व्यापार युद्ध क्या है? इसे अमेरिका ने शुरू किया या चीन ने ? क्यों पूरी दुनिया है इसकी चपेट में ?
इस ट्रेड वार का ही असर है कि दुनिया के नौ बड़े देश- ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, सिंगापुर और ब्राजील मंदी की चपेट में आ चुके हैं। अब जब इतनी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की चपेट में हैं तो स्वाभाविक है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ चुके भारत पर भी इसका असर होगा।
एक युद्ध है जो लगभग एक साल से ज्यादा समय से चल रहा है और दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को अपना शिकार बना रहा है। ये युद्ध है व्यापार युद्ध जिसे दुनिया ट्रेड वार के नाम से जानती है। यह ट्रेड वार चीन और अमेरिका के बीच चल रहा है और जिस तरह धीरे-धीरे दोनों देश एक दूसरे के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाते जा रहे हैं वह सिलसिला फिलहाल निकट भविष्य में खत्म होता नहीं दिख रहा है। अमेरिका पर आरोप है कि यह ट्रेड वार उसने शुरू की जिसकी कीमत आज पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए चीनी उत्पादों पर कर बढ़ा दिया और कहा कि चीन अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का पालन नहीं कर रहा है। हालांकि अब जब अमेरिका भी मंदी की चपेट में आने लगा तो ट्रंप ने चीन से वार्ता की पेशकश कर दी है लेकिन हुजूर बहुत देर कर दी आते-आते। जी हाँ, इस ट्रेड वार का ही असर है कि दुनिया के नौ बड़े देश- ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, सिंगापुर और ब्राजील मंदी की चपेट में आ चुके हैं। अब जब इतनी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की चपेट में हैं तो स्वाभाविक है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ चुके भारत पर भी इसका असर होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब गत सप्ताहांत अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए कुछ उपायों की घोषणा की थी तो यह बात स्वीकार की थी कि वैश्विक मंदी का कुछ असर भारत पर पड़ा है लेकिन हम अन्य देशों से बहुत बेहतर हालत में हैं।
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अब यह जो व्यापार युद्ध है वह दरअसल है क्या आइए इस बात को बड़ी सरलता के साथ और तथ्यों के जरिये समझते हैं। व्यापार युद्ध तब होता है जब एक देश आयात शुल्क बढ़ाकर या विरोध करने वाले देश के आयात पर अन्य प्रतिबंध लगाकर दूसरे के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करता है। हम जिसे टैरिफ कहते हैं वह एक कर या शुल्क है जो किसी राष्ट्र से आयात किए गए सामान पर लगाया जाता है। व्यापार युद्ध को संरक्षणवाद का एक साइड इफेक्ट भी कहा जा सकता है। दुनिया का हर देश आमतौर पर घरेलू व्यवसायों और नौकरियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के इरादे से संरक्षणवादी कार्य करता है। संरक्षणवाद भी व्यापार घाटे को संतुलित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधि है। व्यापार घाटा तब होता है जब किसी देश का आयात उसके निर्यात की मात्रा से अधिक होता है।
आइए अब समझते हैं व्यापार युद्ध शुरू कैसे हो जाता है
