बायोहैकिंग क्या है? भारत में इसका प्रचलन कैसे बढ़ा?
आखिर बायोहैकिंग में क्या होता है? जानकार बताते हैं कि भारत में बढ़ते बायोहैकर कम्युनिटी के पास भले ही जॉनसन जैसा मोटा बजट न हो, लेकिन वे लोग सेहत को बेहतर बनाने के लिए अपने-अपने तरीके आजमा रहे हैं जो खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि यह आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा प्रमाणित नहीं है।
लाइफ इज मिंट फ़ॉर जॉय यानी जीवन जीने के लिए है। लेकिन कुछ लोग प्राकृतिक और शारीरिक परिस्थितियों में मनमाफिक बदलाव लाकर ज्यादा से ज्यादा जीने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। इनके लिए 'बायोहैकिंग' एक ऐसा शब्द बन चुका है जो शरीर की काम करने की क्षमता को बेहतर बनाने और उम्र बढ़ाने के तरीकों से जुड़ा हुआ है। इसलिए अब दुनिया के लोग इस पर फिदा होते जा रहे हैं। भारत में भी बायोहैकिंग के दीवाने बढ़ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि विश्वविद्यालयों में बायोसाइंसेज और हेल्थ रिसर्च से जुड़े छात्रों में इस नवीनतम ज्ञान और शोध के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है। इस बारे में लोग पूछताछ कर रहे हैं।
बता दें कि 'बायो' और 'हैकिंग' नामक दो शब्द सेहत से जुड़ी बायोलॉजिकल प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। ये भले ही नॉन-ट्रेडिशनल हैं और अभी मेडिकली इस पर मुहर नहीं लगी है। फिर भी इनके पीछे कुछ वैज्ञानिक साक्ष्य हैं, जो क्लिनिकल प्रैक्टिस में आने के लिए यह काफी नहीं है। हालांकि, इसके व्यक्तिगत अनुप्रयोग में इजाफा देखा जा रहा है, जो खतरे से खाली नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स भी इस बात की चुगली कर रही हैं कि 'मौत को मात' देने के इस नए ट्रेंड का भारत में प्रचलन बढ़ रहा है। यहां बायोहैकिंग का क्रेज़ इतना है कि रोज इसके अनुगामियों की संख्या बढ़ रही है। अब तो डाइटिंग के साथ प्राकृतिक चिकित्सा उपायों और योग-ध्यान से जुड़े रहस्यों के साथ भी इसे जोड़ा जाने लगा है।
आपको पता होगा कि महज 47 साल के अमेरिकी बायोहैकर और उद्यमी ब्रायन जॉनसन इन दिनों 'मौत को मात' देने पर तुले हुए है। हाल ही में वो भारत भी आए थे।यहां पर भी उन्होंने अपना 'एज-रिवर्सिंग ब्लूप्रिंट प्रोटोकॉल' लॉन्च किया, जिसमें ढेर सारे सप्लीमेंट्स, टेस्ट, एक्सपेरिमेंट्स, खास तरह का डाइट प्लान और एलईडी लाइट एक्सपोजर जैसे तमाम उपायों के सहारे जीवन प्रत्याशा बढ़ने-बढ़ाने के दावे किए गए हैं। एक अंग्रेजी दैनिक के मुताबिक, भारत में भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह (ग्रुप) बन गया है, जो अपने शरीर और दिमाग को बेहतर बनाने के लिए हर तरह के उपाय लगा रहे हैं। इनमें कड़ाके की ठंड में बर्फ स्नान से लेकर रेड लाइट थेरेपी और ढेर सारे सप्लीमेंट्स का इस्तेमाल तक शामिल है। यही नहीं, कुछ लोगों के रूटीन में हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी शामिल है। वहीं, कुछ लोग इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें पैदा करने वाले उपकरणों से अपनी आयु बढ़ाने के जतन में जुटे हुए हैं।
इसलिए आज मैं अपने इस आलेख के माध्यम से आपको यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि आखिर बायोहैकिंग में क्या होता है? जानकार बताते हैं कि भारत में बढ़ते बायोहैकर कम्युनिटी के पास भले ही जॉनसन जैसा मोटा बजट न हो, लेकिन वे लोग सेहत को बेहतर बनाने के लिए अपने-अपने तरीके आजमा रहे हैं जो खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि यह आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा प्रमाणित नहीं है। इससे जुड़ी कोई शोध रिपोर्ट्स भी अबतक नहीं आई है। हालांकि कुछ बायोहैक्स तो बहुत आसान हैं, जैसे ध्यान, उपवास, सप्लीमेंट्स लेना, धूप में बैठना और एक्सरसाइज करना। लेकिन इस क्षेत्र में कई तरह के अनुप्रयोग भी किए जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, जॉनसन ने अपने बेटे के साथ प्लाज्मा और ब्लड स्वैप किया। वहीं, चेहरे में डोनर फैट इंजेक्शन भी लगाया, जो कामयाब नहीं रहा।
