने 70 में से 67 सीटों पर कब्जा किया। 2020 में भी पार्टी का जलवा दिखा। पार्टी ने 62 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, पंजाब में भी पार्टी 2017 में 20 सीटों पर जीतने में कामयाबी मिली थी। वहीं 2022 में पार्टी ने 92 सीटों पर जीत हासिल करते हुए सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की। आम आदमी पार्टी गुजरात, गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में लगातार अपना विस्तार कर रही है। उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है।
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आप का क्या होगा?
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी का क्या होगा? इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम आदमी पार्टी में सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल ही है। पिछले 10 से 11 वर्षों में हमने लगातार देखा है कि आम आदमी पार्टी की राजनीति केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही घूमती दिखाई दी है। जिन नेताओं ने केजरीवाल से आगे बढ़ने की कोशिश की, उनकी पार्टी से छुट्टी भी हो गई। चाहे वह पार्टी के संस्थापक ही क्यों ना हो। इसमें हम योगेंद्र यादव, शाजिया इल्मी, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, किरण बेदी जैसे लोगों का नाम ले सकते हैं। दिल्ली शराब घोटाला मामले में अरविंद केजरीवाल के बाद आप में स्थान रखने वाले मनीष सिसोदिया और संजय सिंह पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि पार्टी के प्रसार और विस्तार पर थोड़ा ब्रेक जरूर लगेगा। अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी को विस्तार देने में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राघव चढ़ा, आतिशी और सौरव भारद्वाज का रोल काफी अहम रह सकता है। लेकिन जनता इन्हें कितना स्वीकार कर पाएगी, यह वक्त बताएगा।
आम आदमी पार्टी में टूट का बड़ा खतरा
केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी में टूट का भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसका बड़ा कारण है कि पार्टी वैचारिक रूप से बंधी नहीं है। जरूरत के हिसाब से पार्टी अपना स्टैंड लेती है। आप का लगातार दावा रहता है कि भाजपा उनके विधायकों को तोड़ने की कोशिश करती है। ऐसे में जब केजरीवाल गिरफ्तार हो चुके हैं, उसके बाद पार्टी की स्थिति में थोड़ी कमजोरी जरूर देखी जा सकती है। यह सभी को पता है कि आम आदमी पार्टी को जो भी वोट मिलता है, वह केजरीवाल के नाम पर ही मिलता है। ऐसे में केजरीवाल की अनुपस्थिति में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। पंजाब में भी पार्टी टूट की ओर बढ़ सकती है। हालांकि, अभी भी पार्टी अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी। तभी तो कहा जा रहा है कि केजरीवाल के शरीर को गिरफ्तार किया जा सकता है, उनकी सोच को नहीं।
क्या जेल से चलेगी सरकार?
केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी का साफ तौर पर दवा है कि जेल से ही वह सरकार चलाएंगे। आतिशी ने कहा कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और आगे भी रहेंगे। लेकिन जानकारों का मानना है कि आम आदमी पार्टी के लिए यह कतई आसान नहीं रहने वाला है। हालांकि, ऐसा कोई कानून या नियम नहीं है जो मुख्यमंत्री को ऐसा करने से रोक सके। लेकिन जेल से सरकार चलाना एक टेढ़ी खीर हो सकता है। तभी भाजपा कह रही है कि जेल से सरकार नहीं, गैंग चलता है। गिरफ्तारी के बाद भी अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। वे अपनी मर्जी से इस्तीफा दे सकते हैं और किसी नए को जिम्मेदारी सौंप सकते हैं जैसा कि हमने झारखंड में देखा। अगर केजरीवाल इस्तीफा नहीं देते हैं तो दिल्ली में संवैधानिक संकट भी खड़ा हो सकता है। जेल में रहकर सरकारी कामकाज में बाधा आ सकती है। विश्वास मत खोने के बाद ही केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सकता है जो कि संभव नहीं लगता है। हां, संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए उपराज्यपाल राष्ट्रपति को आगे की कार्यवाही के लिए रिपोर्ट सौंप सकते हैं। वहीं अगर केजरीवाल इस्तीफा देते हैं तो गोपाल राय, आतिशी और सौरव भारद्वाज में से किसी एक को मुख्यमंत्री के रूप में आगे दिखाई दे सकते हैं।
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