व्यापार युद्ध तब शुरू हो सकता है अगर एक देश मानता है कि दूसरे प्रतियोगी देश में अनुचित व्यापारिक व्यवहार अपनाये जा रहे हैं। अब मान लीजिये किसी देश के घरेलू ट्रेड यूनियन या उद्योग लॉबिस्ट, राजनेताओं या वहां की सरकारों पर दबाव डालते हैं कि सामने वाले देश से आयातित होने वाली वस्तुओं पर कर बढ़ा दिया जाये ताकि घरेलू कंपनियों के उत्पाद बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध हों और उन्हें फायदा हो। ऐसी नीतियां व्यापार युद्ध का माहौल पैदा कर देती हैं। व्यापार युद्ध अगर शुरू हुआ तो यह एक देश, दो देश तक सीमित नहीं रहता बल्कि धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता है और कई देशों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ने लगता है। आयात शुल्क बढ़ाने के अलावा व्यापार युद्ध के अंतर्गत आयात सीमा निर्धारित करने, किसी उत्पाद के मानक निर्धारित करने और सरकारी सबसिडी बढ़ाने जैसे कदम भी उठाये जाते हैं।
व्यापार युद्ध के लाभ और हानि की बात करें तो इसे इस प्रकार समझ सकते हैं-
लाभ | हानि |
यह स्वदेशी कंपनियों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाता है | लागत और महंगाई दोनों बढ़ती है |
स्वदेशी उत्पादों की मांग को बढ़ाता है | बाजार सीमित हो जाते हैं, लोगों के सामने विकल्प कम उपलब्ध होते हैं |
स्थानीय स्तर पर नौकरियों की संख्या बढ़ती है | व्यापार को हतोत्साहित करता है |
व्यापार घाटा कम होता है | आर्थिक विकास की दर धीमी होती है |
अन्य देशों को उनकी अनैतिक व्यापार नीतियों के लिए एक तरह से सजा मिलती है | देशों के बीच राजनयिक रिश्तों को नुकसान होता है |
हालांकि व्यापार युद्ध कोई नयी बात है, ऐसा नहीं है क्योंकि इसका इतिहास बहुत पुराना है। 19वीं सदी में व्यापार युद्धों के कई उदाहरण मिलते हैं। ब्रिटिश साम्राज्य के पास इस तरह की व्यापार लड़ाइयों का एक लंबा इतिहास है तो 1930 में अमेरिका का यूरोपीय देशों से कृषि उत्पादों को लेकर व्यापार युद्ध हो चुका है। वर्तमान में जो व्यापार युद्ध चल रहा है वह जनवरी 2018 में शुरू हुआ था जब ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयात होने वाले स्टील और एल्युमिनियम पर ऊँचा आयात शुल्क लगा दिया था जिसके जवाब में चीनी सरकार ने भी अरबों डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैरिफ बढ़ा दिया था।
चीन और अमेरिका के बीच चल रही यह ट्रेड वार जल्द खत्म हो जायेगी इसकी संभावना अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रुख को देखते हुए कम ही लग रही है क्योंकि एक ही दिन में ट्रंप ने दो बयान दिये। ट्रंप ने कहा कि उन्हें चीन के साथ व्यापार युद्ध पर अफसोस है, लेकिन कुछ घंटों बाद ही अपने ही बयान से पलटते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें केवल इस बात का अफसोस है कि उन्होंने चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क को और ऊंचा क्यों नहीं रखा। जाहिर है मामला जल्द सुलझता नहीं दिख रहा है। यदि यह ट्रेड वार लंबी खिंचती है तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के मुताबिक इससे 2021 तक दुनिया के जीडीपी में 585 अरब डॉलर की गिरावट आ सकती है। हालांकि इस ट्रेड वार के असर को कम करने के लिए हाल के दिनों में भारत, यूरोप, आस्ट्रेलिया सहित कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की है।
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अब इस ट्रेड वार से चीन को ज्यादा नुकसान हो रहा है या अमेरिका को, यदि इस पर गौर करेंगे तो यही साबित होता है कि चीन को ज्यादा नुकसान हो रहा है क्योंकि चीन अमेरिका को ज्यादा निर्यात करता है। हालांकि दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफ़ैक्चरिंग पावर हाउस माने जाने वाले चीन को ऐसे व्यापार युद्धों की बदौलत तोड़ पाना अभी दूर की कौड़ी है क्योंकि चीनी उत्पादों की कीमतें काफी कम होती हैं इसलिए उसे वैश्विक सप्लाई चेन से पूरी तरह हटा पाना बहुत मुश्किल है।
-नीरज कुमार दुबे
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