सवाल है कि भारत में बायोहैकिंग का चलन कैसे विकसित और प्रचलित हुआ? क्योंकि बायोहैकिग आधुनिक दवाइयों के परिणाम से नाखुशी मतलब साइड इफेक्ट्स की वजह से विकसित हुआ है। समझा जाता है कि लंबी उम्र या सेहतमंद जीवन जीने की बढ़ती दिलचस्पी ही लोगों को बायोहैकिंग की तरफ आकर्षित कर रही है। बताया जाता है कि जहां भारत में डिकोड एज के को-फाउंडर राकेश सोमानी ने दस साल पहले अपनी परफॉर्मेंस बेहतर बनाने के लिए बायोहैकिंग शुरू किया था। वहीं, लोग तरह-तरह के अनुप्रयोग कर रहे हैं और अपने अनुभवों को भी सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं।
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कुछ लोग बर्फ के पानी में डुबकी लगाते हैं; वो भी तब, जबकि दिल्ली में कड़ाके की सर्दी पड़ रही हो। क्योंकि इनका मानना है कि आइस बाथ यानी बर्फ स्नान से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और व्यायाम के बाद रिकवरी अच्छी होती है। इससे दिमाग भी ज्यादा मजबूत बनता है। वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने ग्लूटेन, कॉर्न, डेयरी और प्रोसेस्ड फूड आदि छोड़ दिए हैं। इनका डिनर शाम छह-सात बजे तक खत्म हो जाता है।
ऐसे लोग स्किन हेल्थ, मसल्स रिकवरी के लिए रेड लाइट थेरेपी का भी इस्तेमाल करते हैं। वहीं, योग के अलावा तनाव को कंट्रोल में रखने के लिए न्यूरोफीडबैक के रूटीन को पूरा करते हैं। वहीं कुछ लोग हफ्ते में दो बार 23 घंटे का उपवास करते हैं। इनकी प्रक्रियाओं में प्रोटीन लेना, ढेर सारे सप्लीमेंट्स, क्रायोथेरेपी (जबरदस्त ठंड में रहना), एंटी-एजिंग IV ड्रिप्स और रेड लाइट थेरेपी आदि शामिल हैं, जो इनके प्रयोगकर्ताओं के रूटीन में शामिल हो चुके हैं।
दिलचस्प बात तो यह है कि ऐसे लोग यह सब कुछ करते हुए भी रोज महज छह घंटे ही सोते हैं और अपनी प्रोग्रेस ट्रैक करने के लिए डिवाइस भी पहनते हैं। वहीं कुछ लोग
धूप में बैठते हैं, घास पर नंगे पैर चलते हैं, रेड लाइट थेरेपी करते है, ग्राउंडिंग मैट्स का इस्तेमाल करते हैं। वह ब्लू-लाइट ब्लॉकिंग ग्लासेज पहनते हैं, ताकि लंबा जीवन जी सकें। ये लोग पेट के माइक्रोबायोम का एनालिसिस भी करवाते हैं और अपने ब्लड एज भी चेक कराते है। कहने का तातपर्य यह कि लोग अपने जीवन को, आयु को बढ़ाने के लिए इतने सारे यत्न प्रयत्नपूर्वक करते हैं।
हालांकि, इनकी बढ़ती गतिविधियों से कुछ लोगों के मनोमस्तिष्क में यह सवाल भी पैदा हो रहा है कि क्या बायोहैकिंग नुकसानदेह भी हो सकता है? इसको स्पष्ट करते हुए सीएसआईआर इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के एक्सपर्ट बताते हैं कि 'बायोहैकिंग एक खतरनाक रास्ता भी हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर बायोहैकिंग क्रियाएं बिना खतरों को देखे, महसूस किए ही किये जाते हैं। वो वजन कम करने के लिए डायबिटीज की दवा ओजेम्पिक (Ozempic) के हालिया चलन का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यह दवा अत्यधिक मोटापे और मेडिकल कॉम्प्लिकेशन्स से जूझ रहे लोगों के लिए तो अच्छी हो सकती है। लेकिन जब कोई फ़िल्म स्टार अपना थोड़ा सा वजन करने के लिए यही दवा लेता है, तो ये हैकिंग है। ये इसका समर्थन नहीं करते हैं, क्योंकि ये इसके दीर्घकालीन प्रभावों व उसके नतीजों के बारे में नहीं जानते हैं।
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एक उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि एक समय में भूख कम करने वाली गोलियां बहुत ज्यादा चलती थीं, लेकिन जब बाद में पता चला कि इनसे पल्मोनरी हाइपरटेंशन का खतरा बढ़ता है, जो जानलेवा भी हो सकता है, तो उसके सेवन पर अपने आप रोक लग जाती है।
बहरहाल, आप मानें या न मानें, लेकिन इतना तो समझना ही होगा कि हमारा शरीर हमेशा के लिए जीने के लिए नहीं बना है। इसलिए कोई भी जुनून मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बुरा हो सकता है। अतः बेहतर यही होगा कि जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए अब तक हुए या हो रहे शोध रिपोर्ट्स पर गौर करें और उसके मुताबिक अपनी आदतें विकसित करें। अन्यथा नीम हकीम खतरे जान वाली नौबत भी आ सकती है। इसलिए सावधानी पूर्वक हरेक पहल करें और आगे बढ़ें।
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